दूसरे राज्यों को रोशन करने वाले मध्य प्रदेश के उपचुनाव में बिजली कटौती होगा मुद्दा

मध्यप्रदेश देश के उन चुनिंदा राज्यों में है, जो पावर सरप्लस स्टेट के रूप में अपनी पहचान बना चुका है

Update: 2021-09-01 17:09 GMT

भोपाल. मध्यप्रदेश देश के उन चुनिंदा राज्यों में है, जो पावर सरप्लस स्टेट के रूप में अपनी पहचान बना चुका है. पिछले कुछ दिनों से हो रही बिजली कटौती ने लोगों को दिग्विजय सिंह के शासनकाल की याद दिला दी है. सरकार भी मान रही है, बिजली की कमी है. सरकार अतिरिक्त बिजली भी खरीद रही है. इसके बाद भी सत्ताधारी दल भाजपा के विधायक मोर्चा खोले हुए हैं. विधायक नारायण त्रिपाठी ने तो आंदोलन की धमकी भी दी है. कांग्रेस बिजली कटौती के मुद्दे को लगातार उछाल रही है. राज्य में तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर चुनाव होना है

वर्ष 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार सड़क, बिजली और पानी के मुद्दे पर दिग्विजय सिंह सरकार की नाकामियों के कारण बनी थी. वर्ष 2005 में शिवराज सिंह चौहान ने इन तीनों मुद्दों पर प्राथमिकता और तेजी से काम किया. इसका परिणाम यह हुआ कि मध्यप्रदेश बिजली के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो गया. मध्यप्रदेश में बिजली की कुल उत्पादन क्षमता 21000 मेगावाट के करीब पहुंच गई है. इस क्षमता में केन्द्र की विभिन्न बिजली परियोजनाओं में राज्य का हिस्सा भी शामिल है. पिछले सप्ताह से से बिजली कटौती की जो स्थितियां बनी हैं, उसने सभी को चौंका दिया है. मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में भी मंत्रियों ने बिजली कटौती पर चिंता प्रकट की. लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव ने कहा कि अब जनता बिजली की कटौती सहन नहीं करती. राज्य में आने वाले कुछ महीनों में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों के उप चुनाव होना है. अचानक आए बिजली संकट के कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपना पूरा ध्यान बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने पर देना पड़ रहा है. राज्य की आर्थिक स्थिति पहले से ही खस्ता है. सरकार को हर माह कर्ज लेना पड़ रहा है.
खेती का पैटर्न बदलने से बढ़ी बिजली की मांग?
अचानक शुरू हुई बिजली की कटौती ने किसानों की समस्या को बढ़ा दिया है। राज्य के अधिकांश हिस्सों में इस बार मानसून बेहद कमजोर रहा है। इस कारण खरीफ सीजन में किसानों को सिंचाई के लिए बिजली की जरूरत है। रबी और खरीफ सीजन में मध्यप्रदेश और पंजाब के बीच बिजली का आदान-प्रदान होता रहता था। रबी में पंजाब को जरूरत पड़ने पर मध्यप्रदेश बिजली देता था। और खरीफ अपने हिस्से की बिजली पंजाब मध्यप्रदेश को दे देता था। मध्यप्रदेश में पिछले कुछ सालों में चावल की खेती का चलन बढ़ गया है। इस कारण खरीफ सीजन में भी बिजली की मांग लगातार बनी रहती है। बारिश न होने से राज्य की जल विद्युत परियोजनाएं भी लगभग बंद पड़ी हुई हैं। उल्लेखनीय है कि सामान्यत: मानसून के दौरान सिंचाई के लिए बिजली की सीमित आवश्यकता ही होती है। इसके चलते इन माहों में विद्युत इकाईयां वार्षिक रखरखाव के लिए बंद की जाती हैं।
पार्टी विधायक ने ही दी प्रदर्शन की चेतावनी
