OPINION: आर्थिक और कारोबारी तस्‍वीर बदल रही मोदी सरकार की राजमार्ग परियोजनाएं

आर्थिक और कारोबारी तस्‍वीर

Update: 2021-09-22 08:38 GMT

सड़कें सिर्फ आवागमन और कारोबार का ही जरिया नहीं होतीं, बल्कि ये संस्कृतियों को नजदीक लाने में भी बड़ी भूमिका निभाती हैं. अच्छी सड़कें सिर्फ आर्थिक तरक्की को ही रफ्तार नहीं देतीं, बल्कि वे भिन्न सभ्यताओं के लोगों के बीच पुल का भी काम करती हैं. उनके जरिए माल-असबाब की ढुलाई तो होती ही है, यात्रा-तीर्थाटन के लिए लोग भी निकलते हैं. इनके जरिए संस्कृतियों के बीच आदान-प्रदान भी होता है. शायद यही वजह है कि प्राचीन काल से लेकर अब तक सड़कों का महत्व कम नहीं हुआ है. आज के दौर में अगर कोई सरकार सड़कों की इस ताकत को नहीं समझती तो उसकी सोच पर चिंता ही जताई जा सकती है. लेकिन भारत इस बात पर गर्व कर सकता है कि उसके सड़क परिवहन की कमान ऐसे व्यक्ति के हाथ है, जो ना सिर्फ सड़कों के इस सांस्कृतिक महत्व को समझता है, बल्कि उनके रख-रखाव और उनके बेहतर निर्माण के काम में गहरे तक दिलचस्पी लेता है.

