Pakistan Political Crisis : एक वोट से कुर्सी गंवाने वाले वाजपेयी की तरह क्या शहादत को भुना सकेंगे इमरान खान
याद करिए 1999 का वो दिन जब भारत की संसद में भारतीय जनता पार्टी के नेता और देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) अपनी सरकार बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे
संयम श्रीवास्तव
याद करिए 1999 का वो दिन जब भारत की संसद में भारतीय जनता पार्टी के नेता और देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) अपनी सरकार बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे. देश टीवी पर विपक्ष के लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर बहस को देख रहा था. उस बहस की खास बात ये थी कि बीजेपी को पता था कि उसकी सरकार बचने वाली नहीं है बस जनता के बीच में जाने के पहले अपने को शहीद साबित करने का एक मौका था और जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी पूरी तरह सफल रहे
ठीक वही मौका शुक्रवार रात पाकिस्तानी (Pakistan) पीएम इमरान खान (Imran Khan) के पास भी था. हालांकि दोनों देशों की परिस्थितियां बिल्कुल अलग-अलग थीं. ये सही है कि एक सम्मानित लोकतांत्रिक तरीके का सम्मान करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना त्यागपत्र दे दिया था. इमरान चाहते तो वो भी ऐसा कर सकते थे. ये सवाल बार-बार सोशल मीडिया पर उठ रहा है. पर क्या पाकिस्तान में वैसा ही होता जैसा अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भारत में हुआ? इसका उत्तर शायद नहीं में ही दिया जा सकता है. पाकिस्तान का लोकतंत्र अभी उस ऊंचाई को नहीं प्राप्त कर सका है जहां कोई प्रधानमंत्री अपने ऊपर लगे आरोपों के बाद निश्चिंत होकर अपने त्यागपत्र का ऐलान कर सके. हालांकि इसके बाद भी 6 कारण ऐसे दिखाई दे रहे हैं जिनके बूते यह कहा जा सकता है कि जिस तरह भारत में अटल बिहारी वाजपेयी और बीजेपी ने भारत में अपनी जड़ें जमा लीं वैसा ही कुछ इमरान खान और उनकी पार्टी तहरीके इंसाफ भी पाकिस्तान में कर सकती है.
पाकिस्तान की जनता के बीच हीरो बनकर उभर सकते हैं इमरान
इमरान खान अपनी सरकार पर तलवार लटकने के बाद से लगातार जनता के बीच ये संदेश दे रहे हैं कि पाकिस्तान की एक संप्रभु विदेश नीति होनी चाहिए. अपरोक्ष रूप से उनका कहना होता है कि कहीं न कहीं से एक कमजोर राष्ट्र के लिए पाकिस्तान की फौज जिम्मेदार है. वो लगातार विपक्ष के भ्रष्टाचार के कारनामों की चर्चा करते हैं. विपक्ष के नेताओं के विदेशों में जमा रकम और उनकी संपत्तियों का उल्लेख करते हैं. विपक्ष के नेताओं के अमेरिका के हाथों बिके होने का आरोप लगाते हैं. अपनी पार्टी के सांसदों के टूटने की वजह भी वो देश में आकंठ डूबे भ्रष्टाचारी नेताओं पर लगाते हैं.
ये सही है कि उनकी बीवी बुशरा बीवी के नाम पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं. इसके साथ ही पाकिस्तान का नाम भ्रष्ट देशों की सूची में उनके कार्यकाल में और नीचे गया है. पर उनके ऊपर डायरेक्ट कोई ऐसा मामला नहीं आया है जो उन्हें भ्रष्टाचार में डूबा हुआ साबित कर सके. पाकिस्तान में अभी वर्तमान में जो नेता सक्रिय हैं उनमें इमरान खान के मुकाबले सभी पर काली कमाई के आरोप कुछ ज्यादा ही हैं. इस संबंध में शरीफ परिवार का रिकॉर्ड तो बहुत ही खराब है. जनता के बीच अगर इमरान यह संदेश देने में सफल रहे कि वो भ्रष्ठाचार के मामलों में पाक-साफ हैं तो कोई ताकत उन्हें फिर से जनता का विश्वास हासिल करने से नहीं रोक पाएगी.
