पीएम मोदी का भाषण: कैसी है देश की दशा...पी चिदंबरम का विश्लेषण

वैश्विक नेताओं के जो भाषण सर्वाधिक बहुप्रतीक्षित होते हैं, उनमें अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा अमेरिकी कांग्रेस में दिया जाने वाला वार्षिक स्टेट ऑफ द यूनियन भाषण भी है

Update: 2021-08-22 05:29 GMT

पी चिदंबरम।

वैश्विक नेताओं के जो भाषण सर्वाधिक बहुप्रतीक्षित होते हैं, उनमें अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा अमेरिकी कांग्रेस में दिया जाने वाला वार्षिक स्टेट ऑफ द यूनियन भाषण भी है, क्योंकि अमेरिका की नीतियां दूसरे देशों को प्रभावित करती हैं। भारत के स्वतंत्रता दिवस पर 15 अगस्त को भारतीय प्रधानमंत्री के वार्षिक भाषण को बहुत उत्सुकता से तो नहीं, फिर भी दिलचस्पी के साथ सुना जाता है। स्वतंत्रता दिवस के उत्सव की छटा गणतंत्र दिवस की परेड की तरह दर्शनीय तो नहीं होती, लेकिन भाषण झांकियों, मार्च पास्ट और फ्लाई पास्ट की कमी पूरा कर देता है।