गडकरी की विशेष रुचि
निश्चित तौर पर यहां बात सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की हो रही है. गडकरी का कुशल निर्देशन ही है कि राजमार्ग की परियोजनाएं ना सिर्फ तय वक्त में पूरी हुई हैं, बल्कि राजमार्गों के निर्माण में तेजी भी आई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाते हैं, उनमें सड़क परियोजनाओं का जिक्र जरूर होता है. कुछ राजनीतिक जानकारों का यहां तक मानना है कि मोदी सरकार की वापसी में सड़क परिवहन मंत्रालय के कामकाज और सड़क निर्माण के रिकॉर्ड की भी बड़ी भूमिका रही.
भारत में सड़कों का इतिहास ईसापूर्व चार हजार साल से पहले तक का है. हड़प्पा काल की सड़कों के जो प्रमाण मिले हैं, वे यह बताने के लिए काफी हैं कि भारतीय समाज सड़कों के बारे में कैसी सोच रखता था. उन दिनों सड़कें चौड़ी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं. यह सड़क की अहमियत का ही प्रतीक है कि मौर्य साम्राज्य के दौरान आज के बांग्लादेश के चटगांव से लेकर अफगानिस्तान के काबुल तक सड़क बनाई गई थी. यह सड़क गंगा के किनारे होते हुए आगे जाकर प्राचीन भारत के शैक्षिक गौरव तक्षशिला को देश के पूर्वी इलाके को जोड़ती थी. तब इसे उत्तरपथ कहा जाता था. उत्तर पथ मतलब उत्तर की ओर जाने वाली राह. मध्यकाल में शेरशाह सूरी ने इसे सड़क-ए-आजम नाम दिया और उसका पुनरुद्धार कराया. आर्थिक और सैनिक कारणों से बनाई गई इस सड़क के बड़े हिस्से का अंग्रेजों ने 1833 से 1860 के बीच फिर से बेहतर तरीके से बनवाया और इसे नया नाम दिया ग्रैंड ट्रंक रोड. जिसे हम अब भी जीटी रोड के नाम से जानते हैं.
जिस देश में सड़क निर्माण का ऐसा इतिहास रहा हो, वहां भी उन्नीसवीं सदी तक कुछ कमियां रहीं. पश्चिमी विचारक ऑर्थर कॉटन की मशहूर किताब साल 'पब्लिक वर्क्स इन इंडिया' 1854 में आई थी. इस किताब के मुताबिक भारत में अठारहवीं सदी तक सैनिक सरोकारों के लिए सड़कों के निर्माण की मांग नहीं उठी थी. कॉटन की किताब प्रकाशित होने के करीब पांच दशक बाद भारत सरकार की ओर से 'इंपीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया' प्रकाशित हुआ था. 1908 में प्रकाशित इस गजेटियर के तीसरे खंड में सड़क परिवहन से जुड़ी जानकारियां समाहित हैं. इसी में बताया गया है कि आधुनिक दौर में देश में अच्छी सड़कों के निर्माण की जरूरत 1840 के आसपास शुरू हुई. इसके करीब एक साल पहले अंग्रेज भारत की राजधानी कलकत्ता को दिल्ली से जोड़ने के लिए सड़क निर्माण पर फोकस किया गया.
आजादी के बाद से कम ध्यान दिया गया था
इतिहास की ये कुछ जानकारियां यह बताने के लिए काफी हैं कि सड़कों को लेकर भारतीय समाज कितना गंभीर रहा है. आजादी के बाद सड़क निर्माण की तरफ अन्य कार्यों की तरह ध्यान दिया गया, लेकिन जितना फोकस चाहिए था, वैसा नहीं रहा. इस पर गंभीरता से काम अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान हुआ, जब स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के तहत देश के चार बड़े महानगरों को सड़क मार्ग से जोड़ने का काम शुरू हुआ. नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद सड़क परिवहन की कमान नितिन गडकरी को मिली. इसके वे स्वाभाविक दावेदार भी थे. इसकी वजह थी, महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री रहते किए गए उनके कार्य. मुंबई से पुणे को जोड़ने के लिए उन्होंने जो एक्सप्रेस वे तैयार कराया, उससे उनकी ख्याति राष्ट्रीय स्तर पर पहुंची. अपने कार्यकाल में उन्होंने महाराष्ट्र को बेहतर सड़कों से पाट दिया. मुंबई में इतने फ्लाईओवर बनवाए कि उन्हें फ्लाईओवर मैन तक कहा जाने लगा.
सात साल में 50 फीसद की बढ़ोतरी
यह गडकरी की दूरदर्शिता का ही कमाल है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के पहले अप्रैल 2014 तक जहां राजमार्गों की लंबाई 91 हजार 287 किलोमीटर थी, वह सात वर्षों में बढ़कर 20 मार्च 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक एक लाख 37 हजार 625 किलोमीटर हो गई है. यानी सिर्फ सात साल में इनकी लंबाई में पचास फीसद की बढ़ोतरी हुई है. इसके साथ ही सड़क निर्माण के बजट खर्च में करीब साढ़े पांच गुना की वृद्धि हुई है. सड़क निर्माण के लिए साल 2015 में जहां 33 हजार 414 करोड़ रुपये का बजटीय खर्च था, वहीं साल 2022 में यह बढ़कर एक लाख 83 हजार 101 करोड़ रुपये हो गया है. दिलचस्प यह है कि कोरोना के चलते जहां तमाम विकास कार्यों में गिरावट आई, वहीं सड़क निर्माण में ज्यादा अंतर नहीं पड़ा. कोविड-19 महामारी के बावजूद साल 2020 के लिए सड़क निर्माण खर्च के लिए मंजूर राशि की तुलना में 2021 की राशि में 126 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. इतना ही नहीं, साल 2020 की तुलना में मौजूदा साल में स्वीकृत सड़क लंबाई में भी 9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
सड़क परिवहन और वित्त मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि साल 2015 से 2021 के बीच औसत वार्षिक प्रोजेक्ट करीब 85 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है. इसी तरह वित्त वर्ष 2015 से 2021 के दौरान औसत वार्षिक निर्माण में वित्त वर्ष 2010 से 2014 की तुलना में 83 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. नितिन गडकरी के प्रयासों से अब सड़क निर्माण में सौ फीसद विदेशी निवेश को मंजूरी मिल गई है. इसी साल एक मई को एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का लक्ष्य अगले दो वर्षों में देश भर में सड़कों और राजमार्गों के निर्माण के लिए लगभग 15 लाख करोड़ रुपये खर्च करना है. अभी तक हर दिन 37 किलोमीटर सड़कों का निर्माण हो रहा है, जबकि इसे अब चालीस किलोमीटर रोजाना करने का लक्ष्य रखा गया है.
सड़क निर्माण में गडकरी आम सरकारी चलन की बजाय आधुनिक तरीका इस्तेमाल करते हैं. मध्य प्रदेश के सिवनी से नागपुर तक गुजरने वाले हाईवे का करीब तीस किलोमीटर इलाका घने जंगल से गुजरता है. इस राजमार्ग से जंगली जानवरों को नुकसान ना हो, इसके लिए पूरी सड़क को जमीन से ऊपर उठाकर फ्लाईओवर की तर्ज पर बनाया गया है, ताकि जानवर को सड़क के आसपास से गुजरते वक्त कोई दिक्कत न हो. गडकरी के नाम ऐसे कई रिकॉर्ड दर्ज हैं.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए  जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

उमेश चतुर्वेदी, पत्रकार और लेखक
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय. देश के तकरीबन सभी पत्र पत्रिकाओं में लिखने वाले उमेश चतुर्वेदी इस समय आकाशवाणी से जुड़े है. भोजपुरी में उमेश जी के काम को देखते हुए उन्हें भोजपुरी साहित्य सम्मेलन ने भी सम्मानित किया है.
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