बीजेपी का भी मुकाबला वंशवादी राजनीति से था
भारतीय उपमहाद्वीप में जिस तरह आजकल राजनीतिक वंशवाद के खिलाफ हवा बह रही है उसका असर पाकिस्तान में भी पड़ना तय है. श्रीलंका संकट का सबसे बड़ा कारण वहां राजपक्षे परिवार का देश पर काबिज होना बताया जा रहा है. पाकिस्तान में इस बात की खूब चर्चा है कि इंडिया में राजनीतिक वंशवाद का किस तरह पतन हुआ है.
भारत में करीब सभी बड़े राजनीतिक घराने धीरे-धीरे राजनीतिक सत्ता से दूर हो रहे हैं. पाकिस्तान में भारत की तरक्की और मजबूती को आजकल बीजेपी और नरेंद्र मोदी के उभार को जोड़कर देखा जा रहा है. इमरान खान बार-बार भारत की तरक्की और मजबूती की तारीफ करने का संदेश यही होता है कि पाकिस्तान को एक मजबूत पार्टी की संप्रभु सरकार की जरूरत है. पाकिस्तान पीपूल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज दोनों पार्टियां आज इस देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां हैं दोनों दलों के नुमाइंदे देश के 2 प्रमुख राजनीतिक घरानों के हैं. इस बीच तहरीके इंसाफ पार्टी राजनीतिक वंशवाद को मुद्दा बनाकर आम जनता की सहानुभूति पा सकती है.
वाजपेयी एक वोट से तो इमरान ने केवल 2 वोट से कुर्सी गंवाई है
आज जब इमरान खान ने 2 वोटों की वजह से अपनी प्रधानमंत्री की कुर्सी गंवा दी, तब हमें वह दिन भी याद करना चाहिए जब भारत के एक प्रधानमंत्री ने एक वोट से अपनी कुर्सी गंवा दी थी. वह प्रधानमंत्री थे अटल बिहारी वाजपेई. 16 अप्रैल साल 1999 को जब लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेई अपना बहुमत साबित करने के लिए प्रयासरत थे, तब उनकी सरकार महज़ एक वोट से गिर गई थी. उस वक्त वाजपेई सरकार के पक्ष में 269 और विपक्ष के पक्ष में 270 वोट पड़े थे. 10 अप्रैल 2022 की तारीख पाकिस्तान के इतिहास में दर्ज हो गई है, क्योंकि इस दिन इमरान खान पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं जिन्हें नो कॉन्फिडेंस मोशन में हार का सामना करना पड़ा. पाकिस्तान की संसद में बहुमत का आंकड़ा 172 है, और इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 174 वोट पड़े. यानि बहुमत से कुल 2 वोट ज्यादा. इन्हीं 2 वोटों की वजह से इमरान खान को पाकिस्तान की सत्ता से बेदखल होना पड़ा.
