अमेरिका में पीएम मोदी: आतंकवाद और आक्रामकता पर अंकुश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदा अमेरिका यात्रा कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। सबसे पहले तो संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक है

Update: 2021-09-25 08:14 GMT

शशांक। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदा अमेरिका यात्रा कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। सबसे पहले तो संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक है, जिसमें कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष हिस्सा ले रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा को लेकर चर्चा चल ही रही थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने क्वाड की बैठक के बारे में निमंत्रण भेजा। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, यूके (ब्रिटेन) और यूस (अमेरिका) ने मिलकर ऑकस नामक एक गठजोड़ बनाया है, जिसको लेकर सामरिक दृष्टि से काफी हलचल देखी गई।

साथ ही अफगानिस्तान का घटनाक्रम भी एक महत्वपूर्ण मसला था, क्योंकि तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया और उनकी अंतरिम सरकार में पाकिस्तान से नजदीकी रिश्ता रखने वाले आतंकवादी शामिल हैं। भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय रिश्ते के लिहाज से भी प्रधानमंत्री की यह यात्रा महत्वपूर्ण है। इस यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया की शीर्ष कंपनियों के सीईओ के साथ मुलाकात तो की ही है, जिसमें भारत में निवेश को लेकर सकारात्मक बातें हुईं।
प्रधानमंत्री ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से भी मुलाकात की। प्रधानमंत्री ने कमला हैरिस से मुलाकात के दौरान कहा कि भारत और अमेरिका स्वाभाविक साझीदार हैं। उन्होंने करीब 40 लाख प्रवासी भारतीय को दोनों देशों के बीच मित्रता का सेतु बताया। प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि राष्ट्रपति जो बाइडन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के कार्यकाल में दोनों देशों के संबंध सहयोग की नई ऊंचाइयों को छुएंगे।
जबकि कमला हैरिस ने भारत को अमेरिका का महत्वपूर्ण साझीदार बताया और कहा कि दुनिया भर में लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए भारत और अमेरिका को साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने कोविड प्रबंधन और टीकाकरण को लेकर भारत की तारीफ की। आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान की भूमिका का जिक्र करते हुए कमला हैरिस ने कहा कि वहां कई आतंकवादी संगठन हैं।
उन्होंने पाकिस्तान को कार्रवाई करने का संदेश दिया, ताकि अमेरिका और भारत की सुरक्षा पर कोई असर न पड़े। दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान और हिंद-प्रशांत के खतरों सहित साझा हित के अन्य वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा की। भले ही तालिबान के साथ दोहा समझौता करने में अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद ली, लेकिन जिस तरह से पाकिस्तान ने अपने समर्थक तालिबान आतंकियों को अंतरिम सरकार में शामिल करवाया, उससे अब ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिकी भी यह सोचने पर मजबूर हुए हैं कि पाकिस्तान से आतंकियों को और बढ़ावा मिलेगा। यह एक बड़ी बात है।
हालांकि जिस समय कमला हैरिस हमारे प्रधानमंत्री से मिल रही थीं, ठीक उसी समय उनके विदेश मंत्री न्यूयॉर्क में पाकिस्तान के विदेश मंत्री से मिल रहे थे। जिस तरह से पाकिस्तान ने तालिबान और चीन के साथ मिलकर अफगानिस्तान में अपनी पैठ बनाई है, उससे अमेरिका को अपने लिए थोड़ा खतरा महसूस हो रहा है। हालांकि ज्यादा खतरा भारत के लिए पैदा हो गया है।
