गरीब की रसोई

केंद्र सरकार ने रसोई में रोजमर्रा उपयोग होने वाले कुछ जरूरी वस्तुओं, जैसे दही, दूध, पनीर, शहद, पापड़, गुड़, मुरमुरे आदि पर जीएसटी लगा दिया है। पहले से ही मध्यवर्ग और मजदूर तबका महंगाई से परेशान है

Update: 2022-07-20 05:59 GMT

Written by जनसत्ता; केंद्र सरकार ने रसोई में रोजमर्रा उपयोग होने वाले कुछ जरूरी वस्तुओं, जैसे दही, दूध, पनीर, शहद, पापड़, गुड़, मुरमुरे आदि पर जीएसटी लगा दिया है। पहले से ही मध्यवर्ग और मजदूर तबका महंगाई से परेशान है, ऐसे में सरकार का अनाज, दालों और आटे के उन पैकटों पर, जो पच्चीस किलो से कम हैं, पांच फीसद जीएसटी लगाना समझ से परे है। पच्चीस किलो से अधिक तो घरेलू सामान अमीर लोग ही खरीदते हैं।

मध्यवर्ग और मजदूर तबका तो अपनी जरूरत के हिसाब से थोड़ा-थोड़ा सामान ही खरीदता है। अब सरकार के नए फैसले को देखा जाए, तो इसका मतलब यह निकलेगा कि जो अमीर आदमी आटा, दाल या चावल पच्चीस किलोग्राम से अधिक खरीदेगा, उसे कोई जीएसटी नहीं देना पड़ेगा और जो गरीब आदमी आधा या एक किलो राशन खरीदेगा, उसे पांच फीसद जीएसटी देना पड़ेगा।

अब सवाल है कि ये बेतुके फैसले कौन लेता है? सरकार में बैठे हुए वे लोग, जिन्हें जमीनी हकीकत बिल्कुल नहीं पता है और जिन्हें महंगाई बढ़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता! क्या वातानुकूलित कमरों में बैठ कर वे लोग ये टैक्स बढ़ाने के फैसले करते हैं? सरकार में बैठे हुए इन महानुभावों से प्रार्थना है कि एक बार कुछ घंटों के लिए अपने ठंडे कमरों से बाहर निकल कर देखिए, आपको ऐसे-ऐसे लोग भी मिल जाएंगे, जो अपनी मोटरसाइकिलों में पचास रुपए का पेट्रोल भरवाते हैं।

कुछ समय राशन की दुकानों पर बिताइए, जहां आपको दिखेगा कि लोग रसोई में रोजमर्रा उपयोग में आने वाली चीजें किस तरह अपना बजट बनाते हुए पचास-पचास ग्राम या सौ-सौ ग्राम खरीदते हैं। एक तरफ तो लोगों के रोजगार छूटते जा रहे हैं, नौकरियां पैदा नहीं हो रहीं, जिन लोगों के पास नौकरी है, उनके वेतन कम हो गए हैं, तो दूसरी तरफ महंगाई ने उनका जीना मुश्किल कर दिया है। सरकार को किसी भी तरह का कर बढ़ाने से पहले एक बार गरीब की रसोई में भी झांक कर देख लेना चाहिए।


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