महारानी एलिजाबेथ
वे सबसे लंबे समय तक ब्रिटेन की महारानी रहीं। सत्तर साल। इस बीच उन्होंने देश और दुनिया में आए अनेक राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखे। कई ब्रिटिश उपनिवेशों को उजड़ते देखा तो अपने राजमुकुट पर उठते सवालों का भी सामना किया। अनेक बार सवाल उठे कि जब राजशाही समाप्त हो गई
Written by जनसत्ता: वे सबसे लंबे समय तक ब्रिटेन की महारानी रहीं। सत्तर साल। इस बीच उन्होंने देश और दुनिया में आए अनेक राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखे। कई ब्रिटिश उपनिवेशों को उजड़ते देखा तो अपने राजमुकुट पर उठते सवालों का भी सामना किया। अनेक बार सवाल उठे कि जब राजशाही समाप्त हो गई, लोकतंत्रीय व्यवस्था लागू हो गई, तब भी सर्वोच्च पद पर राजपरिवार के ही व्यक्ति को क्यों होना चाहिए।
मगर ब्रिटेन के लोगों की निष्ठा अपनी रानी में बनी रही। कई मौकों पर उनके परिवार के सदस्यों को लेकर भी कुछ विवाद उपजे, जिनसे उनकी छवि पर आंच आई, मगर वे उन सबसे खुद को बहुत समझदारी से बाहर निकाल ले गर्इं। हालांकि लोकतांत्रिक व्यवस्था के बाद ब्रिटेन में सम्राट या सम्राज्ञी का पद सदा से शोभा का ही पद रहा है, मगर महारानी एलिजाबेथ द्वितीय न सिर्फ अपने देश की राजनीतिक गतिविधियों पर चुपचाप बारीक नजर रखती थीं, बल्कि दुनिया के देशों की भी उन पर नजर रहती थी। वे तीन बार भारत की यात्रा पर आई थीं। आजादी की पचासवीं वर्षगांठ पर जब वे आर्इं तो बहुत साहस के साथ उन्होंने भारत के खिलाफ अतीत में हुई ब्रिटिश ज्यादतियों पर अफसोस जताया और जलियांवाला बाग भी गई थीं, जहां सैकड़ों निहत्थे लोगों को गोलियों से भून दिया गया था।
दूसरे महायुद्ध के बाद दुनिया काफी बदलने लगी थी, तब उन्होंने ब्रिटेन की राजगद्दी संभाली थी। उसके बाद दुनिया भर में मजदूरों, किसानों, महिलाओं, दबे-कुचले लोगों के अधिकारों के लिए आवाजें उठने लगी थी। ब्रिटेन भी उनसे अछूता नहीं था। राजशाही की जगह लोकशाही स्थापित हो चुकी थी, मगर ब्रिटेन के संविधान में चूंकि सर्वोच्च पद राज परिवार के उत्तराधिकारी के लिए सुरक्षित रखा गया है, उनका पद महफूज रहा।
उन्होंने पूरी गरिमा के साथ अपने पद का निर्वाह किया, जबकि पिछले सत्तर सालों में ब्रिटेन खुद राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से काफी बदल गया। यूरोपीय देशों के साथ उसके संबंधों में भी बदलाव नजर आया। रूस-यूक्रेन युद्ध ने ब्रिटेन की पक्षधरता को भी प्रश्नांकित किया। मगर कभी उन्होंने ब्रिटिश सरकार के किसी फैसले में उन्होंने किसी प्रकार की दखलअंदाजी करने या अपनी कोई सलाह देने की कोशिश नहीं की।
दरअसल, लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में भी अलग-अलग देशों में अपने प्रथम नागरिक के पद को लेकर अलग-अलग नियम-कायदे, परंपराएं काम करती आ रही हैं। कई जगह जहां निर्वाचन के माध्यम से भी सर्वोच्च पद तय होता है, वहां भी वह अक्सर शोभा का ही पद होता है। कुछ देशों ने जरूर राष्ट्रपति प्रणाली अपना रखी है, इसलिए वहां सर्वोच्च पद से ही सारे फैसले किए जाते हैं।
नहीं तो ज्यादातर देशों में प्रधानमंत्री ही सरकार का सर्वोच्च पद माना जाता है और वही तय प्रक्रिया के तहत सरकार के तमाम फैसले करता है। ब्रिटेन ने राजशाही घराने के उत्तराधिकारी को अपना सर्वोच्च माना और उसे सरकारी गतिविधियों में दखलअंदाजी से दूर रखा। एलिजाबेथ द्वितीय ने उस मर्यादा का निर्वाह किया और कभी अपनी महत्त्वाकांक्षा थोपने का प्रयास नहीं किया। यही वजह है कि राजमुकुट के प्रति वहां के लोगों का सम्मान अब भी बना हुआ है और राजशाही के खिलाफ आवाजें उठती रहने के बावजूद उस पर कोई आंच नहीं आने पाई है। महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की गरिमामयी स्मृति ब्रिटेन के लोगों में लंबे समय तक बनी रहेंगी।