हर साल 30 लाख लोगों को बीमार कर रहा खेतों में छिड़का जानेवाला 'जहर', ढाई लाख की हो रही मौत
कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग की प्रवृत्ति ने कृषि भूमि, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को गहरे संकट में डाल दिया है
सुधीर कुमार। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग की प्रवृत्ति ने कृषि भूमि, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को गहरे संकट में डाल दिया है। ऐसे कई जहरीले कीटनाशकों को सरकारें समय-समय पर प्रतिबंधित भी करती आई हैं, लेकिन जरूरी है कि इसके दुष्प्रभावों के बारे में किसानों को जागरूक कर उन्हें जैविक कीटनाशकों के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया जाए और पैदावार में घुलते जहर की प्रक्रिया पर लगाम लगाई जाए।
आमतौर पर किसान कीटों से फसल सुरक्षा के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं, लेकिन इसके दूरगामी दुष्प्रभावों के बारे में उन्हें भान नहीं होता। कीटनाशक के छिड़काव के वक्त इनके अंश सांसों के जरिये शरीर के अंदर प्रवेश करते हैं और उनकी मौत तक का कारण तक बन जाते हैं। उन्हीं उत्पादित खाद्य पदार्थों का सेवन हमारे शरीर को विषाक्त और अस्वस्थ बनाता है। कीटनाशकों के जहर के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव से हर साल 30 लाख लोग बीमार होते हैं, जिनमें से ढाई लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है।
गौरतलब है कि खेतों में प्रयोग किए जाने वाले बेनोमाइल, कार्बाइल, डायजिनोन, फेनारिमोल, ट्राईफ्लूरलिन और अलाक्लोर समेत 18 जहरीले कीटनाशकों को सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया है। उससे पहले ये खेतों में बहुतायत में इस्तेमाल किए जाते थे, लेकिन जब परीक्षण किया गया तो इनमें विद्यमान जहर की मात्र निर्धारित मानक से अधिक पाई गई। इसलिए उन पर नियंत्रण आवश्यक हो गया है। ऐसे कीटनाशकों के इस्तेमाल से कैंसर, किडनी एवं लिवर खराब होने, हार्टअटैक सहित कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
बेनोमाइल नामक कीटनाशक लिवर को विषाक्त बनाता है और मानव की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है। इसी तरह कार्बाइल, डायजिनोन, फेनारिमोल जैसे कीटनाशक जलीय जीवों और मधुमक्खियों के लिए घातक होते हैं। अच्छी बात है कि भारत सरकार 27 अन्य जहरीले कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रही है। समस्या को देखते हुए यह आवश्यक भी हो गया है। जहरीले कीटनाशक का इस्तेमाल स्वयं किसानों और उपभोक्ताओं के साथ-साथ मृदा, जलस्नेतों और वायुमंडल के लिए खतरा उत्पन्न करता है। इससे खेतों में आने वाले जानवरों तथा फसलों पर बैठने वाले कीट-पतंगों और पक्षियों के शरीर में भी जहर की मात्र बढ़ती जाती है।
अगर इसकी जगह जैविक कीटनाशकों का प्रयोग किया जाए तो समाज और पर्यावरण के लिए राहत की बात हो सकती है। जैविक कीटनाशक भूमि में मिलकर अपघटित हो जाते हैं तथा इनका कोई अंश अवशेष नहीं रहता, जिससे पर्यावरण और समाज पर इसका कोई साइडइफेक्ट नहीं होता। ये पारिस्थितिकीय मित्र की भूमिका निभाने का काम करते हैं और सभी की सेहत की सुरक्षा का दायित्व भी निभाते हैं।
(लेखक बीएचयू में शोधार्थी हैं)