राहत की बूंदें

बीते हफ्ते तक मौसम में तापमान का जो स्तर बना हुआ था, उसमें एक ओर इस बात की आशंका बनी हुई थी कि गर्मी और लू कहीं आम जनजीवन को ज्यादा बाधित न कर दे, तो दूसरी ओर खरीफ फसलों पर इसका नकारात्मक असर न पड़े।

Update: 2022-05-31 05:10 GMT

Written by जनसत्ता: बीते हफ्ते तक मौसम में तापमान का जो स्तर बना हुआ था, उसमें एक ओर इस बात की आशंका बनी हुई थी कि गर्मी और लू कहीं आम जनजीवन को ज्यादा बाधित न कर दे, तो दूसरी ओर खरीफ फसलों पर इसका नकारात्मक असर न पड़े। लेकिन अब मौसम के रुख में जो बदलाव आ रहा है, उससे लगता है कि इस साल देश के कई इलाकों में मानसून वक्त से पहले दस्तक दे रहा है। इससे जहां लू के थपेड़ों से जूझते लोगों को राहत मिल सकती है, वहीं खेती-किसानी के मामले में अच्छी फसल की उम्मीद बनी है।

यों मौसम की अपनी गति होती है और उसके रुख में कब किस तरह का बदलाव आ जाए, यह पर्यावरण में उतार-चढ़ाव पर निर्भर होता है। कई बार प्रकृति में होने वाली उथल-पुथल की वजह से कहीं अनावृष्टि तो कहीं अतिवृष्टि भी होती है। लेकिन मौसम विभाग ने भी अनुमान जताया था कि मानसून इस साल समय से पहले आ जाएगा और मई के आखिर तक भारतीय तटों तक पहुंच जाएगा और सबसे पहले केरल में मानसूनी बारिश की पहली फुहार पड़ेगी।

इस लिहाज से देखें तो बीते शनिवार से ही केरल के चौदह मौसमी स्टेशनों में से दस में हो रही बारिश मौसम विभाग के अनुमान के मुताबिक ही है। सामान्य स्थितियों में केरल और आसपास के इलाकों में मानसून जून की शुरुआत में पहुंचता है। मगर केरल के बाद अब मानसून अपने अगले पड़ाव यानी कर्नाटक और पूर्वोत्तर के इलाकों में तीन-चार दिन में पहुंच सकता है। इसके अलावा, दस से बीस जून के बीच यह महाराष्ट्र और गुजरात में दस्तक दे सकता है। फिर संभव है कि सही समय पर देश के बाकी हिस्सों में भी बारिश की फुहार कई स्तरों पर राहत दे।

मसलन, दिल्ली और आसपास के इलाकों में भी सोमवार को तेज हवा के साथ बारिश के झोंकों ने मौसम विभाग के अनुमान के मुताबिक ही आने वाले दिनों में तापमान में नरमी रहने का संकेत दिया है। दक्षिण-पश्चिम मानसून का समय से पहले आगमन तब हुआ, जब उत्तर भारत के लगभग सभी इलाकों में भीषण गर्मी से जनजीवन अस्त-व्यस्त चल रहा था। बल्कि तापमान में जिस तरह बढ़ोतरी देखी गई थी, उसमें आने वाले वक्त में फसलों के भी इससे प्रभावित होने की आशंका जाहिर की जाने लगी थी।

गौरतलब है कि पिछले दस सालों में यह तीसरी बार है जब मानसून ने वक्त से पहले दस्तक दे दी। इससे पहले 2017 और 2018 में अनुमानित वक्त या उससे थोड़ा पहले ही मानसून केरल पहुंच गया था। दरअसल, भारत की अर्थव्यवस्था जिस तरह मुख्य रूप से कृषि पर आधारित रही है, उसमें मानसून को काफी अहम माना जाता है। इसकी वजह यही है कि देश में खेती-किसानी और खासतौर पर खरीफ फसलें सिंचाई के लिए कमोबेश बरसात के भरोसे ही होती हैं। जहां सिंचाई के लिए वैकल्पिक संसाधनों का अभाव होता है, वहां किसान इस मौसम में मानसून की उम्मीद में होते हैं।

अच्छा यह है कि मौसम विभाग ने इस साल मानसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की है। यानी अगर इसका रुख सामान्य बना रहा तो इस साल अनाज की अच्छी पैदावार की उम्मीद की जा सकती है। इससे न केवल किसानों की आय और ग्रामीण इलाकों में मांग बढ़ेगी, बल्कि बाजार में खाने-पीने के सामान की बेलगाम हो चुकी महंगाई की रफ्तार भी थोड़ी थम सकती है। पिछले काफी समय से पूर्णबंदी और महामारी से जूझती अर्थव्यवस्था को इस साल का मानसून एक बार फिर गति दे सकता है।


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