Punjab Election : तो क्या पंजाब में कांग्रेस थाली में सजाकर सौंपने जा रही है आम आदमी पार्टी को सत्ता

चन्नी और सिद्धू में क्यों उलझी रही पार्टी

Update: 2022-03-07 16:05 GMT
संयम श्रीवास्तव।
अगर एग्जिट पोल (Punjab Exit Poll) को सही माने तो पंजाब में पिछले चुनावों में सरकार बनाने से वंचित रह गई आम आदमी पार्टी (AAP) इस बार प्रदेश में सरकार बनाने जा रही है. आम तौर पर जब सभी ओपिनियन पोल एक ही बात कह रहे होते हैं तो गलती की गुंजाइश कम ही होती है. इसलिए अब यह तय लग रहा कि पंजाब में कांग्रेस (Congress) ने खुद अपनी पार्टी पर एक नहीं कई कुल्हाड़ी चलाई है, जिसका प्रतिफल अब मिल रहा है. कैप्टन अमरिंदर की ससम्मान विदाई में असफल पार्टी ने नवजोत सिंह सिद्धू पर पहले भरोसा नहीं किया.
उसके बाद दलित नेता के नाम पर कुर्सी पर बैठाए गए चरणजीत सिंह चन्नी को सरकार चलाने तक की पूरी छूट न देने वाली पार्टी ने चुनाव के हफ्ते भर पहले सीएम कैंडिडेट घोषित करके पार्टी कार्यकर्ताओं और वोटर्स के बीच अपनी भद पिटा ली. पार्टी हाईकमान के लापरवाह रवैये और समस्या को टाले रहने की रणनीति ने एक और राज्य उनके हाथ से संभवत: हमेशा के लिए निकाल दिया है.
टीवी9 भारतवर्ष/Polstrat के एग्जिट पोल में AAP को स्पष्ट बहुमत मिल सकता है. अगर रीजन वाइज सीट शेयरिंग की बात करें तो माझा में आम आदमी पार्टी को सबसे अधिक सीटें मिलने की उम्मीद है. एग्जिट पोल के मुताबिक, माझा में केजरीवाल की पार्टी को 48-50 सीटें मिल सकती हैं. वहीं अगर वोट शेयरिंग की बात करें तो आप को यहां 46.84 फीसदी वोट मिले हैं. पंजाब में सिखों ने आम आदमी पार्टी को सबसे अधिक वोट दिया है. एग्जिट पोल के मुताबिक, पंजाब में आप (AAP) को 45.2 फीसदी वोट मिले हैं.
चन्नी और सिद्धू में क्यों उलझी रही पार्टी
कैप्टन अमरिंदर को हटाने के बाद पार्टी को चरणजीत सिंह चन्नी पर भरोसा जताना चाहिए था. पर ऐसा नहीं हुआ. एक मुख्यमंत्री के लिए इससे अधिक शर्म की क्या बात हो सकती है कि उसके लिए गए फैसले को पलट दिया जाए. डीजीपी और प्रदेश अधिवक्ता की नियुक्ति के मामले में जिस तरह हाईकमान ने नवजोत सिंह सिद्धू के आगे घुटने टेक दिए थे उसका संदेश तो गलत ही जाना था. सिद्धू गलतियां पर गलतियां कर रहे थे और पार्टी उनको शह दिए जा रही थी.
एक दलित नेता से उसके नाम पर दलितों के वोट लेने की उम्मीद पाले बैठी पार्टी हर रोज उसका अपमान कर रही थी. चुनाव से कुछ दिन पहले जब सारे टिकट बंट गए, चुनावों से पहले सीएम को अपने मर्जी से काम नहीं करने दिया गया उसके बाद उस शख्स को सीएम कैंडिडेट घोषित किया जाता है. पंजाब का वोटर इतना बेवकूफ नहीं है जो चन्नी और सिद्धू की लड़ाई में फंसने वाली सरकार की फिर से ताजपोशी करा कर राज्य की दुर्गति करा दे.
कैप्टन अमरिंदर को परेशान किया
जिस पार्टी में कैप्टन अमरिंदर जैसे सम्मानित और वरिष्ठ नेता जिसने पार्टी को उसके सबसे बुरे दौर में सत्ता दिलाई, उस पार्टी के हाईकमान के पास उससे मिलने के लिए समय नहीं था. समय न होना फिर भी ठीक है पर बार-बार दिल्ली बुलाकर उनसे उम्र में आधे लोग उनसे न मिले ये बहुत शर्मिंदगी की बात थी. दूसरी तरफ पार्टी हाईकमान के लोग पार्टी अध्यक्ष नवजोत सिद्धू के लिए हमेशा मौजूद रहे. पार्टी में फूट डालने का काम कोई और नहीं पार्टी के बड़े नेता खुद कर रहे थे.
