देखा जाए तो अपेक्षाकृत कम विकसित और निम्न स्वास्थ्य सेवा ढांचे के बावजूद भारत में अमेरिका, इंग्लैंड, इटली, स्पेन जैसे विकसित देशों के मुकाबले कोरोना मृत्यु दर कम रही। जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय के 20 मई, 2021 तक के आंकड़े यह दिखाते हैं कि भारत के समकक्ष स्तर वाले ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र आदि में मृत्यु दर भारत से दोगुना, तीन गुना और पांच गुना तक रही। वास्तव में स्वास्थ्य सुविधाओं में पिछड़ा होने के बावजूद भारत में मृत्यु दर कम होने का एक बड़ा कारण यहां की विशिष्ट सांस्कृतिक जीवनशैली भी है। परंपरागत भारतीय खानपान में हल्दी, काली मिर्च, जीरा, धनिया, दालचीनी, लौंग, अजवायन, इलायची, सोंठ, मीठी नीम, पुदीना इत्यादि का घर-घर उपयोग होता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत गुणकारी होते हैं। यह अनायास नहीं कि भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने काढ़े के उपयोग की सलाह दी थी। इसी तरह हल्दी युक्त दूध का सेवन अथवा नाक में तेल डालना जैसी परंपरागत भारतीय जीवनशैली पर भी जोर दिया गया। भारतीय संस्कृति के इन तत्वों को एलोपैथी ने भी अपने प्रोटोकॉल में स्थान दिया। दिल्ली-एनसीआर के कई बड़े हॉस्पिटल एलोपैथिक दवाइयों के अतिरिक्त कोरोना रोगी को काढ़ा भी पिलवाते हैं। भारतीय संस्कृति के इन तत्वों को लेकर वैज्ञानिक शोध कर पर्याप्त डाटाबेस बनाने की आवश्यकता है। यह काफी उपयोगी होगा। यह भारतीय सॉफ्ट पावर को भी बढ़ाएगा।
प्राचीन भारतीय संस्कृति कितनी वैज्ञानिक और स्वास्थ्य के अनुकूल और विभिन्न वायरसों से लडऩे में सक्षम है, इसका एक अन्य उदाहरण है यह शोधपरक आलेख कि पश्चिम के विभिन्न देशों ने 20 साल के रिसर्च के बाद पाया कि सांस छोड़ते समय हमिंग करने से नाइट्रिक ऑक्साइड निकलता है, जो नाक में पहुंच गए कोरोना आदि वायरसों को मारता है। हमिंग करना, भारतीय योगियों द्वारा ओम मंत्र का जाप अथवा भ्रामरी प्राणायाम का ही पर्याय है। पश्चिमपरस्त सेक्युलरिस्टों की जानकारी के लिए बताना जरूरी है कि इस आलेख के तीन में से एक लेखक डॉ. इरमिन वान डाइकेन अमेरिकी ईसाई हैं। इसी तरह बाबा रामदेव द्वारा सुझाए गए प्राचीन भारतीय विद्या योग और प्राणायाम, खासतौर से अनुलोम-विलोम और भस्त्रिका आक्सीजन स्तर को बनाए रखने में अत्यंत सहायक हैं।
कोरोना वायरस का मेडिकल साइंस में अभी कोई इलाज नहीं है। मनुष्य की अपनी प्रतिरोधक क्षमता ही फिलहाल एकमात्र इलाज है। प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में बाबा रामदेव द्वारा प्रचारित हर गांव-नगर में पाई जाने वाली गिलोय आदि को भी लोगों ने खूब अपनाया है। इसके अतिरिक्त आंवला, अश्वगंधा आदि जड़ी-बूटियों के अलावा लगभग हर भारतीय हिंदू के घर मौजूद तुलसी अत्यंत प्रभावकारी हैं। अनेक स्वास्थ्य विशेषज्ञ इम्युनिटी बूस्टर के रूप में इनका महत्व स्वीकार कर चुके हैं। हालांकि इस संदर्भ में भी शोध और वैज्ञानिक डाटा के साथ इसे प्रस्तुत किए जाने की आवश्यकता है, ताकि इसे एक प्रोटोकॉल के रूप में अपनाया जा सके। इसकी आवश्यकता इसलिए और है कि भविष्य में चीन जैसे देशों से फिर जैविक आक्रमण का खतरा है। किसी नए वायरस का तत्काल इलाज न उपलब्ध होने की स्थिति में प्रतिरोधक क्षमता ही प्रमुख आरंभिक उपाय होगी।
अमेरिकन जर्नल ऑफ इमरजेंसी मेडिसिन के जनवरी, 2021 अंक में छपे एक शोध पत्र के अनुसार हल्के से मध्यम कोविड रोगियों के इलाज में इंसेंटिव स्पाइरोमीटर उपयोगी है, जो एक तरफ फेफड़ों को मजबूत करता है और दूसरी तरफ म्यूकस (बलगम या कफ) निर्माण रोकता है। इससे निमोनिया होने की संभावना कम होती है। इंसेंटिव स्पाइरोमीटर गहरी सांस लेकर जोर से फूंकने का अभ्यास करने वाला यंत्र है। भारतीय संस्कृति में शंख बजाने की जो परंपरा है, वह इसी तरह की चीज है।
यह हमारा दुर्भाग्य है कि आजादी के 70 साल बाद भी हम अपनी अधिकांश ज्ञान-परंपरा और गौरवशाली वैज्ञानिक संस्कृति से अनभिज्ञ हैं। बहुत जरूरी है कि स्कूली पाठ्यक्रमों में इन सांस्कृतिक तत्वों को शामिल किया जाए। कोरोना से लड़ाई तो वैज्ञानिक और मेडिकल मोर्चे पर ही होगी, लेकिन इसमें प्राचीन भारतीय संस्कृति के तत्वों को शामिल करके कोरोना को मात देने में बड़ी मदद मिलेगी, इसमें संदेह नहीं।