ऑनलाइन पढ़ाई: कई मोर्चों पर जूझ रही हैं महिला शिक्षक

महानगर मुम्बई में हायर क्लासेस को मैथ्स-साइंस पढ़ा रहीं कोमल कहती हैं

Update: 2021-09-03 14:53 GMT

महानगर मुम्बई में हायर क्लासेस को मैथ्स-साइंस पढ़ा रहीं कोमल कहती हैं-  मुश्किलें तो बहुत बढ़ी हैं लेकिन फिलहाल एडजस्ट करने के अलावा कोई ऑप्शन भी नहीं है। मुम्बई में हमारे पास सबसे बड़ी समस्या जगह की ही होती है। यहां 2 बीएचके का मालिक होना भी लक्ज़री ही है। दिक्कत यह है कि मेरे ससुर जी लम्बे समय से बीमार हैं और बिस्तर पर ही हैं और एक रूम उनके लिए है। मेरे पति भी वर्क फ्रॉम होम के कारण घर से ही दफ्तर का काम कर रहे हैं, तो एक रूम उनके लिए है। बचा एक रूम, जिसमें मेरे साथ मेरे 12 वर्षीय बेटे की ऑनलाइन क्लासेस भी चलती हैं। अब ऐसे में हर चीज मैनेज करना मुश्किल तो है ही। इस सबके साथ रोज का काम अपनी जगह है। मैं सुबह 4.30 पर उठती हूँ। सबके नाश्ते-दूध- चाय का इंतज़ाम करके मैं दो क्लासेस का लेक्चर लेती हूं इतने में लंच का टाइम हो जाता है। वह पूरा करती हूं इतने में फिर क्लासेस का टाइम हो जाता है। क्लासेस पूरी होते होते शाम की चाय और डिनर का टाइम होने लगता है। सास और पति भी अपनी क्षमता अनुसार हाथ बंटाते हैं लेकिन मेरी भागदौड़ तो मेरी ही है। ऊपर से पति की मीटिंग तो सुबह से शुरू हो जाती हैं। इन सबके बाद अगले दिन के लेक्चर की तैयारी, बेटे का होमवर्क और क्लास के बच्चों का वर्क, ये सब मिलकर आधी रात कर देते हैं। रोज 2-2.30 बजे रात को सोना हो रहा है। नींद पूरी नहीं होने से सबकुछ गड़बड़ हो रहा है। एक सन्डे मिलता है वो पूरा कपड़े धोने, घर की सफाई और बाकी कामों में बीत जाता है। पता नहीं कब ये सब नॉर्मल होगा और हम फिर से रेग्युलर रूटीन पर आ पाएंगे।


