मरने के बाद भी बड़ा मुद्दा छोड़ गए रोहित सरदाना, कोरोना के इलाज में इतना Confusion क्यों?

लोकप्रिय टीवी न्यूज एंकर रोहित सरदाना की मौत ने यह सोचने को विवश कर दिया है कि

Update: 2021-05-01 10:35 GMT

सुष्मित सिन्हा। संयम श्रीवास्तव। लोकप्रिय टीवी न्यूज एंकर रोहित सरदाना की मौत ने यह सोचने को विवश कर दिया है कि हर तरह से फिट आदमी भी क्यों और कैसे कोरोना का इतना आसान शिकार हो सकता है? उनकी दुखदायी मौत यह सोचने को मजबूर कर रही है कि क्या कहीं मेडिकल साइंस की चूक की वजह से तो ऐसा नहीं हुआ? दरअसल उन्हें जानने वालों का कहना है कि उन्हें शुगर-ब्लडप्रेशर जैसी कोई बीमारी नहीं थी. एक दिन पहले तक वो अपने ट्विटर हैंडल पर खूब ऐक्टिव थे. लगातार बीमार लोगों की मदद के लिए ट्वीट कर रहे थे. अचानक सुबह खबर मिलती है कि वो नहीं रहे.


मीडिया जगत के 2 महारथियों की उन पर लिखी पोस्ट भी उनके ट्रीटमेंट और मेडिकल साइंस की कमजोरियों की ओर इंगित कर रही है. रोहित सही मायने में एक ऐसे पत्रकार रहे जो मरने के बाद भी लोगों की भलाई के लिए एक मुद्दा छोड़ गए. रोहित की मौत के चलते ही देश में हो रही हजारों मौतों की चर्चा हो रही है कि आखिर कोरोना का जो इलाज डॉक्टर कर रहे हैं कहीं उनमें कोई खामी तो नहीं है?

क्या सही दिशा में हो रहा है कोरोना का इलाज?
यह बिल्कुल सही है कि कोरोना पेशेंट के लिए देश में डॉक्टर्स अभी कुछ निश्चित गाइडलाइंस पर नहीं चल पा रहे हैं, इसमें डॉक्टर्स का कोई दोष भी नहीं है क्योंकि कोरोना ने अपने दूसरे हमले में इतना सोचने का मौका ही नहीं दिया. देश भर के डॉक्टर्स के प्रिसक्रिप्शन अलग-अलग ढंग से इलाज करते दिख रहे हैं. दरअसल कोरोना को लेकर शुरू से इतने कन्फ्यूजन रहे हैं कि भारत क्या अमेरिका और यूरोप जहां बड़े पैमाने पर रिसर्च होते रहते हैं वहां भी डाक्टर्स-हेल्थ एक्सपर्ट और साइंटिस्ट कोरोना के इलाज को लेकर एक निश्चित गाइडलाइंस को लेकर एक मत होते कभी नहीं दिखे.

आपको याद होगा अमेरिका ने कोरोना इलाज के लिए भारत से भारी मात्रा मे एचसीक्यू टैबलेट्स मंगाए थे. एचसीक्यू को लेकर उस समय भी विरोध था पर बहुत से लोगों के लिए जीवनदायी होने के बावजूद एचसीक्यू का यूज रोक दिया गया. भारत में भी एचसीक्यू के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई. रेमडेसिविर के बारे में भी कुछ ऐसा ही है. एक तरफ भारत सरकार कह रही है कि रेमडेसिविर की कोई जरूरत नहीं हैं. बहुत कम मामलों में ये फायदेमंद है. अगर यह सही है तो फिर विदेशों से लाखों वायल रेमडेसिविर आयात क्यों हो रहा है? केवल दिल्ली-एनसीआर के कई मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों में रेमडेसिविर के इस्तेमाल के पैमानों में बहुत बड़ा अंतर है. डॉक्टर्स के पैमानों में अंतर देखकर तो हो सकता है कि आपको मेडिकल साइंस तुक्का विज्ञान लगने लगे. दरअसल डॉक्टर्स की इन्हीं उधेड़बुन को समझते हुए मशहूर टीवी जर्नलिस्ट रवीश कुमार देश भर के डाक्टर्स का एक कमांड सेंटर बनाने का सुझाव देते हैं.

