धारणाएं कोई भी काम को बिगाड़ने वाला पहला कदम होती हैं

इस सोमवार को मैं ‘दूधवाला’ फ्लाइट पकड़ने के लिए मुंबई एयरपोर्ट पर कतार में लगा था

Update: 2022-03-15 08:28 GMT
एन. रघुरामन का कॉलम: 
इस सोमवार को मैं 'दूधवाला' फ्लाइट (अलसुबह) पकड़ने के लिए मुंबई एयरपोर्ट पर कतार में लगा था। तभी वहां एक दौड़ता-हांफता आदमी आया और मेरे पीछे खड़ा हो गया। चूंकि मेरे आगे खड़े शख्स ने सूट पहना था और मैं टी-शर्ट में था, पीछे खड़े आदमी ने सूट वालेे 'जेंटलमैन' से पूछना उचित समझा। चूंकि वह हांफ रहा था इसलिए मैं उसकी बात ठीक से नहीं सुन पाया और मास्क के कारण उसके होंठ भी नहीं पढ़ पाया।
पर वो 'जेंटलमैन' उसकी बात समझ गया और आराम से कहा, 'फॉलो मी, यू आर कमिंग टू माय फ्लाइट' (मेरे पीछे आओ, तुम मेरी फ्लाइट में रहे हो) उसकी बात पर मुझे हंसी आ गई और उसका चेहरा उतर गया, उसने गुस्से में पूछा, 'इसमें हंसने वाली बात क्या है?' मैंने कहा, 'मैं चाहता हूं कि आपने जो कहा वो सही हो।' आपने कहा ना 'माय फ्लाइट और मुझे लग रहा था कि ये विमान किसी एयरलाइन के हैं।'
वह झेंपते हुए मुस्कुराया और कहा, 'ये इंग्लिश है, कुछ लोगों को समझ नहीं आती।' मैं खुश था कि उस घमंडी 'जेंटलमैन' से उलझे बिना उससेे बाहर निकल आया और अगले ही मिनट हम सुरक्षा गेट से निकलकर अपने-अपने एयरलाइन काउंटर की ओर बढ़ गए। कुछ मिनटों बाद मैंने देखा कि उन्हीं दो यात्रियों के बीच झगड़ा हो रहा है, एक जेंटलमैन और दूसरा पूछने वाला। बाद में मुझे पता चला कि दोनों एक ही जगह जा रहे थे, पर एक विस्तारा एयरलाइन से तो दूसरा एअर एंडिया से जा रहा था।
इस जेंटलमैन टाइप के शख्स ने विस्तारा के यात्री को भी अपनी ही पंक्ति में लगा दिया क्योंकि उसे लगा कि दोनों कंपनियां टाटा ग्रुप की हैं, एेसे में उनकी चैक-इन सुविधा भी एक साथ ही होगी। विस्तारा से जाने वाला यात्री पहले ही लेट था और इस जेंटलमैन के पीछे एअर इंडिया की कतार में खड़े होकर वह अपने 20 मिनट खराब कर चुका था। जैसे ही उस आदमी ने कोसना शुरू किया, वह जेंटलमैन उस गुस्सा यात्री से जल्दी से सॉरी कहकर गायब हो गया। एक सेकंड को उसकी आंखें मुझसे टकराईं।
मैं मुस्कराया, पर इस बार उसकी पूछने की हिम्मत नहीं हुई कि किस बात पर हंस रहे हो? इस घटनाक्रम से मुझे इसी तरह से धारणा बनाने की अपनी गलती याद आ गई, यह वाक्या पिछले हफ्ते जयपुर में हुआ था। स्थानीय व्यवसायी के साथ काम खत्म करने के बाद मैं टैक्सी से वापस एयरपोर्ट जा रहा था। दैनिक भास्कर का दफ्तर देखकर मैंने टैक्सी ड्राइवर को दो मिनट इंतजार करने के लिए कहा और सोचा कि संपादक से मिल आऊं।
गाड़ी से उतरकर मैं सुरक्षा गार्ड को हाथ हिलाते हुए अंदर ऐसे जाने लगा, मानो वो मुझे जानता हो। लक्ष्मी दत्त नाम का सुरक्षा गार्ड तत्काल दौड़कर आया और कहा, 'हैलो, आपको किससे मिलना है।' जब मैंने संपादक का नाम लिया तो उसने कहा कि वो अभी दफ्तर में नहीं है। जाहिर है कि वो चाह रहा था कि मैं वापस कार की ओर लौट जाऊं। पर उसके बाद भी जब मैंने दफ्तर के अंदर जाने की कोशिश की, तो उसने कड़क आवाज़ में पूछा 'वैसे आप हैं कौन?'
मुझे अपना मास्क उतारकर चेहरा दिखाना पड़ा और कहा मैं रघुरामन हूं। उसने मुझे पहचान लिया और सॉरी बोलने लगा। मैंने कहा, 'दत्त जी, आपने वही किया, जिसकी आपसे उम्मीद की जाती है इसलिए सॉरी फील न करें। बल्कि गलती मेरी है कि मुझे सबसे पहले अपना परिचय देना चाहिए।' और फिर मैं मुस्कराया और पूछा कि 'अब परिचय दे दिया है, क्या मैं वॉशरूम इस्तेमाल कर सकता हूं।' फिर हम दोनों हंसे और दोनों में से किसी ने नहीं पूछा कि 'इसमें हंसने वाली बात क्या थी?'
फंडा यह है कि धारणाएं निश्चित तौर कोई भी काम को बिगाड़ने वाला पहला कदम साबित होती हैं।
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