सकारात्मक रुख
पिछले साल कोरोना महामारी की रोकथाम के मकसद से लगाई गई पूर्णबंदी के बाद समूचे देश में जिस तरह आर्थिक गतिविधियां लगभग ठप पड़ गई थीं, उसका नुकसान बहुस्तरीय था।
पिछले साल कोरोना महामारी की रोकथाम के मकसद से लगाई गई पूर्णबंदी के बाद समूचे देश में जिस तरह आर्थिक गतिविधियां लगभग ठप पड़ गई थीं, उसका नुकसान बहुस्तरीय था। एक ओर, आम लोगों की आर्थिक सेहत पर इसकी गहरी मार पड़ी तो दूसरी ओर कारोबार जगत तबाह हुआ और इसके साथ-साथ राजस्व और कर संग्रह के मामले में सरकार को भी नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन संक्रमण की रफ्तार कमजोर पड़ने के बाद सरकार की ओर से आर्थिक और सार्वजनिक गतिविधियों को क्रमश: मिलती छूट का सीधा और सकारात्मक असर सभी पक्षों पर पड़ना तय था।
यानी बाजार से लेकर सभी तरह के कारोबार फिर से शुरू होने के बाद आर्थिक पक्ष मजबूत होने लगे। यह बेवजह नहीं है कि लंबे समय के बाद इस खबर ने सरकार को काफी राहत दी होगी कि वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी संग्रह अक्तूबर में बढ़ कर 1.30 लाख करोड़ रुपए हो गया। गौरतलब है कि यह आंकड़ा पिछले साल अक्तूबर की तुलना में चौबीस फीसद और कोविड के दौर से पहले के वर्ष 2019-20 की समान अवधि से छत्तीस फीसद ज्यादा है।
यही नहीं, आंकड़ों के मुताबिक 2017 में जब वस्तु एवं सेवा कर की व्यवस्था लागू हुई थी, उसके बाद से इस साल अक्तूबर में किसी एक महीने में यह दूसरा सबसे ज्यादा कर संग्रह है। जीएसटी संग्रह में वृद्धि के ये आंकड़े दर्शाते हैं कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था की तस्वीर में तेजी से सुधार हो रहा है। स्वाभाविक ही इससे सरकार ने राहत की सांस ली है। दरअसल, करीब डेढ़ साल से ज्यादा वक्त से समूची दुनिया में महामारी के चलते जिस तरह की जद्दोजहद और कारोबार जगत में निराशा का माहौल कायम रहा है, उसमें आर्थिक गतिविधियों के मोर्चे पर मामूली सुधार भी उम्मीद की किरण लेकर आती है।
खासकर कोरोना की रोकथाम की कोशिश में भारत में पूर्णबंदी का दौर जिस तरह लंबा खिंचा, उसकी गहरी मार व्यवसाय जगत को झेलनी पड़ी, जिसका सीधा असर जीएसटी संग्रह पर भी पड़ा। हालांकि दूसरी लहर के शुरू होने के पहले इसी साल अप्रैल में सबसे ज्यादा 1.40 लाख करोड़ रुपए जीएसटी का संग्रह हुआ था। लेकिन पहली लहर की मार के बीच बंदी के बाद मिली तात्कालिक राहत से बाजार उबर भी नहीं पाया था कि इस साल अप्रैल-मई में दूसरी लहर की कहर ने एक बार फिर आर्थिक गतिविधियों पर बेहद नकारात्मक असर डाला।
अब जीएसटी संग्रह के ताजा आंकड़े सरकार के मुताबिक आर्थिक सुधार के रुझानों के अनुसार ही हैं। हालांकि पिछले कुछ समय से जिस तरह लगातार उथल-पुथल का दौर चल रहा है, उसमें कोई भी इसके असर का अंदाजा लगा सकता है। खुद वित्त मंत्रालय का मानना है कि अगर अर्धचालकों की आपूर्ति में बाधा से वाहन और अन्य उत्पादों की बिक्रीप्रभावित नहीं होती, तो राजस्व संग्रह और अधिक होता।
जाहिर है, काफी हद तक खरीद-बिक्री पर निर्भर कर-व्यवस्था में जीएसटी या अन्य प्रकार के करों पर भी इसका प्रभाव पड़ा है। लेकिन भारत में सरकार ने दूसरी लहर के कमजोर पड़ने के बाद आर्थिक और सार्वजनिक गतिविधियों में छूट दी और धीरे-धीरे बाजार ने रंग पकड़ना शुरू किया है। अब जीएसटी संग्रह में उत्साहजनक बढ़ोतरी के बाद वित्त मंत्रालय ने उम्मीद जताई है कि कर संग्रह का यह सकारात्मक रुख आगे भी जारी रहेगा और साल की दूसरी छमाही में सरकार को ज्यादा राजस्व मिलेगा।