राष्ट्रपति चुनाव : द्रौपदी मुर्मू होने का दर्द और हर्ष, क्या बदलेगी जनजातीय समाज की दशा

यह मोदी युग का एक क्रांतिकारी कदम है। यह सफल हो, यही महादेव से प्रार्थना है।

Update: 2022-07-24 01:43 GMT

राष्ट्रपति पद पर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के पदासीन होने से देश के उस वर्ग में व्यक्तिगत हर्ष व्याप्त हुआ है, जो अभी तक उपेक्षित, असंरक्षित और विदेशी आक्रमणों का शिकार होता आया है। हम सब, जो जीवन में जनजातीय क्षेत्रों में काम करते रहे, उनके मध्य एकरस राष्ट्र के भाव को फैलाते हुए उनके आर्थिक सामाजिक उन्नयन में जुटे रहे, वे जानते हैं कि जनजातीय समाज को किन खतरों, घृणा युक्त एकाकीपन और विदेशी धन से धर्मांतरण के हमले झेलने पड़े। द्रौपदी मुर्मू उस दर्द और विषाद पर सत्य और धर्म की विजय का प्रतीक और हर्ष का कारण बनी हैं।



ग्यारह प्रतिशत के लगभग हमारा जनजातीय समाज है-और देश में 98 प्रतिशत आतंकवाद, विद्रोह और विदेशी धन का खेल इसी क्षेत्र में होता है। देश के स्कूलों में कभी जनजातीय वीरों की महागाथाएं पढ़ाई नहीं गईं। बिरसा मुंडा और केरल के परसी राजा से लेकर अल्लुरी सीताराम राजू, नगा रानी गाईदिन्लयू, खासी योद्धा यू तीरथ सिंग, सिद्धो-कान्हो, चांद और भैरो, मानगढ़ की पहाड़ी के वीर भील योद्धा जैसी, जिन्होंने गोविंद गुरु के नेतृत्व में अपनी जीवन आहुति दी, सहस्रों कथाएं हमारे देश में बिखरी पड़ीं हैं।


लेकिन सेक्यूलर वामपंथी इतिहासकारों ने उनको कभी देश के सामने देशभक्त प्रतापी पराक्रमी मेधावी समाज के नाते प्रस्तुत नहीं होने दिया। प्रथम बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक परम पूज्य गुरुजी माधव सदाशिव गोलवलकर ने 1952 में वनवासी कल्याण आश्रम की कल्पना की और संगठन खड़ा कर जनजातीय समाज के मध्य देश का सबसे बड़े सामाजिक, सांस्कृतिक विकास का उद्यम प्रारंभ किया। उन्होंने देश के अन्य भागों में रह रहे नागरिकों को अपना सर्वस्व जनजातीय समाज के लिए अर्पित करने का आह्वान किया और आज हजारों एमए, एमटेक, एमबीबीएस, एमडी, इंजीनियर प्रचारक अंडमान से लेकर तवांग और ओखा से लदाख तक जनजातीय समाज में आर्थिक शैक्षिक विकास का कार्य कर रहे हैं।

गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, आज जिन 42 संगठनों को आतंकवाद और विद्रोही गतिविधियों के लिए प्रतिबंधित किया गया है, उनमें से 35 केवल जनजातीय क्षेत्रों में सक्रिय हैं। नगालैंड से अरुणाचल, मणिपुर से असम और छत्तीसगढ़, आंध्र से बिहार और बंगाल, राजस्थान से केरल के नीलगिरि क्षेत्रों में जो माओवादी, नक्सल-कम्युनिस्ट संगठन, मणिपुर की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, जमात और इस्लामी उग्रवादी संगठन-ये सब जनजातीय क्षेत्रों को अपना शिकार बनाना अधिक सरल और सुविधाजनक मानते हैं। विदेशी धन और चर्च के असीम निवेश से अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में धर्मांतरण तीव्र गति से हुआ है। अंग्रेजों के समय यह कार्य शुरू हुआ होगा, लेकिन सेक्यूलर गणतंत्र में जनजातीय संस्कृति और धर्म का अधिकतम ह्रास हुआ है।