वर्तमान में प्रदेश में विभिन्न उत्पादन केंद्रों की 2227 मेगावाट क्षमता की विभिन्न इकाईयां वार्षिक रखरखाव के लिए बंद हैं. इनमें से लगभग 1000 मेगावाट क्षमता 5 सितम्बर तक उपलब्ध हो जायेगी. अचानक पैदा हुए बिजली संकट ने विपक्ष को मुद्दा दिया ही. सत्ता पक्ष के विधायक भी कटौती पर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं. मैहर के भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी बिजली कटौती के विरोध में धरना-प्रदर्शन की चेतावनी दे रहे हैं. वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई भी बिजली कमी का मुद्दा लगातार उठा रहे हैं. उन्होंने कुछ दिन पूर्व ही कोयले की कमी को लेकर सरकार को चेताया था. टीकमगढ़ जिले के विधायक राकेश गिरी ने भी कटौती पर नाराजगी प्रकट करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा है. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ कहते हैं कि अब जब प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में और कृषि क्षेत्रों में कई दिनो से घंटों बिजली गायब है, किसान व जनता परेशान हो रहे है. नाथ ने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार कोयले के इंतजाम को लेकर गंभीर नहीं दिख रही.
कोयले की कमी बनी कारण
राज्य में बिजली कटौती के हालात कोयले की कमी के कारण बने हैं। सरकार को ग्रिड से अतिरिक्त बिजली लेना पड़ रही है। दो दिन पहले बिजली की दर अब तक के सबसे उच्चतम स्तर बीस रुपए प्रति यूनिट पर आ गई थी। कोयले की आपूर्ति न होने के कारण कई राज्यों में बिजली संकट के हालात बने हुए है। कोल कंपनियां उन्हीं राज्यों को प्राथमिकता के आधार पर कोयला सप्लाई कर रही हैं,जो कि समय पर भुगतान कर रहे हैं। मध्यप्रदेश पर कोयला कंपनियों को एक हजार करोड़ रुपए से अधिक का बकाया है। राज्य के बिजली संयंत्रों को प्रतिदिन सत्तर हजार टन कोयले की जरूरत है। लेकिन,उपलब्धता सिर्फ पच्चीस हजार टन की है। बिजली कटौती से उत्पन्न हालात पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि बकाया राशि भुगतान जल्द कर दिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि वे कोयले की आपूर्ति एक-दो दिन में पर्याप्त रूप से हो जाएगी।
बिजली खरीदी अनुबंधों पर उठ रहे हैं सवाल
मध्यप्रदेश सरकार हर साल चार हजार करोड़ रूपए से अधिक का भुगतान उन बिजली कंपनियों को कर रही है जिन से दीर्घ अवधि के लिए बिजली क्रय किए जाने के अनुबंध किए गए थे. मध्यप्रदेश के बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाने के बाद भी सरकार इन अनुबंधों को समाप्त नहीं कर पा रही है. कटौती के इस मौसम में इन करारों से भी राज्य को बिजली नहीं मिल पाई है. सरकार के आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा कि अनुबंध के अनुसार जिन कंपनियों को अपने कोटे की बिजली नहीं दी है, उनके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी.
मध्यप्रदेश एकमात्र ऐसा राज्य हैं, जिसने आकलन के विद्युत संयोजन के सभी मापदंडों पर पूरे अंक प्राप्त प्राप्त किए हैं. मध्यप्रदेश की विद्युत उत्पादन की कुल क्षमता बीस हजार मेगावाट से अधिक की है. ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर कहते हैं कि वर्तमान में प्रदेश में बिजली की मांग की तुलना में पर्याप्त विद्युत उत्पादन है. प्रदेश में कहीं पर भी विद्युत उपलब्धता की कमी के कारण विद्युत कटौती नहीं हो रही है. तोमर के अनुसार 27 अगस्त की शाम से लगभग तीन दिन विद्युत की मांग में अप्रत्याशित वृद्धि एवं कम उत्पादन की स्थिति निर्मित हुई थी. इस कारण अघोषित विद्युत कटौती, अंतिम विकल्प के रूप में करने की बाध्यता हुई. ऊर्जा मंत्री के अनुसार विद्युत उत्पादन में कमी की स्थिति देशव्यापी कोयला संकट एवं कम वर्षा के कारण बनी है. वहीं दूसरी ओर अल्प वर्षा के कारण कृषि के क्षेत्र में विद्युत मांग में अप्रत्याशित वृद्धि हुई.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
दिनेश गुप्ता, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.
सामाजिक, राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं. देश के तमाम बड़े संस्थानों के साथ आपका जुड़ाव रहा है.
Tags:    

Similar News

-->