डंडे पर भरोसा

लोकतंत्र को जीवित नहीं रखा जा सकता। इससे पहले भी कुछ मामलों में सर्वोच्च न्यायालय यह रेखांकित कर चुका है।

Update: 2022-02-14 01:52 GMT

आपराधिक गतिविधियों, उपद्रवी तत्त्वों पर नकेल कसना राज्य सरकारों का दायित्व है। मगर इस जिम्मेदारी की आड़ में जब सरकारें वैमनस्यता की भावना से काम करना शुरू कर देती हैं और किसी खास समुदाय या वर्ग के खिलाफ नाहक कड़ाई से पेश आने लगती हैं तो उन पर अंगुलियां उठनी स्वाभाविक है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को इसी वजह से काफी किरकिरी झेलनी पड़ी और अब सर्वोच्च न्यायालय की फटकार भी सुननी पड़ी है।

दरअसल, योगी सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रहे लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में उनकी संपत्ति जब्त कर वसूली का नोटिस जारी कर दिया था। आठ सौ तैंतीस लोगों को उपद्रवी बता कर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया और करीब ढाई सौ लोगों को वसूली का नोटिस भेजा गया। हालांकि नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में शुरू हुआ आंदोलन कोई उग्र नहीं था, मगर चूंकि योगी सरकार को सरकार का किसी भी प्रकार का विरोध बर्दाश्त नहीं, वह भी अगर अल्पसंख्यक समुदाय विरोध कर रहा हो, तो उसे वे किसी रूप में पसंद नहीं कर सकते थे, इसलिए आंदोलनकारियों पर नकेल कसने की मंशा से उन्होंने यह कड़ाई की थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने कड़े शब्दों में कहा है कि सरकार तुरंत जुर्माना रद्द करे, नहीं तो वह खुद उसे रद्द कर देगा। इस वक्त विधानसभा चुनाव की गहमागहमी है और इस माहौल में सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश योगी प्रशासन को असहज करने वाला है। हालांकि यह अकेला मामला नहीं, जिसमें योगी सरकार ने ऐसे मनमाने कदम उठाए। कृषि कानूनों के विरोध में उठे आंदोलन को दबाने के लिए भी उन्होंने लगभग यही तरीका अपनाया था, जिसमें बहुत सारे किसानों से वचनपत्र भरवा लिया गया था कि अगर वे आंदोलन में गए, तो उन्हें कठोर दंड का भागी बनना पड़ेगा।
बहुत सारे किसानों पर मुकदमे लाद दिए गए। अनेक मौकों पर खुद मुख्यमंत्री सार्वजनिक मंचों से घोषणा करते फिरे कि अगर किसान नहीं सुधरे, तो उन्हें सुधार दिया जाएगा। उनके ट्रैक्टरों को तेल देने से मना कर दिया गया। फिर प्रदेश को अपराधमुक्त बनाने के तर्क पर उन्होंने पुलिस को इस कदर मुक्तहस्त कर दिया कि वे किसी भी अपराधी को बिना चेतावनी के गोली मार देने को स्वतंत्र हो गए। मुख्यमंत्री ने खुद इसे अपनी 'ठोंको' नीति बताया। पूरे पांच साल इसी तरह उनका डंडे पर भरोसा अधिक देखा गया।
देश का संविधान किसी को भी, चाहे वह प्रचंड बहुमत से बनी सरकार ही क्यों न हो, यह इजाजत नहीं देता कि वह डंडे के बल पर नागरिक अधिकारों को कुचलता फिरे। सरकार की किसी नीति या फैसले से किसी भी नागरिक को असहमत होने और विरोध दर्ज कराने का अधिकार है। मगर योगी सरकार को यह अधिकार किसी को देना गवारा न हुआ।
इसके चलते प्रदेश में निरंतर एसी घटनाएं होती रहीं, जिनमें पुलिस निर्दोष नागरिकों को भी मौत के घाट उतारने से बाज नहीं आए। विचित्र है कि नागरिकता कानून के विरोध को दबाने के लिए ऐसे लोगों पर भी जुर्माना ठोंक दिया गया, जिनका वर्षों पहले इंतकाल हो चुका था, तो कुछ की उम्र नब्बे पार हो रही थी। ऐसी अंधेरगर्दी पर सर्वोच्च न्यायालय की नाराजगी समझी जा सकती है। इस तरह असहमति की अवाजों को दबा कर लोकतंत्र को जीवित नहीं रखा जा सकता। इससे पहले भी कुछ मामलों में सर्वोच्च न्यायालय यह रेखांकित कर चुका है।

सोर्स: जनसत्ता

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