लड़कियों की शादी की उम्र ही बढ़ाना काफी नहीं…!

क्या स्थिति है लड़कियों की शादी की

Update: 2021-12-23 08:52 GMT
यह ठीक है कि लड़कियों की शादी की उम्र लड़कों के बराबर ही हो, वह क्यों लड़कों से पहले शादी करने के लिए मजबूर हों, लेकिन क्या यह कानून लाने से पहले भारतीय समाज के बिगड़े हुए ताने-बाने को भी इस लायक बनाएंगे, जिसमें कोई भी माता-पिता के मन में यह ख्याल नहीं आए कि बेटी के जल्दी से जल्दी हाथ पीले करना है. मुश्किल यह है कि देश में कानून तो बहुत बनाए जा रहे हैं, बल्कि हर समस्या का हल कानून से ही निकालने की कोशिश होती है, जैसे कि हमने देखा कि बच्चियों के मामले में फांसी जैसी कठोरतम सजा का प्रावधान कर दिया गया, लेकिन इससे बलात्कार की घटनाएं कितनी रुकीं, यह भी सामने है. ऐसे में बालिकाओं के मामले में भी यह नया प्रावधान बालिका समानता के लिए कितना प्रभावी होगा, कह पाना फिलहाल मुश्किल है.
क्या स्थिति है लड़कियों की शादी की
बाल विवाह की देश में बहुत चिंतनीय स्थिति रही है, बल्कि अब भी है. देश के सबसे ताजा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में अब भी देश में 20 से 24 साल के मध्य आयु वाली 23 प्रतिशत लड़कियों का बाल विवाह होना पाया गया है. पिछले पांच साल में यह तीन प्रतिशत तक कम हुआ है. लेकिन यदि जनगणना के आइने में बाल विवाह की स्थिति को देखेंगे तो वहां पर यह भयावह नजर आती है, भारत की जनगणना 11 के अनुसार देश में तकरीबन 52 लाख लड़कियों की शादी उम्र से पहले ही हो चुकी थी, जबकि 69 लाख बच्चे ऐसे थे जो तय उम्र से पहले ही विवाह के बंधन में बंध गए थे.
इसको और बारीकी से देखें तो 15 वर्ष से कम आयु की कुल 17.8 करोड़ लड़कियां थीं, जिनमें से 18.12 लाख लड़कियों की शादी हो चुकी थी. बात इतने भर से नहीं रुकती है, इनमें से तकरीबन 4.57 लाख लड़कियां बच्चों को जन्म भी दे चुकी थीं यानी वे मां बन गईं थी, इनमें से भी 1.37 लाख एक बच्चे और 3.2 लाख दो बच्चों की मां बन चुकी थीं.
15 से 19 वर्ष तक की बच्चियों का देखें तो इसमें भी ऐसी तस्वीर सामने आती है, जिस पर हम कैसे सोचें, समझें और सुधारें समझना मुश्किल है. इस आयु वर्ग की इस आयु वर्ग की 6 लाख लड़कियां 2 बच्चों की मां बन चुकी थीं, 2.15 लाख लड़कियां 3 बच्चों की और 2.84 लाख लड़कियां 4 बच्चों की मां बन चुकी थीं. इन्हें सामने रखकर आप उस समाज की आप कल्पना कीजिए तो अपने समाज की लड़कियों के प्रति कितना संवेदनशील होता होगा. जाहिर सी बात है ऐसी लड़कियों की शिक्षा तो छूट ही जाती है, पर यह व्यवहार होता किन कारणों से है, उस पर भी गौर करने की जरुरत है.
लेकिन मामले तो दर्ज ही नहीं होते…
बाल-विवाह रोकने के लिए भारत में बाल-विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 था. एक बार फिर 2006 में बाल-विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 बनाकर लागू किया गया. इसके बाद देश में बाल-विवाह करने पर 2 साल की सजा या 1 लाख रुपए का अर्थदंड हो सकता है. बाल विवाह में किसी भी प्रकार का सहयोग करने पर भी इतनी सजा हो सकती है, लेकिन 2014 से लेकर 2016 तक देश में बाल विवाह के केवल 326 मामले पंजीकृत हुए. इनमें से केवल 35 मामलों में ही दोष सिद्ध हो सका. क्या बाल विवाह हुए ही नहीं या हम दोषी साबित करने में पीछे रह गए ? और यह स्थिति केवल इसी कालखंड की नहीं है. ऐसा हमेशा से होता रहा है, तो जब कानून का पालन करने में और सजा दिलाने में इतना नरम रवैया अपनाया जा रहा हो, वहां केवल कानून के एक संशोधन से कैसे बालिकाओं के सवाल हल हो पाएंगे ?
तो नई परिस्थिति से कैसे निपटेंगे ?
लड़कियों के विवाह की उम्र बढ़ाना एक आदर्श स्थिति है, लेकिन उस आदर्श स्थिति से हमारा समाज बहुत ही पीछे है. जिन परिवारों ने यह स्थिति प्राप्त कर ली है, वहां पर बिना किसी कानून के लड़कियों की शादी ज्यादा उम्र में हो रही है क्योंकि उनकी पढ़ाई, कैरियर का सवाल होता है, और वे कमोबेश ज्यादा सुरक्षित परिवेश में रहती हैं, लेकिन देश की सत्तर प्रतिशत से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे है, और संकट इसी वर्ग की बेटियों का है. यही वह वर्ग है जो इस बात के लिए चिंतित रहता है कि उसकी बेटी का ब्याह जल्दी से जल्दी हो, और वह अपने कर्तव्यों के बंधन से छुटकारा पा ले, बिना किसी कलंक के अपनी बेटी को विदा कर दे, क्योंकि उसके आसपास रातदिन घटते अपराध उसे डरा देते हैं. ऐसे अनेक सवाल हैं, जिनके चलते वह 18 साल तक की उम्र तक नहीं रुक पा रहा था, और अब तो उसे तीन साल और इंतजार करने को कहा जा रहा है, यह कितना व्यवहारिक साबित होगा, इस बात पर निर्भर करेगा कि समाज और सरकार बेटियों को कानून के अलावा क्या सुरक्षा देते हैं, पोषण देते हैं, शिक्षा देते हैं, भेदभाव से मुक्ति देते हैं.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
 
राकेश कुमार मालवीय वरिष्ठ पत्रकार
20 साल से सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव, शोध, लेखन और संपादन. कई फैलोशिप पर कार्य किया है. खेती-किसानी, बच्चों, विकास, पर्यावरण और ग्रामीण समाज के विषयों में खास रुचि.
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