भारत-बंगलादेश रेल लिंक का रणनीतिक महत्व

भारत और बंगलादेश के मध्य द्विपक्षीय सहयोग की शुरूआत 1971 में हो गई थी

Update: 2020-12-19 10:25 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत और बंगलादेश के मध्य द्विपक्षीय सहयोग की शुरूआत 1971 में हो गई थी जब भारत ने बंगलादेश राष्ट्र का समर्थन करते हुए अपनी शांति सेना भेज दी थी। बंगलादेश के साथ भारत के भावनात्मक संबंध भी हैं क्योंकि यह देश भारत के बंगाल का ही हिस्सा था। वर्ष 1947 में जब भारत ने आजादी प्राप्त की और देश का बंटवारा हुआ तो बंगाल का यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र पाकिस्तान का हिस्सा बन गया और उसे पूर्वी पाकिस्तान कहा जाने लगा। पूर्वी पाकिस्तान काफी विषम परिस्थितियों में था। वह न केवल भौगोलिक रूप से पश्चिमी पाकिस्तान से अलग था बल्कि जातीयता और भाषा के आधार पर भी पाकिस्तान से काफी अलग था। इस विषमता के चलते ही बंगलादेश के अलग देश होने की मांग उठने लगी। 27 मार्च, 1971 को शेख मुजीबुर रहमान ने ​पाकिस्तान से बंगलादेश की आजादी की घोषणा कर दी। तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान ने अलगाव को रोकने के लिए पूरे प्रयास ​किये और इसके विरुद्ध जंग की शुरूआत कर दी। जब बंगलादेश से हजारों शरणार्थी भारत आने लगे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की चिंताएं बढ़ गईं। अंततः भारत ने हस्तक्षेप किया और बंगलादेश राज्य के रूप में पूर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने में मदद की। 16 दिसम्बर, 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की सेना के कमांडर ए.के. नियाजी ने 93 हजार से ज्यादा पाकिस्तान के सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर डाला। पाकिस्तान 71 का युद्ध हार चुका था और बंगलादेश का अलग राष्ट्र के तौर पर उदय हो चुका था। भारत के 3900 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे जबकि 9,851 भारतीय जवान घायल हुए थे। भारत हर वर्ष 16 दिसम्बर को विजय दिवस मनाता है।


बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना बंगलादेश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले बंगबधु मुजीबुर रहमान की बेटी हैं। भारत और बंगलादेश के मध्य डिजिटल शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बंगलादेश की पीएम शेख हसीना ने भारत और बंगलादेश के बीच 55 वर्षों से बंद चिल्हाटी-हल्दीबाड़ी रेल लिंक का उद्घाटन किया। यह रेल लिंक 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय से बंद कर दिया गया था। इसके अलावा दोनों देशों में 7 अहम समझौते भी हुए। चिल्हाटी-हल्दीबाड़ी रेल सम्पर्क भारत के लिए काफी अहम है। रेल लाइन इसलिए भी खास है क्योंकि यह उस सिलीगुड़ी का हिस्सा है जिसे चिकननेक कहा जाता है। भूटान की सीमा के करीब चीन की बढ़ती सक्रियता को देखते हुए भारत पहले से कहीं अधिक सतर्क हो चुका है। भारत जल्द से जल्द अपने पूर्वोत्तर राज्यों के लिए वैकल्पिक जमीनी रास्ता सुनिश्चित करना चाहता है और यह काम केवल बंगलादेश ही कर सकता है। उसकी सीमा तीन पूर्वोत्तर राज्यों से ही जुड़ती है। इसी क्रम में भारत ने बंगलादेश से अपील की है कि वह बंगाल (हिली) को मेघालय (महेन्द्रगंज) से भूमार्ग से जोड़ने का रास्ता दे। इसकी एवज में बंगलादेश ने भी भारत-म्यांमार-थाइलैंड हाइवे परियोजना में शामिल होने, बंगलादेश के उत्पादों के लिए भारतीय बाजार को और खोलने, बंगलादेशी ट्रकों को चट्टोग्राम पोर्ट से पूर्वोत्तर राज्यों में आसानी से आने-जाने की अनुमति देने जैसी मांगें रखी हैं। बंगलादेश ने पद्मा नदी में 1.3 किलोमीटर लम्बा रास्ता भी मांगा है।

ये सभी मुद्दे जटिल तो हैं लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों देश अंतिम फैसला ले लेंगे। यदि दोनों देशों में सहमति बन जाती है तो भारत के लिए चिकननेक की चिंता काफी कम हो जाएगी। चिकननेक दरअसल भारत और पूर्वोत्तर राज्यों में बीच का पतला सा हिस्सा है और हमारे लिए इसका रणनीतिक महत्व है। भारत को हमेशा इस बात की चिंता रहती है कि चीन इस हिस्से पर आक्रमण कर पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से काट सकता है। सिक्किम जब भारत का राज्य बना तो भारत को उत्तर पूर्व स्तिथि चुंबी घाटी में चीन की निगाह रखने के लिए रणनीतिक बढ़त हासिल हो गई थी। चीन की नजरें चिकननेक पर लगी हुई हैं। वर्ष 2017 में डोकलाम विवाद भी चिकननेक पर कब्जे की मंशा को लेकर ही हुआ था। मौजूदा रेल लिंक से भारत की राह इस इलाके के सीमावर्ती इलाकों में जवानों को भेजने के लिए आसान हो सकती है। आक्रामकता को कम करने के लिए यह जरूरी है कि भारत अपने पड़ोसी राष्ट्रों से संबंध मजबूत करे।

बंगलादेश में शेख हसीना की सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद कम करने के ​िलए भी भारत की काफी मदद की। बंगलादेश में बैठे उल्फा नेताओं को पकड़ कर भारत को सौंपा है, जिससे उल्फा की कमर तोड़ने में सुरक्षा बलों को काफी सफलता मिली है। यद्यपि बंगलादेश में भी कट्टरपंथी ताकतें लगातार भारत ​विरोधी रुख अपनाए हुए हैं। आज भी पाकिस्तान बंगलादेश में बैठे कट्टरपंथी संगठनों का हर तरह से सहयोग कर भारत में हिंसक घटनाओं की साजिश रचता रहता है।

खालिदा जिया की सरकार के दौरान बंगलादेश और भारत के संबंध काफी बिगड़ गए थे। शेख हसीना की सरकार ने काफी हद तक कट्टरपंथी ताकतों पर नियंत्रण पाने में सफलता प्राप्त कर ली है। कोरोना काल में भी दोनों देश और करीब आए हैं। दोनों देशों ने इस साल कनैक्टीविटी के कई नए काम शुरू किए हैं। अगले वर्ष भारत और बंगलादेश के संबंधों को 50 वर्ष पूरे हो जाएंगे। दोनों देशों में संबंधों के स्वर्ण जयंती वर्ष पर नए आयाम स्थापित होंगे।


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