शोध पर जोर

अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति है और सबसे बड़ी सामरिक शक्ति भी। कई सारे क्षेत्र हैं,

Update: 2021-05-31 02:29 GMT

अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति है और सबसे बड़ी सामरिक शक्ति भी। कई सारे क्षेत्र हैं, जिनमें अमेरिका दूसरे बडे़ देशों से काफी पिछड़ा हुआ है, खासकर औद्योगिक उत्पादन में, पर एक क्षेत्र है, जो उसे लगातार सबसे आगे बनाए हुए है, और वह है- शोध। अमेरिका लंबे वक्त से वैज्ञानिक और तकनीकी शोध का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है। नतीजतन, जो सबसे आधुनिक और नए क्षेत्र हैं, उनमें उसका बोलबाला है। मसलन, आईटी क्षेत्र और नई अर्थव्यवस्था में वह सबसे आगे है। चाहे माइक्रोसॉफ्ट हो, गूगल हो, फेसबुक-ट्विटर हों, एपल हो या अमेजन, ये सारी अमेरिकी कंपनियां हैं। अमेरिका की इस शक्ति को और बढ़ाने के लिए राष्ट्रपति जो बाइडन ने अब शोध के मद में सरकारी बजट में जबर्दस्त बढ़ोतरी का प्रस्ताव किया है। बाइडन के आर्थिक कार्यक्रम का मुख्य मुद्दा बुनियादी ढांचे के लिए छह लाख करोड़ डॉलर खर्च करना है। इसमें शोध एवं विकास (आरऐंडडी) का बजट नौ प्रतिशत बढ़ाने का प्रस्ताव है। इस प्रस्ताव के तहत शुद्ध विज्ञान और उसके व्यावहारिक पक्ष, दोनों पर खर्च बढ़ाने की बात कही गई है, सिर्फ रक्षा संबंधी आरऐंडडी के मद में कटौती की जाएगी। अमेरिकी इतिहास में यह शोध संबंधी खर्च में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी है।

सबसे ज्यादा पैसा स्वास्थ्य संबंधी शोध पर बढ़ाने का प्रस्ताव है और रोगों के नियंत्रण व रोकथाम संबंधी शोध के लिए 22 प्रतिशत खर्च बढ़ाने का प्रस्ताव है। जाहिर है, कोरोना के कहर से नई अमेरिकी सरकार सबक सीखना चाहती है और आइंदा ऐसे संकटों से अपनी जनता को बचाने के लिए पूरी तैयारी करना चाहती है। इसमें अमेरिका के स्वास्थ्य क्षेत्र को और ज्यादा मजबूत करने के लिए भी प्रावधान है और दुनिया के दूसरे देशों को इस क्षेत्र में मदद करने के लिए भी। स्वास्थ्य में शोध सिर्फ प्रयोगशालाओं में माइक्रोस्कोप से संबंधित शोध नहीं है, स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता में गैर-बराबरी, संस्थागत नस्लवाद मिटाने और पर्यावरण में बदलाव से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं पर शोध भी शामिल हैं। डोनाल्ड ट्रंप जलवायु परिवर्तन को नकारने और पर्यावरण के मुद्दों की उपेक्षा करने में आम अनुदार राजनेताओं से भी बहुत आगे थे। उनके दौर में अमेरिका ने पर्यावरण संबंधी कोई भी जिम्मेदारी स्वीकार करने से मना कर दिया था, बल्कि वह पेरिस जलवायु समझौते से भी हट गया था। पर बाइडन ने अपने चुनाव प्रचार में ही साफ कर दिया था कि पर्यावरण उनकी सरकार की प्राथमिकताओं में होगा। पर्यावरण से जुड़े शोध के लिए भी बजट में बड़ी वृद्धि का प्रस्ताव है। बहुत बड़ी योजना ऐसी टेक्नोलॉजी पर शोध की है, जो पर्यावरण के नजरिये से निरापद हो। अमेरिकी सरकार ने जिस तरह की पहल की है, उससे भारत जैसे देशों को भी सीखना चाहिए। आने वाला वक्त नई चुनौतियां लेकर आएगा और उनसे वही पार पा सकेगा, जिसके पास ज्ञान की शक्ति होगी। वही दूसरों की मदद भी कर पाएगा। अमेरिकी कामयाबी का रहस्य सिर्फ पैसा नहीं है, वह माहौल भी है, जो नए विचारों व शोध को प्रोत्साहित करता है, और जो सिर्फ विज्ञान नहीं, कला, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, ज्ञान के हरेक क्षेत्र में दुनिया भर की प्रतिभाओं को अपनी ओर खींचता है। शोध के फलने-फूलने के वास्ते उर्वर जमीन तैयार करना देश और दुनिया के भविष्य की बेहतरी के लिए अनिवार्य है।


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