प्राइमरी क्लासेस को पढ़ा रहीं वैदेही की समस्या इससे कुछ अलग है। वे कहती हैं
संयुक्त परिवार में रहती हूं और मेरी जेठानी और सास दोनों बहुत सपोर्टिव हैं। इसलिए घर के काम का इतना बर्डन नहीं है लेकिन ऑनलाइन क्लासेस को मैनेज करना इतना आसान नहीं है। छोटे बच्चों को इस तरह से पढ़ाना सबसे कठिन काम है। आधा समय तो उन्हें यह समझाने में ही निकल जाता है कि उन्हें माइक बन्द रखना है, वीडियो ऑफ नहीं करना है। कई बच्चे तो बदतमीजी पर भी उतर आते हैं। क्लास के बीच में ही टीचर्स से बदतमीजी करने लगते हैं। हम उनको गलती करने पर डांट तक नहीं सकते क्योंकि मैनेजेमेन्ट की सख्त हिदायत है। मेरी एक कलीग तो पिछले हफ्ते इतना परेशान हो गई कि वह रोने ही लगी। कुछ बच्चों ने उसका कहना नहीं माना और वे दूसरे बच्चों को भी डिस्टर्ब कर रहे थे। उसने उन बच्चों को क्लास से रिमूव किया तो उनके पैरेंट्स ने फोन पर ही उसे धमकियां तक दे डालीं। मैनेजमेंट ने उल्टा पैरेंट्स का सपोर्ट किया और उसे ही नसीहत दे दी। नौकरी वो अभी छोड़ नहीं सकती क्योंकि जरूरत है। टीचर्स के लिए रिस्पेक्ट तो बिल्कुल बची ही नहीं है। जब पैरेंट्स ही टीचर्स से ठीक व्यवहार नहीं करेंगे तो बच्चों को क्या दोष दिया जाए?
एक नहीं है मुश्किल
ऑनलाइन क्लासेस ने एक ओर अगर बच्चों को फिर से पढ़ाई से जुड़ने की सुविधा दी है तो इसकी वजह से टीचर्स के लिए कई एक्स्ट्रा टास्क भी सामने आ गए हैं। सबसे पहले तो एक्स्ट्रा मोबाइल की व्यवस्था, क्योंकि अधिकांश टीचर्स के बच्चे भी ऑनलाइन क्लासेस अटैंड कर रहे हैं। फिर सैलेरी का आधा रह जाना जबकि स्कूल वही पहले वाली फीस ले रहे है। फिर क्लासेस के पहले और बाद की लगातार मीटिंग्स, कमजोर बच्चों के लिए एक्स्ट्रा क्लासेस का जोर, ऑनलाइन कोर्स कम्प्लीट करवाने की जद्दोजहद, ऑनलाइन टेस्ट और एक्जाम्स को सही तरीके से करवाने का प्रेशर आदि।
ये सब चीजें मिलकर प्रक्रिया को और भी कठिन बना रही हैं। इस सबके बाद फिर घर का सारा काम मैनेज करना, सारी मीटिंग्स और क्लासेस के लिए खुद को तैयार करना, बच्चों को अनुशासन में रखना, नई तकनीकों को सीखना आदि कई चीजें हैं जो एकदम से महिलाओं के सिर पर आ गई हैं।
कैसे करेंग कंट्रोल?:
एक पब्लिक स्कूल में लैंग्वेज टीचर मधु कहती हैं-
'अनुशासन की तो बात ही मत कीजिये। ये पीढ़ी वैसे भी कम्प्यूटर और मोबाइल युग वाली है। हमसे ज्यादा इन्हें टेक्निकल ज्ञान है और हमसे पहले ये सीख जाते हैं। ये ज्ञान हम पर ही भारी पड़ रहा है। टीन एजर्स तो ठीक छोटे बच्चे तक बीच क्लास में हमें म्यूट कर देते हैं। इससे भी आगे बच्चों ने अपने अपने ग्रुप बना लिए हैं और क्लास के बीच मे इनकी चैटिंग चलती है जिसमे टीचर्स का मजाक उड़ाना भी शामिल है। हमारे स्कूल के कुछ लड़कों ने तो लड़कियों के फोटोग्राफ्स के साथ छेड़छाड़ करके क्लास के बीच में शेयर कर दिए। उन बच्चों को कुछ समय के लिए सस्पैंड किया फिर लगा साल बिगड़ जाएगा तो चेतावनी देकर फिर क्लास में जोड़ा। अब भले ही वो क्लास में चुप बैठते हैं लेकिन उनके दिमाग में क्या खिचड़ी पक रही है ये हम भी नहीं जान सकते। बस जल्दी से स्कूल शुरू हो जाएं तो हम भी आमने सामने रहकर बच्चों पर ठीक से ध्यान रख पाएंगे
उम्मीद है कि आने वाले समय मे स्थितियां नॉर्मल होने पर स्कूल जब खुलेंगे तो फिर से एक बार इन टीचर्स को अपने रेग्युलर रूटीन में आने में मदद मिलेगी। स्कूल का अनुशासन एक साथ सारे बच्चों को भी कई सबक सिखा पाएगा, यही उम्मीद करें।
क्रेडिट बाय अमर उजाला 
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