इस महामारी के वक्त में कोरोना संक्रमण के निदान से जुड़े चिकित्सा उपकरणों और जरूरी दवाओं पर वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी में कटौती निस्संदेह एक सराहनीय कदम है। शनिवार को जीएसटी परिषद की बैठक में आॅक्सीमीटर, आॅक्सीजन सांद्रक, वेंटीलेटर, कोरोना जांच उपकरण, रेमडेसिविर आदि पर जीएसटी बारह प्रतिशत से घटा कर पांच फीसद करने का फैसला किया गया। एंबुलेंस पर अट्ठाईस से घटा कर बारह फीसद और सेनिटाइजर पर अठारह से घटा कर पांच फीसद कर दिया गया है। कवक संक्रमण की दवाओं पर कोई जीएसटी नहीं लगेगा।
हालांकि यह फैसला कुछ और पहले किया जाता, जब देश में हर तरफ इन चीजों की मांग बढ़ गई थी और कई चीजों की कमी की वजह से लोगों को परेशानियां उठानी पड़ रही थीं, तब शायद ज्यादा लोगों को राहत मिलती। मगर चूंकि सरकार पहले ही जीएसटी संग्रह में भारी गिरावट की वजह से परेशानियों का सामना कर रही है, इसलिए उसके लिए यह फैसला करना आसान नहीं था। फिलहाल इन वस्तुओं पर करों में कटौती अगले कुछ महीनों के लिए ही की गई है। फिर भी अभी कोरोना संक्रमण की समस्या पर पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका है। कवक संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, ऐसे में इस कटौती से लोगों को राहत मिलेगी
कोरोना संक्रमण के उपचार में खासा खर्च बैठता है, कई बार सामान्य आय वर्ग की क्षमता से बाहर। हालांकि सरकारी अस्पतालों में मुफ्त जांच और इलाज की व्यवस्था है, फिर भी कई जगह कुछ दवाइयां और उपकरण उपलब्ध न होने के कारण लोगों को खुद खरीद कर लाना पड़ता है। निजी अस्पतालों में तो सारा खर्च मरीज को ही उठाना पड़ता है। इस तरह कोरोना संबंधी उपकरणों और दवाओं पर कर में कटौती की वजह से लोगों पर खर्च का बोझ कुछ कम हो सकेगा। सरकार के लिए यह फैसला करना कठिन था, क्योंकि इस दौरान कारोबारी गतिविधियां रुकी या फिर धीमी होने की वजह से पहले ही जीएसटी संग्रह में भारी कमी दर्ज हो चुकी है।
मई महीने में जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ रुपए से थोड़ा ही अधिक रहा, जबकि अप्रैल में यह 1.24 लाख करोड़ था। वित्त मंत्रालय ने पांच करोड़ तक के सालाना कारोबार करने वालों के लिए जीएसटी भुगतान में पंद्रह दिन की छूट दे रखी है। ऊपर से तमाम जरूरी खर्चों के अलावा कोरोना संक्रमण से लड़ने में काफी धन व्यय हो रहा है। इसमें राज्यों को भी मदद देनी पड़ रही है। फिर भी उसने करों में कटौती करके अपना मानवीय दायित्व निभाया है।
जबसे केंद्रीय कर व्यवस्था लागू हुई है, तभी से किसी न किसी अड़चन की वजह से इसकी दरों में लगातार संशोधन करते रहना पड़ा है। कायदे से तीन सालों के बाद इन करों के में स्तर ठहराव आ जाना चाहिए था। सैद्धांतिक तौर पर माना गया था कि करों में स्थायित्व आने के बाद उन करों में कटौती होनी शुरू हो जाएगी, जिनकी दरें अधिक हैं। मगर ऐसा नहीं हो पाया है।
उपभोक्ता जरूरतों से जुड़ी वस्तुओं पर करों को नीचे रखा गया था, पर विलासिता की वस्तुओं पर दरें ऊंची रखी गई थीं। मगर बहुत सारी वस्तुएं ऐसी हैं, जो सामान्य उपभोक्ता के उपयोग में भी आती हैं, जैसे एंबुलेंस सेवाएं, उन पर भी जीएसटी अट्ठाईस फीसद थी। अब वह घट कर बारह हुई है। जीएसटी अगर अपने मकसद में कामयाब हो जाता तो शायद सरकार को बार-बार ऐसे फैसलों में हिचक नहीं होती।