बीजेपी की तरह तहरीके इंसाफ पार्टी के ये उभरने के दिन हैं
1996 में 11वें लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 161 सीटें जीत ली थी मगर यह अंक बहुमत के जादुई आंकड़े से बहुत कम था . पर बीजेपी को इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरने का मौका मिला और अटल बिहारी वाजपेयी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया. हालांकि महज 13 दिन ही अटल बिहारी वाजपेयी इस पद पर रहे. तब की राजनीति में बीजेपी को दूसरी पार्टियां अछूत समझती थीं. फिलहाल पार्टी संसद में बहुमत साबित नहीं कर पायी और वाजपेयी को पद से हटना पड़ा. 1998 में फिर से चुनाव हुए और बीजेपी ने अपने प्रदर्शन में और सुधार किया. इस बार बीजेपी के खाते में 182 सीटें आईं. एक बार फिर से अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री चुने गए. इस बार भी दूसरे दलों के गठबंधन से बनी बीजेपी की सरकार महज 13 महीने ही चल सकी. विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में अटल सरकार एक वोट से हार गई पर जनता की नजर में वाजपेयी शहीद साबित हो गए. बाद में 1999 में बीजेपी की सरकार बनी और अटल जी तीसरी बार पीएम बने और अपना कार्यकाल पूरा किया. कुछ इसी तर्ज पर पाकिस्तान में तहरीके इंसाफ पार्टी का विकास हो रहा है. कुछ ऐसा ही हाल इमरान खान का भी 1918 में था. सरकार बनाने के समय उनकी पार्टी के पास 155 सदस्य थे और 23 सहयोगी दलों के साथ मिलकर उन्होंने सरकार बनाई थी. बीजेपी जिस तरह बीसवीं सदी के अंतिम दशक में अपने पांव जमा रही थी उसी तरह की इमरान की पार्टी तहरीके इंसाफ भी अभी पाकिस्तान में अपने जड़े मजबूत कर रही है. 1999 में सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी ने शहादत का फायदा उठाया था. इमरान खान के पास भी एक बहुत बड़ा मौका है अपनी पार्टी की जड़े मजबूत करने का.
बार-बार भारत की तारीफ में छिपा है घोर राष्ट्रवाद का रास्ता
भारत में जिस तरह भारतीय जनता पार्टी ने घोर राष्ट्रवाद को अपना आधार बनाया है कुछ इसी तरह इमरान खान भी पाकिस्तानी राष्ट्रवाद को भुनाने के चक्कर में हैं. कहा जा रहा है कि पिछले दिनों उन्होंने भारत की जो बार-बार तारीफ की है उसके पीछे उनकी यहीं मंशा थी. वो भारत का नाम लेकर पाकिस्तानी जनता के मन में भी घोर राष्ट्रवादी भावनाएं उभारना चाहते हैं. वो बार-बार अपने यहां विपक्ष के नेताओं-फौज और पुरानी सरकारों को टार्गेट कर रहे थे कि वे अमेरिका के इशारे पर चलते रहे जिसके चलते उनका देश स्वतंत्र विदेश नीति नही अपना सके. पाकिस्तान की राजनीति पर नजर रखने वालों के अनुसार ये काफी हद तक सही भी है. दुनिया भर की राजनीति पर आजकल राष्ट्रवादियों का कब्जा है. अमेरिका- योरोप हो या भारत राष्ट्रवाद की नई परिभाषा गढ़ी जा रही है. अगर इमरान अपने इस कैंपेन में कामयाब रहते हैं तो निश्चित ही भविष्य में बनने वाली सरकार पर वो अगले चुनावों में भारी पड़ेंगे.
इमरान भी अटल जी की तरह लंबी पारी खेलकर इस स्थान तक पहुंचे हैं
इमरान खान पीएम की कुर्सी तक यू हीं नहीं पहुंचे थे. इसके पीछे उनकी वर्षों की तपस्या रही है. अपने क्रिकेट कैरियर के दौरान उन्होंने अपनी मां शौकत खानम के नाम कैंसर हॉस्पिटल बनाने का सपना संजोया था. इस अस्पताल के निर्माण के लिए फंड जुटाने के काम में उन्होंने कई बार बॉलीवुड सितारों और भारतीय क्रिकेट खिलाडि़यों की भी मदद ली. बताया जाता है कि उनकी मां के नाम पर पाकिस्तान में बना यह अस्पताल आज पाकिस्तान का सबसे बड़ा अस्पताल है. पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं. अस्पताल के निर्माण के दौरान ही उन्होंने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे. 1996 में उन्होंने राजनीतिक पार्टी तहरीके इंसाफ पार्टी का गठन किया . 2018 में वे पीएम बने. इस तरह सार्वजनिक जीवन जीते हुए उन्हें कुल 3 दशक हो चुके हैं. ये सही है कि क्रिकेट के सबसे बड़े सितारे होने के चलते उनकी बहुत बड़ी फैन फॉलोइंग रही है पर वो अपने किसी बाप-दादा के नाम पर पाकिस्तान की राजनीति नहीं कर रहे हैं. उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया है उसे अपने दम पर किया है.