महिलाओं का सम्मान :  सुप्रीम कोर्ट को सलाम

इसमें कोई शक नहीं कि महिलाओं को लेकर हर किसी को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे क्या कह रहे हैं।

Update: 2021-03-21 00:51 GMT

इसमें कोई शक नहीं कि महिलाओं को लेकर हर किसी को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे क्या कह रहे हैं। महिलाओं का सम्मान हमारा कर्त्तव्य होना चाहिए लेकिन दु:ख की बात यह है कि महिलाओं से छेड़छाड़ की और अन्य यौन अपराधों की घटनाएं न सिर्फ बढ़ रही हैं बल्कि आज भी अदालतों में चालीस लाख से ज्यादा केस चल भी रहे हैं। पिछले दिनों एक निचली अदालत में केस आया कि किस प्रकार एक महिला से किसी ने छेड़छाड़ की तो उस पीडि़त महिला से छेड़छाड़ करने वाले आरोपी को जमानत चाहिए थी। सुनवाई के दौरान आरोपी को कहा गया कि क्या वह पीडि़ता को बहन मानकर राखी बंधवा सकता है। यह मामला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से जुड़ा था। दरअसल हाईकोर्ट ने छेड़छाड़ के इस मामले में आरोपी के समक्ष शर्त रख दी कि अगर उसे जमानत चाहिए तो उसे पीडि़ता से राखी बंधवानी होगी। इस शर्त को लेकर महिला वकीलों ने कहा कि यह फैसला शत-प्रतिशत कानून के खिलाफ है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट एक्शन में आई और दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने देश की तमाम अदालतों को मशविरा दिया है कि महिलाओं के केस में निर्णय सुनाते समय पुरानी रूढ़ीवादी ख्याली और दकियानूसी सोच वाली राय किसी पर ना थाैंपी जाये। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने छेड़छाड़ के आरोपी को राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत देने का मध्य प्रदेश हाई काेर्ट का फैसला भी खारिज कर दिया। सचमुच सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देश में एक उदाहरण है और सोशल मीडिया तथा देश के अनेक सामाजिक और महिला संगठन इसका स्वागत कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के लिए कई सलाह भी जारी की हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतें कभी भी ऐसी बातें जो रूढि़वादी हो उन्हें अपने फैसलों में कभी न लिखें जैसे कि महिला शाररीक तौर पर कमजोर है और उसकी सुरक्षा चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी बात लिखना कि महिलाएं खुद फैसले लेने में सक्षम नहीं इसलिए आदमी ही घर का हेड है, यह सब गलत है। कभी-कभी कह दिया जाता है कि हालात के मुताबिक महिलाओं को समझौता कर लेना चाहिए, सुप्रीम कोर्ट की नजर में ऐसा कहना भी गलत है। कई बार ऐसी दकियानूसी बातें कह देना कि महिलाएं क्योंकि ज्यादा अनुशासित होती हैं इसलिए वह समझौता कर लें। यह कहना कि जो अच्छी महिलाएं होती हैं वह सैक्सुली पवित्र होती है, ऐसा कहकर महिलाओं पर आप अपनी राय नहीं थोप सकते। सुप्रीम कोर्ट ने ये सब टिप्पणियां एक आदेश के रूप में देश की तमाम अदालतों के नाम जारी की हैं। एक और अहम टिप्पणी काबिलेगौर है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि अदालतें महिलाओं की ड्रेस को लेकर या फिर उनके खाने-पीने को लेकर यह कहना कि वे ऐसा करके पुरुषों को अपने ऊपर अपराध के लिए आमंत्रित करती हैं यह भी गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं की ड्रेस और उनके खानपान को लेकर अदालतोंं को टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। अगर ऐसा किया जाता है तो फिर अपराध करने वालों को बढ़ावा मिलता है और अन्य लोग बिना मतलब के टिप्पणियां करने लगते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक गुनाहगार जो किसी महिला को छेड़ता है और उसे जमानत के लिए आप उस लड़की को गुनाहगार को भाई मनवाने के लिए मजबूतर करना तो दूर कह भी कैसे सकते हैं। आरोपी को भाई की तरह कोई भी पीडि़ता नहीं मानेगी। इसे मंजूर नहीं किया जा सकता। दरअसल जो लोग यौन अपराध करते हैं आप उनकी जमानत के लिए कोई शर्त नहीं रख सकते। अदालतों के आदेश में पुरुषवादी सोच नहीं होनी चाहिए जो महिलाओं का अपमान करती हो। सुप्रीम कोर्ट की इस नई गाइडलाईन का स्वागत हो रहा है और स्वागत किया भी जाना चाहिए। आखिरकार महिलाओं के प्रति अपमान और गुनाह तथा अन्य टिप्पणियां किसी भी सूरत में रोकी जानी चाहिए। हम बराबर यह कहते रहे हैं कि देरी से मिला इंसाफ किसी काम का नहीं। लिहाजा महिलाओं से जुड़े सेक्स असाल्टीड केस में गुनाहगार की जमानत के लिए पुराने दौर की दकियानूसी सोच खत्म करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट के इस महान फैसले की जितनी प्रशंसा की जाये वह कम है।


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