दिल्ली में देशभक्ति

राष्ट्रीय राजधानी के स्कूलों में देशभक्ति का पाठ पढ़ाने का फैसला अनुकरणीय और स्वागतयोग्य है

Update: 2021-09-30 08:34 GMT

राष्ट्रीय राजधानी के स्कूलों में देशभक्ति का पाठ पढ़ाने का फैसला अनुकरणीय और स्वागतयोग्य है। दिल्ली के स्कूलों में इसी सप्ताह देशभक्ति बढ़ाने संबंधी पाठ्यक्रम की शुरुआत कर दी गई है। केवल प्राथमिक कक्षा ही नहीं, बल्कि नर्सरी कक्षा से 12वीं कक्षा तक देशभक्ति का पाठ पढ़ाया जाएगा। इस पाठ के तहत बच्चों, किशोरों को देश के प्रति जिम्मेदारी का एहसास कराया जाएगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने देशभक्ति पाठ्यक्रम शुरू करते हुए कहा है कि ऐसा माहौल बनाने की जरूरत है, जहां लोग 24 घंटे देशभक्ति का अनुभव करें। अक्सर देखा गया है कि लोग देशभक्ति गीत सुनते समय और देशभक्ति की फिल्म देखते हुए अभिभूत होते हैं। बाकी समय उनका व्यवहार देश के प्रति उदासीन ही रहता है। ऐसे बहुत कम लोग होते हैं, जो यह सोचते हैं कि उनके किसी कार्य से देश को नुकसान तो नहीं होगा। उत्साह से भरे केजरीवाल ने यहां तक कहा है कि देशभक्ति पाठ्यक्रम भारत की प्रगति यात्रा में मील का पत्थर साबित होगा।

दिल्ली में शुरू हुआ यह ताजा पाठ्यक्रम अगर देशभक्तों की संख्या बढ़ा सका, तो यह समाज में किसी क्रांति से कम नहीं होगा। ऐसे नागरिक चाहिए, जो देश को सबसे पहले या सबसे आगे रखकर चलें। जो कुछ भी करने से पहले यह जरूर सोचें कि इससे उनका देश कमजोर होगा या मजबूत। हालांकि, यह उम्मीद करना अतिरेक ही होगा कि देश में किसी ऐसी पीढ़ी का पदार्पण होगा, जो पैसे या धन को तरजीह नहीं देगी। आज के समय में पैसे को तरजीह देना जरूरी है, लेकिन नैतिकता का स्तर ऐसा होना चाहिए कि जब प्रश्न देश का आए, तब उससे किसी तरह का समझौता न किया जाए। वाकई देश को देशभक्त डॉक्टर, इंजीनियर, वकील और अन्य पेशेवरों की जरूरत है, लेकिन सबसे बड़ी जरूरत है देशभक्त नेता। अगर शासन और प्रशासन में बैठे लोग ईमानदार हो जाएं, अगर वे अपनी शपथ हमेशा याद रखें, संविधान के मूल मकसद को याद रखें, तो फिर इससे अच्छी बात क्या हो सकती है? जब नेता और अधिकारी संविधान के नाम पर ली गई शपथ भूल जाते हैं, तभी भ्रष्ट होते हैं। भ्रष्ट होना भी देशद्रोह ही है। देशभक्ति पढ़ाने से निश्चय ही लाभ होगा, पर बड़े लोगों को अपने व्यवहार से देशभक्ति का प्रमाण भी देते रहना होगा। ध्यान रहे, बच्चे पढ़कर कम और देखकर ज्यादा सीखते हैं। बहरहाल, देश के दूसरे राज्यों की सरकारों को भी इस देशभक्ति पाठ्यक्रम पर निगाह डालकर सीखने की जरूरत है। यह पाठ्यक्रम 100 स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियों के साथ शुरू हो रहा है। दिल्ली में जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होगा, वह लगभग 700-800 ऐसे सेनानियों के बारे में जान पाएगा। सेनानियों के बारे में पहले भी काफी कुछ पढ़ाया-बताया जाता रहा है, लेकिन अब निर्दिष्ट रूप से पढ़ाने-बताने की कोशिश किसी प्रयोग से कम नहीं है। शिक्षा संस्थाओं और विशेषज्ञों को इस पहल पर ध्यान देना चाहिए। यह शोध का विषय है कि पढ़ाई का कितना प्रत्यक्ष असर चरित्र पर पड़ता है। बहुत अच्छा पढ़े-लिखे लोग भी भ्रष्टाचार में डूबे नजर आते हैं। कहा जाता है कि पढ़े-लिखे लोग ही अक्सर देशद्रोह के काम में दिखते हैं। अत: विशेष रूप से शिक्षकों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई है। बच्चों को देशभक्ति के लिए हम तभी ज्यादा प्रेरित कर पाएंगे, जब हमारी कथनी-करनी का भेद मिटेगा।


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