जवाहरलाल नेहरू के समय से लाल किले के प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस पर दिए जाने वाले भाषण का एक खास तरह का महत्व बन गया है। मैं इसे स्टेट ऑफ द नेशन स्पीच कह सकता हूं। यह नेहरू की ऐसी परंपरा है, जिसे श्री नरेंद्र मोदी ने खत्म या बंद नहीं किया है। हालांकि श्री मोदी के मामले में 15 अगस्त के उनके भाषण उल्लेखनीय नहीं हैं, क्योंकि ये चुनावी रैलियों के उनके भाषणों से अलग नहीं होते, बस इनमें विपक्ष पर कटाक्ष करने का उनका खांटी अंदाज नहीं होता (मसलन, दीदी...ओ...दीदी)।
अब जरा श्री मोदी के आठवें भाषण की विषयवस्तु पर गौर करें। यह मुख्यतया उनकी सरकार की 'उपलब्धियों' पर केंद्रित थी। यह दुखद है कि मीडिया में बहुत कम लोगों ने दावों और घोषणाओं के तथ्यों को परखने में उस तरह की दिलचस्पी दिखाई, जैसा कि अमेरिका में होता है। प्रोफेसर राजीव गौड़ा के नेतृत्व में युवाओं की एक छोटी टीम ने यह कवायद की और मैं यहां उसके कुछ नतीजे आपसे साझा करना चाहूंगा।
महामारी प्रेरित
-भारतीयों ने कोरोना वायरस की महामारी से लड़ाई लड़ी। महामारी से लड़ने के लिए हमारे सामने अनेक तरह की चुनौतियां थीं, हमने हर मोर्चे पर कामयाबी हासिल की। इस पूरे दौर में हम आत्मनिर्भर बन गए... दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान भारत में चल रहा है।
मृतकों की आधिकारिक संख्या (4,33,622) के आधार पर दुनिया में यह तीसरी बड़ी संख्या है, लेकिन कई स्वतंत्र अध्ययनों ने सरकारी आंकड़े को बेनकाब कर दिया। विशेषज्ञों में इस बात की सहमति है कि मृतकों की संख्या इससे कम से कम दस गुना अधिक है और इसका मतलब है कि सारे देशों में भारत में सर्वाधिक मौतें हुई हैं। दूसरी लहर के दौरान हम बेसब्री से करीब चालीस देशों से ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स, वेंटिलेटर्स और टेस्टिंग किट इत्यादि के लिए मदद मांग रहे थे और स्वीकार कर रहे थे। जहां तक वैक्सीन की बात है, तो सरकार ने चुपचाप वैक्सीन मैत्री गर्वोक्ति को दफन कर दिया, निर्यात बंद कर दिया (जिससे अनेक छोटे देश बेबस हो गए), और रूस और अमेरिका से वैक्सीन की गुहार लगाई।
अव्वल तो, टीके के मामले में आत्मनिर्भर होने के दावे में दम नहीं है। मेहरबानी कि सरकार ने स्पूतनिक वैक्सीन को स्वीकार कर लिया है और टीके की आपूर्ति के लिए कई वैश्विक निर्माताओं से बातचीत शुरू कर दी है। अपर्याप्त आपूर्ति ने टीकाकरण कार्यक्रम को बाधित किया है। मैं जब यह पंक्तियां लिख रहा हूं, भारत में 44,02,02,169 लोगों को टीके की एक खुराक और 12,63,86,264 लोगों को दोनों खुराक लग चुकी हैं। पूरी वयस्क आबादी (95 से 100 करोड़) को 2021 के दिसंबर के अंत तक पूर्ण टीकाकरण के लक्ष्य को त्याग दिया गया है।
-भारत ने 80 करोड़ से अधिक लोगों को अनाज वितरित किया है और दुनिया इस पर बहस कर रही है।
भारत में करीब 27 करोड़ परिवार हैं (प्रति परिवार औसतन पांच सदस्य)। यदि 80 करोड़ लोगों को प्रति व्यक्ति पांच किलोग्राम की दर से अनाज प्राप्त हुआ है, तो यह एफसीआई के गोदाम से अनाज की निकासी या उठाव के रूप में प्रतिबिंबित होना चाहिए।
वास्तव में चावल और गेहूं का सालाना उठाव 2012-13 के 6.6 करोड़ टन से घटकर 2018-19 में 6.2 करोड़ टन और 2019-20 में 5.4 करोड़ टन रह गया। महामारी के वर्ष 2020-21 के दौरान यह बढ़कर 8.7 करोड़ टन हो गया। इसका यह मतलब हुआ कि सारे इच्छित लाभार्थियों को मुफ्त में अनाज नहीं मिला। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के एक सर्वे के मुताबिक सिर्फ 27 फीसदी परिवारों को पांच किलोग्राम वाली योजना (गरीब कल्याण अन्न योजना) का पूरा लाभ मिला। जबकि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 107 देशों में भारत 94 वें नंबर पर है।
-जिस तरह से 'सबके लिए शौचालय' के लक्ष्य को हासिल किया गया है, हमें अन्य सारी योजनाओं में सौ फीसदी अमल की जरूरत है।
'सबके लिए शौचालय' एक खोखला दावा है। हजारों ऐसे शौचालय हैं, जिनका 'निर्माण' किया गया था, उनका अस्तित्व नहीं है या फिर उनका गोदाम के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे-पांच के मुताबिक पांच राज्यों की एक तिहाई ग्रामीण आबादी के घरों में शौचालय नहीं थे। राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन के 2018 के सर्वेक्षण में पाया गया कि ग्रामीण घरों में 28.7 फीसदी लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं थी और 32 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं।
-आने वाले वर्षों में हमारे देश में अनेक ऑक्सीजन संयंत्र होंगे।
निर्णय लेने के आठ महीने बाद अक्तूबर, 2020 में सरकारी अस्पतालों में पीएसए ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित करने के लिए निविदाएं आमंत्रित की गई थीं। 18 अप्रैल, 20121 को स्वास्थ्य मंत्रालय ने ट्वीट किया कि प्रस्तावित किए गए 163 ऑक्सीजन संयंत्रों ( बाद में इनका संख्या बढाई जानी थी) में से केवल 33 संयंत्र स्थापित किए गए हैं। मीडिया संगठन स्क्रॉल ने पाया कि उनमें से सिर्फ पांच ऑक्सीजन संयंत्र काम कर रहे थे।
-हमने आधुनिक आधारभूत संरचना में सौ लाख करोड़ रुपये के निवेश का फैसला लिया है।
प्रधानमंत्री ने शायद यह सोचा होगा कि किसी को याद नहीं होगा कि उन्होंने 15 अगस्त, 2019 और 15 अगस्त 2020 को ठीक उसी जगह पर ठीक यही घोषणा की थी। हमें तो खुश होना चाहिए कि आधारभूत संरचना के निवेश की योजना अदृश्य रूप में हर साल 100 लाख करोड़ रुपये की दर से बढ़ रही है!
ऐसी ही और घोषणाएं हैं, लेकिन यह थकाने वाली कवायद है। मैं इसे यहीं रोक रहा हूं।
तथ्य नीरस और उबाऊ होते हैं। तथ्यों को जांचना खतरनाक होता है और फर्जी चीजों का प्रचार करना रोमांचकारी। आप चुन सकते हैं कि क्या चीज आपके देश को महान बनाएगी और क्या आपके दिन को उज्ज्वल बनाएगी।
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