कारोबारियों को राहत

जीएसटी काउंसिल ने शनिवार को हुई अपनी 48वीं बैठक में इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर सहमति दे दी कि अधिकतम 2 करोड़ रुपये तक की गड़बड़ियों के मामलों में मुकदमा नहीं चलाया जाएगा।

Update: 2022-12-19 06:55 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | जीएसटी काउंसिल ने शनिवार को हुई अपनी 48वीं बैठक में इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर सहमति दे दी कि अधिकतम 2 करोड़ रुपये तक की गड़बड़ियों के मामलों में मुकदमा नहीं चलाया जाएगा। अभी तक यह सीमा एक करोड़ रुपये थी। काउंसिल ने सरकारी ऑफिसर के काम में बाधा पहुंचाने, सबूतों से छेडछाड़ करने और आवश्यक सूचनाएं मुहैया न कराने जैसे आरोपों को भी दंडनीय अपराध की श्रेणी से बाहर करने की बात कही है। ये फैसले कारोबारियों को बड़ी राहत देने वाले हैं। असल में कारोबारियों के लिए टैक्स चुकाना उतना बड़ा सिरदर्द नहीं होता, जितना कर अधिकारियों को इस बात का विश्वास दिलाना कि उन्होंने नियमानुसार टैक्स भरे हैं। अक्सर इस बात को लेकर दोनों पक्षों में मतभेद होता है कि कितना टैक्स चुकाया गया है और कितना बनता है। अगर ये मतभेद आपस में नहीं सुलझते तो मामला अदालत पहुंचता है। अक्सर ऐसी स्थिति में अदालतों पर मुकदमे का बोझ तो बढ़ता ही है, कारोबारियों का भी वक्त जाया होता है। जो ईज ऑफ डुइंग बिजनेस के लिहाज से ठीक नहीं होता।

2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद इसी वजह से बीजेपी सरकार ने ईज ऑफ डुइंग बिजनेस पर जोर दिया और इसे लेकर राज्यों में एक स्वस्थ स्पर्धा भी शुरू हुई है। राज्य अपने यहां कारोबार के लिए सुगम स्थिति बनाकर अधिक से अधिक निवेश आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। 2014 से पहले यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में टैक्स टेररिज्म बड़ा मुद्दा बन गया था। तब हुए लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी का एक बड़ा वादा यह भी था कि सत्ता में आने पर वह टैक्स टेरर को समाप्त कर देगी। इस दिशा में पिछले वर्षों में प्रयास भी बीजेपी सरकार ने किए हैं। 2014 में जहां भारत ईज ऑफ डुइंग बिजनेस इंडेक्स में 142वें स्थान पर हुआ करता था, वहीं 2022 में 63वें स्थान पर आ गया। जीएसटी लाने के पीछे भी एक उद्देश्य यह भी था कि टैक्स व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़े। जीएसटी सिस्टम ने बेशक कुछ चीजें आसान बनाईं लेकिन कुछ मामलों में इसने जटिलता बढ़ा भी दी। ऐसे में दो करोड़ रुपये तक के मामलों में मुकदमेबाजी से छूट की घोषणा निस्संदेह बड़ी राहत है। सरकारी काम में बाधा पहुंचाने और आवश्यक सूचनाएं उपलब्ध न कराने जैसे आरोपों को दंडनीय अपराध के दायरे से बाहर करना भी अच्छा कदम है। देश ने लंबे वक्त तक इंस्पेक्टर राज का दुष्परिणाम देखा है। तब बात-बात पर कारोबारियों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते थे और अपना जायज काम करवाने के लिए भी घूस देनी पड़ती थी। वहीं, गलत इनवॉयस बनाने और फर्जी बिल दिए जाने वाले मामलों को ठीक ही इस छूट से बाहर रखा गया है, जिसकी शिकायत मिलती रही है। जीएसटी काउंसिल के हालिया फैसलों से कारोबारी सुगमता बढ़ेगी, लेकिन इस टैक्स व्यवस्था में आगे भी सुधार जारी रखने होंगे।

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