हमारे देश में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी डायबिटीज प्रभावित आबादी है. बीते तीन दशकों में इससे प्रभावित लोगों की संख्या में 150 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. कोरोना संक्रमण का कहर भी ऐसे लोगों पर सर्वाधिक रहा. डायबिटीज होने पर कई तरह की बीमारियों का अंदेशा बढ़ जाता है. यह भी एक बड़ा चिंताजनक तथ्य है कि 25 से 34 साल तक के युवा इससे बड़े पैमाने पर प्रभावित हो रहे हैं. दुनियाभर में 20 साल से कम आयु के 11 लाख लोग टाइप-वन डायबिटीज से पीड़ित हैं, जिनमें बहुत से भारतीय हैं.
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने अनेक निर्देश जारी किये हैं. संस्थान ने कहा है कि खाने-पीने में सावधानी बरतने और लगातार शारीरिक सक्रियता से टाइप-वन स्थिति में सुधार किया जा सकता है. समय-समय पर खून में ग्लूकोज की मात्रा की जांच भी कराते रहना चाहिए. हमारे देश के बड़े हिस्से, खासतौर पर दक्षिण और पूर्वी भारत, में भोजन में सामान्य कार्बोहाईड्रेट की मात्रा बहुत अधिक होती है.
कुल कार्बोहाईड्रेट में कॉम्पलेक्स कार्बोहाइड्रेट कम-से-कम 70 फीसदी होना चाहिए. विशेषज्ञों की राय में डायबिटीज का सीधा संबंध जीवनशैली से है. सुविधाओं के बढ़ने तथा जीवन की आपाधापी में शारीरिक सक्रियता घटी है. टेलीविजन, कंप्यूटर और स्मार्टफोन ने भी हमें शिथिल बना दिया है. तेज रफ्तार से हो रहे शहरीकरण से खाना-पान में जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक, डिब्बाबंद पदार्थ आदि की घुसपैठ हो गयी है. इससे गांव और कस्बे भी अछूते नहीं हैं.
इसका एक असर मोटापा के रूप में हमारे सामने है, जो एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बनता जा रहा है. मोटापा और डायबिटीज का भी एक संबंध बनता है. ये दोनों एक साथ जीवन के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं. भारत में जिन लोगों में डायबिटीज पाया गया है, उनमें करीब 50 फीसदी को कोई लक्षण नहीं थे. इसका मतलब यह है कि अगर जांच नहीं करायी जाए, तो हमें लंबे समय तक इसका पता भी नहीं चल सकता है और यह बढ़ता जा सकता है.
हमारे देश में स्वास्थ्य सेवा के लिए अधिकांश खर्च अपनी जेब से करना होता है और डायबिटीज परीक्षण के लिए कोई कार्यक्रम भी नहीं है. ऐसे में अपने स्तर पर ही सतर्क रहना चाहिए और जांच कराते रहना चाहिए. परिवार में अगर इसका इतिहास है, तो कुछ अधिक सचेत रहना जरूरी है क्योंकि वैसे में इसके होने की संभावना कुछ बढ़ जाती है. आम तौर पर 'शुगर' के नाम से ज्ञात इस समस्या में रक्त धमनियों में समस्या होने से हृदय रोग की आशंका भी अधिक हो जाती है.
समुचित भोजन और नियमित व्यायाम से हम ग्लूकोज स्तर को सीमित, वजन को संतुलित तथा मन-मस्तिष्क को भी शांत रख सकते हैं. यदि हम जागरूक रहें और आसपास के लोगों से भी जानकारियों का आदान-प्रदान करें, तो डायबिटीज से निजात पाना या उसे नियंत्रित रखना संभव है
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय