अनियमितता के परिसर

आजकल शिक्षण संस्थाएं खोलना एक सुरक्षित निवेश और दीर्घकालिक आय का स्रोत माना जाता है। जबसे सरकारों ने आबादी के अनुपात में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और सबको शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराने के अपने दायित्व से हाथ खींचे हैं और इसके लिए निजी उद्यमों को प्रोत्साहित करना शुरू किया है

Update: 2022-01-10 02:55 GMT

आजकल शिक्षण संस्थाएं खोलना एक सुरक्षित निवेश और दीर्घकालिक आय का स्रोत माना जाता है। जबसे सरकारों ने आबादी के अनुपात में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और सबको शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराने के अपने दायित्व से हाथ खींचे हैं और इसके लिए निजी उद्यमों को प्रोत्साहित करना शुरू किया है, तबसे इस क्षेत्र में कारोबारी होड़ बढ़ गई है। जिस भी उद्यमी के पास कमाई कुछ अधिक है, वह शिक्षण संस्थानों की शृंखला खोलता देखा जाता है।

अनेक देसी बहुराष्ट्रीय और बड़ी कंपनियों ने स्कूल, कालेज, तकनीकी शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालय खोल लिए हैं। उनमें पढ़ाई-लिखाई और व्यक्तित्व विकास के उत्तम संसाधन उपलब्ध होने के बढ़-चढ़ कर दावे किए जाते हैं। आजकल तो उच्च शिक्षा के निजी शिक्षण संस्थान नौकरी के अवसर उपलब्ध कराने यानी प्लेसमेंट के दावे करते हुए भी विद्यार्थियों को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। इस तरह वे मनमानी फीस वसूली भी करते देखे जाते हैं। हरियाणा का अशोका विश्वविद्यालय भी उन्हीं में एक है। कुछ समय पहले इस विश्वविद्यालय के कुलपति को रहस्यमय ढंग से इस्तीफा देना पड़ा था। अब इसके सह-संस्थापकों ने विश्वविद्यालय की तमाम समितियों और बोर्डों से इस्तीफा दे दिया है। दरअसल, सह-संस्थापकों की दवा कंपनी में एक हजार छह सौ करोड़ से ऊपर की धोखाधड़ी का आरोप लगा है। इसलिए उन्होंने अपने को विश्वविद्यालय की गतिविधियों से अलग कर लिया है।

हालांकि विश्वविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि सीबीआइ ने जिस दवा कंपनी के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया है, उसका विश्वविद्यालय से कोई संबंध नहीं है। विश्वविद्यालय से दो सौ दानदाता जुड़े हैं, जिनकी मदद से इसका संचालन होता है। मगर यह तर्क शायद ही किसी के गले उतरे। पहले के समय में बहुत सारे उद्यमी, व्यवसायी निजी स्तर पर या मिल कर परोपकार और समाज सेवा की भावना से शिक्षण संस्थाएं खोला करते थे। उनमें पढ़ाई-लिखाई और अन्य शैक्षणिक गतिविधियों की गुणवत्ता का खासा ध्यान रखते थे।

पर अब शिक्षण संस्थान चूंकि व्यावसायिक मकसद से खोले जाने लगे हैं, उद्यमियों के दूसरे कारोबार से उन्हें अलग करके देखना संभव नहीं है। सरकारें उन्हें बाजार कीमत से काफी कम दर पर जमीन उपलब्ध कराती हैं, बैंक भी आसान शर्तों पर कर्ज दे देते हैं। इस तरह शैक्षणिक संस्थान बन जाने के बाद उनके प्रबंधकों का सारा ध्यान इस बात पर केंद्रित देखा जाता है कि किस तरह कम से कम समय में कमाई बढ़ा कर सारा कर्ज चुकाया जाए और फिर अपनी जेबें भरी जाएं। फिर ये व्यवसायी शिक्षण संस्थाओं की आड़ में अपने दूसरे व्यवसायों के आय-व्यय के ब्योरे में धोखाधड़ी करते रहते हैं।

काफी समय से कुछ लोग सुझाव देते रहे हैं कि चूंकि निजी शिक्षण संस्थानों का सारा कामकाज व्यावसायिक ढंग से होता है, इसलिए उन पर व्यावसायिक गतिविधियों पर लगने वाले नियम-कायदे लागू किए जाने चाहिए। अब ये शिक्षण संस्थान न तो धर्मादा और सेवा भाव से संचालित होते हैं और न दान से चलते हैं, इसलिए इन पर आयकर आदि संबंधी छूटों के बारे में विचार किया जाना चाहिए। फिर, पढ़ाई-लिखाई और व्यक्तित्व तथा कौशल विकास के नाम पर उपलब्ध कराई जाने वाली सुविधाओं के हवाले से जो मनमानी फीस वसूली जाती है, उसके लिए भी एक व्यावहारिक नियामक तंत्र विकसित होना चाहिए। अशोका विश्वविद्यालय के सह-संस्थापकों की कंपनी में धोखाधड़ी ने एक बार फिर उन सुझावों को रेखांकित किया है। शिक्षण संस्थानों का कामकाज पवित्र और पारदर्शी होना ही चाहिए।



Tags:    

Similar News

-->