रामनवमी विशेष: दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज नहिं काहुहि ब्यापा

सामान्य बोलचाल की भाषा में रामराज की बात कह दी जाती है

Update: 2022-04-10 10:08 GMT
सामान्य बोलचाल की भाषा में रामराज की बात कह दी जाती है। यानी भारत में रामराज को आदर्श माना जाता है। भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक दत्तोपंत ठेंगरी, रामराज को क्लासलेस सोसाइटी की तरह का शासन मानते थे। दूसरी ओर राम से ज्यादा राम के नाम का प्रभाव दिखता है। तुलसी दास जी कहते हैं कि कलयुग केवल नाम अधारा। मसलन राम शब्द का अर्थ होता है स्वयं के अंदर का प्रकाश। भगवान श्रीराम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
राम से पहले राम के नाम का प्रभाव व्यापक हो चुका था और जमदग्नि ने अपने प्रतापी पुत्र का नाम भी राम ही रखा था, जो बाद में चलकर परशुराम के नाम से विख्यात हुए। चूंंकि वे अपने साथ परशु रखते थे इसलिए उनका नाम परशुराम पड़ गया।
राम के चरित्र पर दुनिया भर में कई किताबें लिखी गई हैं। राम के चरित्र पर लिखी गई सबसे पुरानी किताब वाल्मिकी रामायण को ही माना जाता है। हालांकि इस मामले में विद्वानों के बीच मतैक्य नहीं है, लेकिन ज्यादातर लोग इसी रामायण को आद्य रामायण मानते हैं। एक अध्यात्म रामायण भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे खुद भगवान शिव ने पार्वती को सुनाने के लिए रचा था।
सामान्य राजा के रूप में भी भगवान राम के चरित्र को देखें तो...
राम के राज्य में प्रजा बेहद सुखी थी
इंडोनेशिया, मलेशिया, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, कंबोडिया श्रीलंका, नेपाल, थाइलैंंड आदि देशों में भगवान श्रीराम और माता जनक नंदनी सीता का विशेष प्रभाव है। यहां के लोग किसी न किसी रूप में अपने आप को भगवान श्री राम के निकट पाते हैं।
भारतीय काल गणना के अनुसार भगवान श्री राम का जन्म 7560 ईसा पूर्व अर्थात् 9500 वर्ष पूर्व हुआ था। भारत में बड़े-बड़े आक्रांता आए लेकिन भगवान श्री राम को इस देश से खत्म नहीं कर पाए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भगवान श्री राम इस देश की जनता के मन में विराजमान हैं।
यदि एक सामान्य राजा के रूप में भी भगवान राम के चरित्र को देखें तो अनुकरणीय है। राम राज्य के बारे में महात्मा गांधी ने भी कई जगह विस्तार से चर्चा की है। सुराज और राम राज की वे बात करते थे। तुलसी दास जी ने अपने रामायण में लिखा है, ''दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, रामराज काहु नहीं व्यापा।''
इसका अर्थ यह हुआ कि राम के राज्य में देह से संबंधित रोग, दैवीय प्रकोप और भौतिक आपदा किसी प्रकार का प्रभाव नहीं था। राजा रामचन्द्र ने सभी प्रकार के प्रकोपों पर विजय प्राप्त कर लिया था। इसका अर्थ यह है कि राम के राज्य में प्रजा बेहद सुखी थी।
कर्म के विभाजन की बात होती है तो शासन को संतुलन पर ध्यान रखना पड़ता है...
राम के राज्य में एक व्यक्ति एक काम के सिद्धांत को सख्ती से पालन किया जाता था
राम के राज्य में एक व्यक्ति एक काम के सिद्धांत को सख्ती से पालन किया जाता था
चारो ओर समृद्धि का माहौल था, लेकिन राम के बारे में कहा जाता है कि जब एक साधारण धोबी ने यह कहा कि मैं कोई राम हूं जो दूसरे के यहां रहने के बाद भी अपना लूंगा। यह कहने पर भगवान ने अपनी धर्म पत्नी को सीता का त्याग कर दिया।
इस मामले में कई महिलावादी राम को पुरुषोत्तम तो मानती हैं, लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम मानने से इनकार करती हैं। हर किसी की अपनी-अपनी व्याख्या होती है, लेकिन दुनिया में प्रजा के प्रति इतना संवेदनशील राजा का उदाहरण और कहीं नहीं मिलता है।
कुछ आलोचक राम की आलोचना इस बात को लेकर करते हैं कि उन्होंने एक शूद्र विद्वान शंबुक की हत्या कर दी क्योंकि वह ब्राह्मण नहीं था। इस पर भी कई विद्वान अपने-अपने तरीके से तर्क देते हैं, लेकिन जब कर्म के विभाजन की बात होती है तो शासन को संतुलन पर ध्यान रखना पड़ता है।
आज कर्म का विभाजन नहीं है। राम के राज्य में एक व्यक्ति एक काम के सिद्धांत को सख्ती से पालन किया जाता था। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो काम को लेकर अराजकता की स्थिति पैदा हो जाती, जैसे उससे पूर्व में हुआ था।
राम का व्याप आज भी कई देशों में देखने को मिलता है...
राजा रामचन्द्र के राज में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी
राज्य के अराजकता की कहानी वैदिक कथाओं में कई जगह आती है। जैसे महाराजा पृथु की कथा। महाराजा पृथु राजा वेन के पुत्र थे। भूमण्डल पर सर्वप्रथम सर्वांगीण रूप से राजशासन स्थापित करने के कारण उन्हें पृथ्वी का प्रथम राजा भी माना जाता है।
साधुशीलवान अंग के दुष्ट पुत्र वेन को तंग आकर ऋषियों ने हुंकार-ध्वनि से राजा वेन को मार डाला था। तब अराजकता के निवारण हेतु नि:संतान मरे वेन की भुजाओं का मन्थन किया गया जिससे स्त्री-पुरुष का एक जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष का नाम 'पृथु' रखा गया तथा स्त्री का नाम 'अर्चि'। वे दोनों पति-पत्नी हुए। उन्हें भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी का अंशावतार भी माना जाता है।
महाराज पृथु ने ही पृथ्वी को समतल किया जिससे वह उपज के योग्य बनाया। महाराज पृथु से पहले इस पृथ्वी पर पुर-ग्रामादि का विभाजन नहीं था। लोग अपनी सुविधा के अनुसार बेखटके जहां-तहां बस जाते थे। महाराज पृथु अत्यन्त लोकहितकारी राजा साबित हुए। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने 99 अश्वमेध यज्ञ किए थे।
इसका अर्थ यह है कि उन दिनों अराजकता के कारण वेन को मार दिया गया था। वशिष्ट और विश्वामित्र के बीच की लड़ाई के पीछे का कारण भी कर्म विभाजन ही था। हालांकि शंबूक को दिए गए राज दंड पर सकारात्मक और नकारात्मक विचार रखने वाले अपने-अपने तर्क देते हैं, लेकिन इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि राज राज्य इतना समृद्ध और समुन्नत इसलिए भी था कि उस समय कर्म विभाजन का सख्ती से पालन किया जाता था।
राम के दंड का भागी तो उनकी पत्नी, प्राणों से भी प्रिय, सीता को भी बनना पड़ा था, इसलिए राम राज्य के बारे में कहा जाता है कि राजा रामचन्द्र के राज में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। हर ओर आनंद था और शांति थी। यही कारण है कि राम का प्रताप आज भी कई देशों में देखने को मिलता है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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