सत्ता के लिए बेसब्र राहुल गांधी: नकारात्मक मानसिकता से नहीं सकारात्मक एजेंडों से बनेगी बात

सत्ता के लिए बेसब्र राहुल गांधी

Update: 2022-02-09 17:21 GMT
यह जगजाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) एक बहुत अच्छे वक्ता हैं. बीते कई वर्षों में, उन्होंने अपने खिलाफ आलोचना से ध्यान हटाने और उनसे सवाल करने वालों को कटघरे में खड़ा करने की कला में महारत हासिल की है. एक असहाय कांग्रेस पार्टी (Congress Party) ने सोमवार को इस सबक को और अच्छी तरीके से सीखा और उसे सर छुपाने के लिए जगह तलाशनी पड़ी. इसमें कोई दो राय नहीं है कि 2020 की शुरुआत में जब भारत में कोरोना (Corona) संक्रमण फैलना शुरु हुआ तो कांग्रेस पार्टी ने इसमें राजनीतिक अवसर देखा और इस वैश्विक महामारी का पूरा दोष मोदी और उनकी सरकार पर मढ़ने की पूरी कोशिश की.
कांग्रेस के लिए ये उस व्यक्ति को घेरने का मौका था जिसने लगातार दो संसदीय चुनावों में देश की सबसे पुरानी पार्टी को कुचल दिया था. कोशिश ये थी कि उन्हें एक अक्षम और असंवेदनशील नेता साबित कर, एक चुनी हुई सरकार को अस्थिर कर जल्दी चुनाव कराने के लिए मजबूर कर दिया जाए ताकि कांग्रेस पार्टी के शाश्वत राजकुमार देश के राजा बन सकें.
यह भी एक सच्चाई है कि शायद चीन को छोड़कर कोई भी देश इस पैमाने की महामारी से निपटने के लिए तैयार नहीं था. हर देश और उसके नेता, चाहे वह देश कितना भी अमीर और विकसित क्यों न रहा हो, इस महामारी से निपटने के लिए तैयार नहीं था. भारत अमीर और विकसित देशों की श्रेणी में नहीं था और राष्ट्रों के उस एलीट समूह में शामिल होने की उसकी दौड़ महामारी से बुरी तरह आहत हुई थी. भारत का अपेक्षाकृत खराब स्वास्थ्य ढांचा बुरी तरह बेनकाब हो गया, लेकिन क्या इसके लिए अकेले मोदी को दोषी ठहराया जा सकता है?
कांग्रेस के साथ समस्या ये है कि वह मोदी को हटाने की जल्दबाजी में है
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में अपने भाषण के दौरान मोदी पर निशाना साधा, और बिना तैयारी और योजना के लॉकडाउन लागू करने और बाद में प्रवासी श्रमिकों के पलायन के लिए उन्हें इस तरह दोषी ठहराया जैसे बड़े महानगरों से लोगों के पलायन से मोदी और उनके तथाकथित पूंजीवादी मित्रों, जिनके लिए उन पर काम करने का आरोप लगाया जाता है, को मदद मिली होगी. यह सही है कि मोदी सरकार इतनी बड़ी तबाही के लिए तैयार नहीं थी और मोमबत्तियां जलाने और बर्तनों की पिटाई से कोरोनावायरस को दूर भगाने के उनके आह्वान ने तर्क और वैज्ञानिक स्वभाव, जिसके बारे में वह अक्सर बोलते हैं, को नजरअंदाज किया.
हालांकि, लोग इस बात को भूल जाते हैं कि मोदी सरकार के अलावा, विभिन्न राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में 30 अन्य निर्वाचित सरकारें भी थीं. हां, भारत दुनिया के बाकी देशों की तरह खतरे से निपटने में विफल रहा, लेकिन यह सभी सरकारों की सामूहिक विफलता थी और भारत ने दशकों से जो वितरण प्रणाली बनाई थी, उसके लिए एक व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
कांग्रेस पार्टी के साथ समस्या ये है कि वह मोदी को हटाने और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाने की असाधारण जल्दबाजी में है. महामारी के दौरान कांग्रेस पार्टी अपनी जानी पहचानी राजनीति 'शूट एंड स्कूट' (गोली चलाओ और भागो) के साथ सामने आई. कांग्रेस की पटकथा बिलकुल सीधी थी – गरीबों को डराओ और उसका दोष मोदी सरकार पर मढ़ दो, जिससे कि उन्हें राजनीतिक लाभ मिल सके. यह सब पीड़ितों के लिए कांग्रेस पार्टी के आह्वान के साथ शुरू हुआ. राष्ट्र के खजाने को खोलना शायद एकमात्र रणनीति है जो कांग्रेस जानती है जिससे उसकी छवि लोगों के बीच अच्छी बन सके. यही वादा वह उन राज्यों में भी कर रही है जहां चुनाव होने वाले हैं.
राहुल गांधी 'शूट एंड स्कूट' की रणनीति का प्रदर्शन कर रहे थे
देश की सबसे पुरानी पार्टी से प्रभावित होकर कई अन्य पार्टियां जैसे आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी यही रणनीति अपनायी. यह अच्छी तरह से जानते हुए कि ग्रामीण बुनियादी ढांचा तुलनात्मक रूप से खराब था और कोरोना से निपटने के लिए तैयार भी नहीं था, दिल्ली की आप सरकार और महाराष्ट्र के सत्तारूढ़ गठबंधन, जिसमें कांग्रेस पार्टी एक घटक है, ने लोगों को न घबराने और वहीं रोके रखने का कोई प्रयास नहीं किया. इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि आप सरकार ने दिल्ली की झुग्गी कॉलोनियों में प्रवासी मजदूरों के शहर छोड़ने की घोषणा की थी, लेकिन इस बात के सबूत हैं कि उन्हें रोकने का कोई प्रयास नहीं किया गया. बजाय इसके, आप सरकार ने उत्तर प्रदेश में दिल्ली की सीमाओं तक उन्हें यात्रा की सुविधा दी. दहशत फैलाने की यही रणनीति मुंबई में भी देखी गई, जहां प्रवासियों को घर वापस ले जाने के लिए विशेष ट्रेनों के बारे में झूठी अफवाहें फैलाई गईं.
बीते हफ्ते जब राहुल गांधी लोकसभा में बोल रहे थे तो इसी 'शूट एंड स्कूट' की रणनीति का प्रदर्शन कर रहे थे. उस समय मुद्दा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस का था. राहुल गांधी ने विषय से विचलित होकर हर चीज का दोष मोदी सरकार पर मढ़ दिया और प्रधानमंत्री का जवाब सुने बिना अपने कार्यक्रम में व्यस्त हो गए. उनके बचाव की जिम्मेदारी अब पार्टी नेताओं के अयोग्य कंधों पर आ गई है.
जैसे कि मोदी अभ्यस्त हैं, उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर पलटवार किया और कांग्रेस पार्टी के शासन काल के गड़े मुर्दे उखाड़ कर रख दिए. कांग्रेस पार्टी के लिए शायद यह समझने का समय आ गया है कि एक रचनात्मक विपक्ष होने और नकारात्मक बयानों और नकारात्मक मानसिकता के जरिए पार्टी के एक खास नेता को प्रधानमंत्री बनाने की जल्दबाजी होने में बड़ा फर्क होता है.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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