जब पार्टी हाईकमान को ही ना कैप्टन के उम्र का लिहाज रहा ना उनके कद का तो औरों का क्या कहना. वह भी तब जब देश में सीर्फ तीन राज्यों में पार्टी की सरकार हो. मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय कानून मंत्री रह चुके अश्वनी कुमार जैसे अनुभवी नेता को भी ये कहना पड़ा कि जिस तरह की लीडरशिप को पंजाब में पेश किया गया, वह पिछले 40 सालों में सबसे खराब है. जिस तरह से कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपमानित किया गया, इस्तीफा देने को मजबूर किया गया है, उससे कांग्रेस का कोई अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा. मैं इससे दुखी हुआ, मैं इसकी निंदा करता हूं.
सुनील जाखड़ जैसे कद्दावर नेता को राजनीति से संन्यास की बात कहनी पड़ी
हाल ही में सुनील जाखड़ ने दावा किया था कि बीते साल अमरिंदर सिंह के अचानक हटने के बाद पार्टी के 42 विधायक उन्हें मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते थे. इस खुलासे के बाद आप ने कांग्रेस पर जाति और धर्म के आधार पर राजनीति करने का आरोप लगाया था. बीजेपी ने भी सवाल उठाते हुए कहा था कि जाखड़ को उनके धर्म के कारण मुख्यमंत्री बनाने से इनकार कर दिया गया. बाद में सुनील जाखड़ ने यह ऐलान कर दिया कि वह सक्रिय राजनीति से दूर हो रहे हैं.
अमरिंदर सिंह के हटने के बाद सुनील जाखड़ मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे थे, लेकिन पार्टी ने चरणजीत सिंह चन्नी को तरजीह दी. चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के पहले दलित सीएम बने. चरणजीत सिंह चन्नी सीएम का चेहरा बनने की रेस में भी सुनील जाखड़ को पछाड़ने में कामयाब रहे. 1954 में अबोहर के पंजकोसी गांव में जन्मे सुनील जाखड़ 2002 से 2017 के बीच अबोहर से तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं. वह राज्य की पिछली अकाली-बीजेपी सरकार के दौरान पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं.
न हिंदुओं का वोट मिला न सरदारों का
टीवी 9 भारतवर्ष के एग्जिट पोल के अनुसार पंजाब में आम आदमी पार्टी को करीब 23 परसेंट दलितों का वोट मिला है. इस तरह कांग्रेस के अंतिम समय तक चन्नी के नाम पर ढुलमुल रवैये के चलते पार्टी का दलित कार्ड भी नहीं चला. नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह को पार्टी ने जिस तरह बेआबरू किया उससे सरदारों का भी वोट नहीं मिला. जहां तक हिंदुओं की बात है कैप्टन अमरिंदर की पॉलिसी थी प्रदेश के हिंदुओं को साथ ले कर चलना. सुनील जाखड़ जैसे नेताओं की नाराजगी के बाद हिंदुओं का वोट भी शायद ही कांग्रेस को मिला हो.
पंजाब में दलितों ने किसे वोट दिया?
आप- 22.9 फीसदी
कांग्रेस- 46.9 फीसदी
अकाली दल- 20.8 फीसदी
बीजेपी गठबंधन- 5.7 फीदसी
अन्य- 3.6 फीसदी
सिखों ने किसे वोट दिया?
आप- 45.2 फीसदी
कांग्रेस- 22.0 फीसदी
अकाली दल- 25.4 फीसदी
बीजेपी गठबंधन- 2.5 फीदसी
अन्य- 4.8 फीसदी
मुस्लिमों ने किसे वोट दिया?
आप- 41.0 फीसदी
कांग्रेस- 37.48 फीसदी
अकाली दल- 14.94 फीसदी
बीजेपी गठबंधन- 1.11 फीसदी
पिछले चुनावों से नहीं लिया सबक
2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर अगर नजर डालें तो पता चलता है कि आम आदमी पार्टी को पंजाब में 23.7 फ़ीसदी वोट हासिल हुए थे और सीटों की बात करें तो उसे 117 विधानसभा सीटों में से 20 पर जीत हासिल हुई थी. हालांकि 2022 का चुनाव आते-आते आम आदमी पार्टी के विधायकों की संख्या घटकर 11 रह गई थी. जबकि अगर हम 2019 के लोकसभा चुनाव में पंजाब के भीतर आम आदमी पार्टी के परफॉर्मेंस को देखें तो उसे पंजाब की कुल 13 लोकसभा सीटों में से सिर्फ एक सीट पर जीत मिली थी.
यह जीत आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान को पंजाब के संगरूर सीट से मिली थी. सबसे खास बात यह थी कि पंजाब की किसी भी और सीट पर आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर पर भी नहीं थी. हालांकि संगरूर सीट पर भगवंत मान ने कांग्रेस नेता केवल सिंह ढिल्लों को 110211 वोटों से हराया था. लेकिन अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में पंजाब में आम आदमी पार्टी के वोट पर्सेंटेज की बात करें तो इस चुनाव में आप को महज 7.38 फ़ीसदी ही वोट मिले थे. जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को पंजाब में 24 फ़ीसदी वोट हासिल हुए थे.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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