आपदा पर ओछी राजनीति: अगले चरण के कोरोना टीकाकरण पर कांग्रेस-शासित राज्य साध रहे हैं संकीर्ण राजनीतिक हित

कांग्रेस के शासन वाले राज्यों-पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ झारखंड ने अगले चरण के टीकाकरण अभियान को शुरू करने पर जिस तरह संदेह जताया, उससे यही पता चलता है

Update: 2021-04-26 08:18 GMT

 जनता से रिश्ता वेबडेस्क |  भूपेंद्र सिंह कांग्रेस के शासन वाले राज्यों-पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ झारखंड ने अगले चरण के टीकाकरण अभियान को शुरू करने पर जिस तरह संदेह जताया, उससे यही पता चलता है कि आपदा के समय ओछी राजनीति करने का कोई मौका नहीं छोड़ा जा रहा है। इन चार राज्यों ने एक मई से टीकाकरण अभियान आरंभ करने में इस आरोप की आड़ में आनाकानी की कि केंद्र सरकार टीकों पर कब्जा कर रही है। इस शरारत भरे आरोप का मकसद केवल संकीर्ण राजनीतिक हित साधना है। यदि एक क्षण के लिए यह मान भी लिया जाए कि इस आरोप में कुछ सत्यता है तो सवाल उठेगा कि आखिर अन्य गैर भाजपा शासित राज्यों के सामने वैसी कोई समस्या क्यों नहीं, जैसी इन चार राज्यों के समक्ष कथित तौर पर आने जा रही है? इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि केंद्र सरकार अपने हिस्से के टीके राज्यों को देने के लिए ही खरीद रही है। वास्तव में यह पहली बार नहीं, जब कांग्रेस की ओर से कोरोना संक्रमण अथवा टीकाकरण को लेकर क्षुद्र राजनीति की गई हो। वह पहले दिन से यही काम कर रही है। लॉकडाउन लगाने से लेकर टीकाकरण अभियान शुरू करने तक के केंद्र सरकार के जो भी फैसले रहे, कांग्रेस ने हर एक पर चुन-चुनकर सवाल उठाए। उन मामलों को लेकर भी सवाल उठाए गए, जिनमें ऐसा करने की गुंजाइश भी नहीं थी।

चूंकि कांग्रेस का एक मात्र मकसद येन-केन प्रकारेण केंद्रीय सत्ता को नीचा दिखाना है, इसलिए उसके नेताओं ने कभी लॉकडाउन लगाने में देरी को लेकर सवाल उठाए तो कभी कहा कि उसे खत्म क्यों नहीं किया जाता? इसी तरह उन मसलों को लेकर भी केंद्र सरकार को घेरा गया, जिनके लिए राज्य सरकारें जवाबदेह थीं। आखिर इसे क्या कहेंगे कि कांग्रेस टीकाकरण अभियान को गति देने के लिए तो संकल्पित दिख रही है, लेकिन उसके कई बड़े नेताओं ने इस तथ्य को सार्वजनिक करना उचित नहीं समझा कि खुद उन्होंने टीका लगवा लिया है? कांग्रेसी नेता केवल यहीं तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने टीका बनाने अथवा उनका उत्पादन करने वाली भारतीय कंपनियों को कठघरे में खड़ा करने का भी काम इस हद तक किया कि उन्हें इस सवाल से दो-चार होना पड़ा कि क्या वे टीका बनाने वाली विदेशी कंपनियों की पैरवी कर रहे हैं? वैसे तो कोई भी दल ऐसा नहीं, जिसने कोरोना संकट के समय संकीर्ण राजनीति का परिचय न दिया हो, लेकिन इस मामले में कांग्रेस का कोई जोड़ नहीं। शायद उसे यह बुनियादी बात पता ही नहीं कि गहन संकट के समय राजनीतिक क्षुद्रता का परिचय देकर अपयश के अलावा और कुछ हासिल नहीं किया जा सकता।


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