रोहित सरदाना का केस
मशहूर इन्वेस्टगेटिव जर्नलिस्ट दीपक शर्मा अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि "रोहित के मामले में अगर कोई कमी, खामी, लाइन ऑफ़ ट्रीटमेंट में नहीं हुई है तो कोई बात नहीं, पर अगर 1 फीसदी भी हुई है तो तथ्य सामने आने चाहिए. डॉक्टर्स पर संदेह करना इस पोस्ट का मकसद कतई नहीं है, पर डॉक्टर्स का लाइन ऑफ़ ट्रीटमेंट क्या बिलकुल ठीक था, ये रोहित को पसंद करने वाले ज़रूर जानना चाहेंगे."

शर्मा कहते हैं कि उनके आखिरी ट्वीट से यह स्पष्ट होता है कि कोरोना संक्रमण के बाद भी वो 24 घन्टे पहले बिल्कुल ठीक थे. 29 अप्रैल की रात जब उन्हें कुछ तकलीफ होने पर नोएडा के एक निजी अस्पताल में दाखिल कराया गया. कुछ घंटे बाद सीने में दर्द हुआ तो ट्रीटमेंट भी तेजी से शुरू हुआ. जैसा बताया जा रहा है कि रोहित को कुछ देर बाद हार्ट अटैक आया और उन्हें बचाया नहीं जा सका. शर्मा कहते हैं कि मैं, एक मेडिकल एक्सपर्ट नहीं हूँ, इसलिए आगे, उनके इलाज को लेकर अपनी तरफ से कुछ कहना नहीं चाहता हूं. शर्मा कहते हैं कि "बेहतर होगा कि देश के स्थापित डॉक्टर्स का एक विशेषज्ञ पैनल, रोहित को दिए गए लाइन आफ ट्रीटमेंट और प्रोटोकॉल का बारीकी से विश्लेषण करें. उन्हें अस्पताल में, कब-कब, क्या-क्या दिया गया इसका विश्लेषण हो. जो दिया गया उसका असर क्या-क्या था, मरीज़ के लिए कितना मुफीद था? इस तरह की मेडिकल ओपिनियन, ओवरव्यू , बड़ी हस्तियों के मामले में अमेरिकी अस्पताल में दिए जाते हैं… सिर्फ इसलिए कि कहीं कुछ कमी तो नहीं रह गयी. या आगे के लिए लाइन ऑफ़ ट्रीटमेंट को क्या और दुरुस्त किया जा सकता है"

कमांड सेंटर बनना चाहिए
मशहूर टीवी पत्रकार रवीश कुमार लिखते हैं कि "मैं अभी भी सोच रहा हूँ कि इतने फ़िट इंसान के साथ ऐसी स्थिति क्यों आई या इतनी तादाद में क्यों लोग अस्पताल पहुँच रहे हैं? क्या लोग अपने लक्षण को नहीं समझ पा रहे हैं, समझा पा रहे हैं या डाक्टरों की सलाह को पूरी तरह से नहीं मान रहे हैं या एक से अधिक डाक्टरों की सलाह में उलझे हैं? "

रवीश कुमार कहते हैं कि मैं नहीं कहना चाहूंगा कि लापरवाही हुई होगी. यह सवाल मैं केवल रोहित के लिए भी नहीं कर रहा हूँ. रवीश कुमार रोहित की मौत को लेकर पूरे देश में हो रही कोरोना से मौतें और इलाज की बात करते हैं. वे दिल्ली के अलावा ज़िलों और क़स्बों में हो रही मौतों के बारे में सवाल करते हुए कहते हैं कि घरेलु स्तर पर इलाज में क्या कमी हो रही है जिसके कारण इतनी बड़ी संख्या में लोग अस्पताल जा रहे हैं? रवीश कुमार इस समस्या से निपटने के लिए एक कमांड सेंटर बनाने का सुझाव देते हैं जहां देश भर से रैंडम प्रेसक्रिप्शन और मरीज़ के बुख़ार के डिटेल को लेकर अध्ययन किया जाए और इस दौरान कोई चूक हो रही है तो उसे ठीक किया जाए. उनका कहना है कि जो अच्छे डाक्टर हैं उनके अनुभवों का लाभ ज़िलों तक एक साथ पहुँचाया जा सकता है ताकि डाक्टरों की दुनिया अपने अनुभवों को लगातार साझा करती रहे. यह काम कमांड सेंटर से ही हो सकता है क्योंकि निजी तौर पर अब डाक्टरों के पास कम वक़्त है.


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