एक उदाहरण अरुणाचल प्रदेश का ही है। इंदिरा गांधी ने कभी मदर टेरेसा को अरुणाचल आने की अनुमति नहीं दी। पर बाद में ईसाइयत का कांग्रेस पर इतना असर हुआ कि पूरा अरुणाचल ईसाई धर्मांतरण का शिकार हो गया। अनेक गांव ईसाई हो गए, अनेक मंत्री और गांवों के प्रमुख धर्मांतरित हो गए, सीमा तक चर्च पहुंच गए। अगला मुख्यमंत्री ईसाई होगा, यह स्पष्ट घोषणा की गई। अरुणाचल प्रदेश में कुछ वर्ष पहले स्थानीय मूल जनजातीय आस्था की रक्षा के लिए 'इंडिजेनस फेथ' विभाग खोला गया। ईसाई प्रचारकों ने इसका इतना तीव्र विरोध किया कि सरकार को इसका नाम बदलना पड़ा। अब इसे सिर्फ जनजातीय विभाग या इंडिजेनस डिपार्टमेंट कहते हैं। हिंदू होना, जनजातीय होना घाटे का विषय है-अहिंदू होना दोगुना लाभ देता है- यह कुव्यवस्था स्वतंत्र भारत की सामाजिक समरसता नीतियों पर एक प्रश्नचिह्न है।

जनजातीय समाज का विकास भारत के समक्ष सर्वाधिक बड़ी चुनौती है। देश के शहरी नागरिकों को इस बात का एहसास भी शायद कम होगा कि द्रौपदी मुर्मू जी और उनके सहजातीय जनजातीय समाज के करोड़ों लोग भारत की सीमाओं के प्रथम रखवाले हैं। वे जनजातीय वीर नागरिक हैं, जो कश्मीर, जम्मू, हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम, बिहार, नगालैंड, अरुणाचल से लेकर लक्षद्वीप और अंडमान तक भारत की प्रथम सुरक्षा पंक्ति निर्मित करते हैं। कारगिल की घुसपैठ के बारे में भी वहां के जनजातीय गड़रिये ने बताया था। उत्तराखंड, हिमाचल के गद्दी, भूतिए, टोलिया, मर्तोलिया से लेकर सिक्किम के बौद्ध, अरुणाचल के इदु मिश्मी-यही हमारे प्रथम रक्षक हैं, सेना बाद में आती है।

भगवान जगन्नाथ की भक्त, सामाजिक समरसता की प्रतीक द्रौपदी मुर्मू जी पर देश के इतने बड़ी समाज की आशाओं, अपेक्षाओं और सपनों का बोझ है। बोझ नहीं, बल्कि जिम्मेदारी है। उनका विनम्र जीवन, सामान्य गृहस्थी, अति सामान्य पृष्ठ्भूमि, भाजपा की विचारधारा में रचा-पगा होना, इन सब की परीक्षा का काल अब प्रारंभ होता है। प्रशंसा तो पद की होती है, बड़े पद पर बैठने वाले में सबको सिर्फ गुण ही दिखते हैं। पर आने वाले समय में कौन अब्दुल कलाम और राजेंद्र प्रसाद बनते हैं, यह काल के गर्भ में छिपा होता है और पदासीन व्यक्ति की चैतन्य धारा की शक्ति ही यह बता पाती है। द्रौपदी मुर्मू ने देश में एक असामान्य हर्ष और आशा का संचार किया है। यह नरेंद्र मोदी की आतंरिक आध्यात्मिक गहराई का सुपरिणाम है। नरेंद्र मोदी ने बचपन से जिस गरीबी और उपेक्षा का दर्द सहा है, उसे वह भूले नहीं है, द्रौपदी मुर्मू जी का चयन और उन पर देश के विश्वास का टिकना, यह मोदी युग का एक क्रांतिकारी कदम है। यह सफल हो, यही महादेव से प्रार्थना है।

सोर्स: अमर उजाला 

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