वैक्सीनेशन पर सियासत

पहले कोरोना टीके को लेकर इस देश में सियासत हुई अब वैक्सीनेशन यानी टीकाकरण पर सियासत होनी शुरू हो गई है।

Update: 2021-04-09 04:56 GMT

आदित्य नारायण चोपड़ा: पहले कोरोना टीके को लेकर इस देश में सियासत हुई अब वैक्सीनेशन यानी टीकाकरण पर सियासत होनी शुरू हो गई है। कोरोना संकट से जूझ रहे देश को नए वर्ष की शुरूआत में जब दो वैक्सीन का तोहफा देशवासियों को दिया गया तब पहले समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने इसे भाजपा का टीका बताकर वैक्सीन लगवाने से इंकार कर दिया। उन्होंने यह तंज भी कसा कि जाे सरकार ताली और थाली बजवा रही थी, वो वैक्सीनेशन के लिए इतनी बड़ी चेन क्यों बनवा रही है। ताली और थाली से ही कोरोना को भगा दे। फिर कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं जयराम रमेश और शशि थरूर ने वैक्सीन को लेकर सवाल उठा दिये। उन्होंने कोवैक्सीन के तीसरे फेज का ट्रायल पूरा होने से पहले ही उसे दी गई मंजूरी को जोखिम भरा बता दिया। कभी कुछ कहा गया तो कभी कुछ। जितने मुंह उतनी बातें। कुछ राजनीतिक दलों ने तो वैक्सीन को लेकर संदेह का वातावरण बनाने का प्रयास किया। किसी ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि अपनी सियासत चमकाने के लिए वे देशवासियों का कितना नुक्सान कर रहे हैं। सभी को इतने कम समय में वैक्सीन तैयार कर लेने की वैज्ञानिकों की उपलब्धि पर गर्व होना चाहिए था लेकिन विपक्षी दलों ने अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग अलापना शुरू कर दिया।

अब जबकि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन अभियान सफलतापूर्वक जारी है। लोकतंत्र में विपक्षी दलों को सवाल उठाने का हक है लेकिन सवाल उठता है कि क्या देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर चिंता होनी चाहिए न कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण किया जाना चाहिए। अब महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में वैक्सीन की कमी का शोर मचाया जा रहा है। जब केन्द्र सरकार का कहना है कि इन राज्यों और केन्द्र शासित राज्यों में औसत से कम टीकाकरण हो रहा है। केन्द्र सरकार ने इन राज्यों को पत्र लिखकर टीकाकरण अभियान काे सुधारने के लिए तुरन्त कदम उठाने का आग्रह किया है। महाराष्ट्र की बात करें तो अभी तक 86 प्रतिशत हैल्थकेयर वर्कर्स का वैक्सीनेशन किया है, उन्हें सिर्फ पहली डोज दी गई है। ऐसी ही हालत पंजाब की है। महाराष्ट्र में फ्रंट लाइन वर्कर्स को सिर्फ 76 फीसदी को वैक्सीन की पहली डोज दी गई है, वहीं सीनियर सिटिजन्स की बात करें तो महाराष्ट्र में सिर्फ 25 फीसदी वैक्सीनेशन हुआ है। छत्तीसगढ़ सरकार ने कोवैक्सीन इस्तेमाल करने से मना कर दिया था जबकि कोवैक्सीन पूरी तरह से कारगर है। ऐसे में वैक्सीन की कमी का शोर मचाने से जनता में भ्रम और पैनिक फैल रहा है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने इन राज्यों को जवाब दिया है कि राज्य सरकारें केवल सियासत कर रही हैं जबकि तथ्य यह है कि कई राज्य सरकारें कोरोना के खिलाफ उपयुक्त कदम उठाने में नाकाम ही हैं। अधिकांश गैर भाजपा सरकारें हैं। सच तो यह भी है कि कुछ राज्यों में टैस्टिंग, कांटैक्ट ट्रेसिंग का काम ढंग से हुआ ही​ नहीं है। यह राज्य अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी करने में लगे हैं। यह भी सही है कि वैक्सीन की सप्लाई सीमित है, वैक्सीन की मांग और आपूर्ति की जानकारी राज्य सरकारों को पारदर्शी तरीके से की जा रही है। रियल टाइम ब्रेसिस पर वैक्सीन की सप्लाई की निगरानी की जा रही है।

कोरोना वैक्सीन को लेकर जो राजनीतिक दल संदेह का वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे थे लेकिन कुछ राज्य सरकारें कोरोना वैक्सीनेशन की उम्र 18 वर्ष निर्धारित करना चाहती हैं। 18 वर्ष की उम्र से अधिक सभी लोगों के लिए वैक्सीन की मांग गलत नहीं है लेकिन इस मांग का अर्थ यही है कि इन राज्यों ने पहले की सभी कैटेगरी में सम्पूर्ण वैक्सीनेशन कर लिया है। सच तो यह है कि पहले की कैटेगिरी में वैक्सीनेशन पूरा नहीं हुआ। क्योंकि वैक्सीन की सप्लाई समिति है, इसलिए आयु वर्ग तय करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। केन्द्र सरकार भी चाहती है कि देशवासियों का वैक्सीनेशन जल्द से जल्द हो। पहले टीकाकरण उनका होना ही चाहिए, जिन्हे इसकी पहले जरूरत है। अब तो सरकार 11 अप्रैल से सरकारी और निजी कम्पनियों में वैक्सीनेशन की योजना बना रही है। अब सभी कर्मचारियों काे अपने ऑफिस में ही टी​का लगाया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से टीकाकरण अभियान को तेज करने को लेकर विचार-विमर्श किया है। इतने बड़े महाअभियान में सभी का सहयोग जरूरी है। कोरोना वायरस को सियासत से हराना बहुत मुश्किल होगा। बेहतर यही होगा कि पार्टी लाइन से ऊपर उठकर वायरस से मुक्ति पाने के उपायों का पालन किया जाए। कोरी बयानबाजी से वायरस भागेगा नहीं बल्कि उसका प्रसार ही होगा।


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