इसलिए भारत के लिए यह जरूरी हो गया है कि अमेरिका से बात करके यह जाना जाए कि उनकी आगे की विदेश नीति कैसी बन सकती है-एशिया के बारे में, भारत के बारे में और अफगानिस्तान से निकलने के बाद इस क्षेत्र के बारे में। अब तक जो बात निकल कर आई है, उससे यह पता चलता है कि दुनिया भर में लोकतंत्र के रक्षक के रूप में अपनी भूमिका त्याग कर अमेरिका संतुष्ट है।
इराक, सीरिया और अफगानिस्तान के अनुभवों से उसे यह लगने लगा है कि सेना के बल पर किसी दूसरे देश में लोकतंत्र बहाली की कवायद निरर्थक है और उसके लिए क्यों अपने संसाधन खर्च किए जाएं। चीन की बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए ही राष्ट्रपति बाइडन ने ऑकस गठबंधन को आगे बढ़ाया है। ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री के लिए यह जरूरी हो गया था कि उनसे मिलकर भारत की चिंता के बारे में बताया जाए।
हमने यह सोचकर अफगानिस्तान में अमेरिका से काफी नजदीकियां बढ़ाई थीं कि अमेरिका हमारा सबसे विश्वसनीय साझीदार होगा। लेकिन अफगानिस्तान के घटनाक्रम के बाद जिस तरह से पाकिस्तान, तालिबान को इस क्षेत्र में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने की पूरी स्वतंत्रता मिल जाएगी, उसमें भारत की चिंता स्वाभाविक है। ऑकस को लेकर जो नए समीकरण बने हैं, जिसमें नई टेक्नोलॉजी, क्वांटम टेक्नोलॉजी, परमाणु टेक्नोलॉजी आदि को लेकर भविष्योन्मुख प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाया जाएगा, वह चीन को सीधे चुनौती है। इसके तहत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक ऐसा नेटवर्क बनाया जाएगा, जिससे चीन की आक्रामकता पर अंकुश लगाया जा सकेगा।
भारत के लिए इन देशों के साथ इसलिए भी संपर्क बढ़ाना जरूरी है कि अगर कहीं चीन भारत के साथ जमीनी सीमा पर अतिक्रमण करता है, पाकिस्तान के साथ मिलकर अफगानिस्तान के जरिये, तो भारत किस तरह से अपने आपको सुरक्षित कर सकता है। इस बीच अच्छी खबर यह भी है कि फ्रांस ने भी भारत को विशेष साझीदारी का प्रस्ताव दिया है। जिस तरह से भारत के खिलाफ माहौल बने हैं, भारत की चिंता का समाधान ऑकस से नहीं हो पाएगा।
उसके लिए क्वाड को और भी मजबूत करने की जरूरत है और अमेरिका के साथ द्विपक्षीय रिश्ते को और भी मजबूत करने की जरूरत है। इसके अलावा अगर हम फ्रांस के साथ रिश्ते आगे बढ़ाते हैं, तो अमेरिका हमें किस तरह से मदद दे सकता है। फ्रांस अगर कोई टेक्नोलॉजी भारत को देता है, तो अमेरिका उसमें अड़ंगे न लगाए। ईरान और रूस भी अफगानिस्तान के पड़ोसी हैं, जिस तरह से अफगानिस्तान में हालात बने हैं, उससे उन देशों में भी अस्थिरता पैदा हो सकती है।
इसलिए भारत को ईरान, रूस एवं अफगानिस्तान के अन्य पड़ोसी देशों के साथ संबंध बेहतर करने पर जोर देना चाहिए, ताकि पाकिस्तान, तालिबान और चीन का गठजोड़ भारत को नुकसान न पहुंचा सके। इस यात्रा में भारत की कोशिश है कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान सिर्फ कोविड वैक्सीन की आपूर्ति ही नहीं, बल्कि निवेश, आपूर्ति शृंखला, टेक्नोलॉजी हस्तांतरण, व्यापार आदि क्षेत्रों में भारत को पूरा सहयोग करे। हालांकि इस यात्रा से बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं लगाई जा सकती हैं, क्योंकि बाइडन की अपनी घरेलू समस्याएं भी हैं, लेकिन भविष्य की दृष्टि से प्रधानमंत्री की यह यात्रा महत्वपूर्ण हो सकती है।

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