किशोरियों में कुपोषण से गंभीर बीमारियों का खतरा

Update: 2022-12-01 07:38 GMT

रेहाना कौसर

पुंछ, जम्मू

केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती जिला पुंछ की तहसील मंडी के दरहा दीना गांव की निवासी 13 वर्षीय नजमा सातवीं कक्षा की छात्रा थी. एक दिन जब वह स्कूल से घर वापस आई तो उसके पेट में भयानक दर्द होने लगा. इससे उसका पूरा शरीर कांपने लगा. दस दिनों तक दर्द चलता रहा. दर्द की गंभीरता के कारण उसका पूरा शरीर पीला पड़ गया. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए वह पास के अस्पताल या नर्सिंग होम में जांच के लिए नहीं जा सकी. दस दिन बीत गए और वह घर पर ही दर्द से कराहती रही. लेकिन उसे कोई मदद नहीं मिली. न तो समय पर दवा मिल पाई और न ही उसे बेहतर खाना मिल सका. आखिर ग्यारहवें दिन नज़मा की मौत हो गई. उसकी मां नसीमा अख्तर बेटी की मौत से सदमे में है. उनका कहना है कि मैं गरीबी के कारण उसका ठीक से इलाज नहीं करा पाई. मेरे पास उसे खून चढ़ाने के लिए पैसे नहीं थे. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण वह कुपोषित हो गई थी. दो वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से मिलती है. मैं उसे ठीक से खाना नहीं खिला पाती थी. कई बार वह भूखी ही स्कूल चली जाती थी. मुझे चिंता रहती थी कि कहीं मेरी बेटी भूख से न मर जाए और आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था. भूख के कारण उसका खून सूख गया और आज वह मुझे छोड़कर चली गई.

नसीमा का कहना है कि मेरे घर में एक भी दवा नहीं थी जो मैं उसे देती. वह कहती हैं कि किशोरियों के लिए सरकार की बहुत सारी योजनाएं हैं, लेकिन ऐसी योजनाओं का क्या काम जो मेरी बेटी के काम नहीं आई? मेरे घर से आधा किमी दूर डिस्पेंसरी है लेकिन उसमें किसी भी तरह की दवा नहीं होती है. मेरी बेटी बिना दवा के घर में तड़प रही थी. वह कहती हैं कि मेरी दो अन्य बेटियां नौ साल की रुबीना कौसर और उन्नीस साल की शाजिया कौसर हैं. मैं नहीं चाहती कि उनके साथ भी नजमा जैसा हाल हो. मैं सरकार से कुछ मदद चाहती हूं ताकि अपनी दोनों बेटियों की अच्छे से परवरिश कर सकूं. नसीम अख्तर का कहना है कि मेरे पति मानसिक रूप से कमजोर हैं. ऐसे में मुझे ही मेहनत मजदूरी कर बच्चों का पेट पालना पड़ता है. मैं किसी योजना के तहत हमारी मदद चाहती हूं ताकि मेरी दोनों बेटियों को उचित पोषण मिल सके.

इस बारे में गांव के बुजुर्ग मुहम्मद बशीर का कहना है कि नसीमा के घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छे नहीं है कि वह नजमा का बेहतर इलाज करा पाती. वह दवा की एक गोली के लिए तरस रही थी. वह कहते हैं कि हमें बस इस बात का मलाल है कि यहां के डिस्पेंसरी और अस्पताल बेकार हैं क्योंकि उनके पास जरूरी दवाइयां तक उपलब्ध नहीं हैं. वहीं एक और स्थानीय निवासी मोहम्मद रफीक का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं होती है कि वे अपने बच्चों को बेहतर भोजन उपलब्ध करा सकें. जो कुछ भी होता है वह पहले घर के लड़के को दिया जाता है, यही वजह है कि इन क्षेत्रों में ज्यादातर लड़कियां कुपोषित होती हैं. घर की आर्थिक स्थिति नहीं सुधरने के कारण नजमा भी कुपोषण का शिकार हो गई थी. उनका कहना है कि भले ही उसकी मौत कुपोषण से हुई है, लेकिन इसके लिए पूरा गांव, समाज और स्थानीय प्रशासन भी जिम्मेदार है. जिसने अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई है. किशोरियों में कुपोषण के खतरे को कम करने के लिए कई योजनाएं हैं लेकिन हम सब इसे नजमा तक पहुंचाने में नाकाम रहे.

इस संबंध में वार्ड नंबर 6 के युवा पंच मोहम्मद शब्बीर मीर भी मानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में किशोरियों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है, जबकि यही वह समय है जब उन्हें कुपोषण से बचाया जा सकता है. ऐसे ही हालात रहे तो नाजिमा जैसी और भी कई बेटियों की जान चली जाएगी. वहीं स्थानीय महिला शमशाद अख्तर कहती हैं कि हाल के वर्षों में देखें तो कम उम्र की लड़कियों में तरह-तरह की बीमारियां फैल रही हैं. इन बीमारियों के इलाज के लिए नि:शुल्क शिविर लगाए जाते हैं और नि:शुल्क दवाइयां भी दी जाती हैं. लेकिन यहां इस दुर्गम पहाड़ी इलाके में इन योजनाओं का न तो कोई नाम है और न ही डिस्पेंसरी में ऐसी कोई दवा है जिससे लोगों को राहत मिले. वह कहती हैं कि किशोरियों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. इस समय उन्हें पौष्टिक भोजन प्रदान करने की आवश्यकता है.

वहीं एक स्थानीय नर्स यास्मीन अख्तर का कहना है कि वैज्ञानिक शोध के कारण उपचार के नए नए तरीके खोजे जा रहे हैं, जिससे किशोरियों के मौजूदा स्वास्थ्य समस्याओं को हल करने में काफी सुधार हुआ है. वह कहती हैं कि किशोरियां कई तरह की बीमारियों से पीड़ित हो सकती हैं जैसे मासिक धर्म का दर्द, कमर दर्द, पेट दर्द, रक्तस्राव, पोषण की कमी, कैंसर, उच्च रक्तचाप, यकृत रोग आदि. ऐसे में उन्हें जागरूक होना चाहिए कि हम अपने जीवन की रक्षा कैसे करें? इन बीमारियों से कैसे बचा जा सकता है? वह किशोरियों को समय पर खाने, ज्यादा से ज्यादा पानी पीने, अच्छा खाना खाने, खुद को साफ रखने और सुबह जल्दी उठकर कुछ व्यायाम करने की सलाह देती हैं. वह कहती हैं कि किसी भी तरह के दर्द या परेशानी में फ़ौरन नजदीकी अस्पताल जाकर जांच कराएं ताकि किसी भी बीमारी का समय रहते पता चल सके. वह कहती हैं कि युवा लड़कियों को इन बातों पर ध्यान देने की जरूरत है तभी वह स्वस्थ रह सकती हैं. वह स्वीकार करती हैं कि कुपोषण किशोरियों में कई बीमारियों के खतरे को बढ़ा रहा है. जिस पर घर और समाज सभी को ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि कुपोषित किशोरियों से स्वस्थ समाज की परिकल्पना संभव नहीं है. यह लेख संजय घोष मीडिया अवार्ड 2022 के तहत लिखा गया है. (चरखा फीचर)

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