वन रैंक वन पैंशन का मुद्दा
सशस्त्र बलों में वन रैंक वन पैंशन मामले में केन्द्र सरकार को बड़ी राहत मिली है। देश की सर्वोच्च अदालत ने रक्षा बलों में वन रैंक वन पैंशन योजना शुरू करने के तरीके को बरकरार रखा है
आदित्य नारायण चोपड़ा: सशस्त्र बलों में वन रैंक वन पैंशन मामले में केन्द्र सरकार को बड़ी राहत मिली है। देश की सर्वोच्च अदालत ने रक्षा बलों में वन रैंक वन पैंशन योजना शुरू करने के तरीके को बरकरार रखा है, उसे इस योजना के कार्यान्वयन में कोई दोष नहीं दिखा। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस योजना के अपनाए गए सिद्धांत में कोई संवैधानिक खामी नहीं दिखी। ऐसा कोई विधाई जनादेश नहीं है कि समान रैंक वाले पैंशनभोगियों को समान पैंशन दी जानी चाहिए। दरअसल वन रैंक वन पैंशन सरकार का नीतिगत निर्णय है और नीतिगत मामलों में अदालत हस्तक्षेप नहीं करती। न्यायालय ने योजना की लम्बित पुर्ननिर्धारण प्रक्रिया एक जुलाई 2019 से शुरू की जानी चाहिए और तीन महीने में बकाया राशि का भुगतान किया जाना चाहिए। वन रैंक वन पैंशन की मांग को लेकर पूर्व सैनिकों ने लगभग चार दशक तक संघर्ष किया। सरकारें आती-जाती रहीं लेकिन इस मांग को तब पूरा किया गया जब 2014 में नरेन्द्र मोदी सरकार सत्ता में आई। पूर्व की सरकारों के पास इस योजना को लेकर कोई मजबूत रोडमेप नहीं था, जिसके कारण वे इस योजना काे लागू नहीं कर पाए। नरेन्द्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान इस योजना को लागू करने का वादा भी किया था।2015 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पारिकर ने इस योजना को जुलाई 2014 से लागू करने का ऐलान किया था और एरियर चार किश्तों में देने का फैसला किया। सरकार ने पैंशन की समीक्षा की अवधि 5 वर्ष रखी थी। शहीद होने वाले सैनिकों की विधवाओं को एकमुश्त पैसा देने का ऐलान किया गया ताकि वे अपना जीवन अच्छे से गुजार सकें। इस योजना का अर्थ अलग-अलग समय पर िरटायर हुए एक ही रैंक के दो फौजियों को समान पैंशन देना है। खासतौर पर जो सैनिक 2006 से पहले रिटायर हुए। वर्तमान समय में रिटायर होने वाले सैनिकों को उनकी रिटायरमैंट के समय के नियमों के हिसाब से पैंशन मिलती है। यानि जो लोग 25 वर्ष पहले रिटायर हुए, उन्हें उस समय के हिसाब से पैंशन मिलती थी जो बहुत कम थी। पूर्व सैनिकों को इस बात की पीड़ा होती थी कि उन्हें जीवन यापन के लिए सम्मानजनक राशि भी नहीं मिलती। पूर्व सैनिकों ने अपनी मांग के लिए आंदोलन भी चलाया और अपने पदक राष्ट्रपति भवन जाकर लौटा दिए थे। अंततः सरकार ने योजना लागू की जिससे देश के लगभग तीन लाख से ज्यादा रिटायर्ड सैनिकों को लाभ हुआ। इस योजना को इस प्रकार बनाया गया कि जो अफसर कम से कम 7 वर्ष कर्नल की रैंक पर रहा हो उन्हें भी समान रूप से पैंशन मिलेगी। ऐसे अफसरों की पैंशन दस साल तक कर्नल रहे अफसरों से कम नहीं होगी।इस योजना को लेकर विवाद भी जुड़ रहे हैं क्योंकि इसमें एक ही रैंक से रिटायर सैन्य कर्मियों को रैंक और सेवा की समय सीमा के आधार पर पैंशन देने का प्रावधान है न कि रिटायरमैंट की तारीख के आधार पर। ताजा विवाद यह था कि पूर्व सैनिकों की संस्था इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमैंट ने सात नवम्बर 2015 को इस योजना को लेकर केन्द्र की अधिसूचना को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि इस नीति से वन रैंक वन पैंशन का मूल उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा। अलग-अलग समय पर रिटायर हुए लोगों को अब भी अलग-अलग पैंशन मिल रही है। इसकी हर साल समीक्षा होनी चाहिए। जबकि नीति में 5 साल में समीक्षा का प्रावधान है। सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने तर्क दिया था कि उसने हर पूर्व सैनिक को समानता देनेे के लिए 2013 के वेतन को आधार बनाते हुए पैंशन तय की थी। इस तरह आजादी के बाद से कभी भी रिटायर हुए सैनिकों की पैंशन एक समान नहीं की गई। इस नीति को लागू करते ही सरकारी खजाने पर 7123 करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ा है। केन्द्र ने तो पैंशन की समीक्षा हर 10 साल में करने का सुझाव दिया था लेकिन बाद में इस अवधि को भी घटाकर 5 साल रखा गया है। केन्द्र का कहना था कि अब हर साल समीक्षा की मांग की जा रही है, इसे सही नहीं कहा जा सकता।संपादकीय :चीनी विदेश मन्त्री की यात्रा पहलद कश्मीर फाइल्स : नग्न सत्य'पंजाब में नया सूरज'होली के रंग , शीला मनोहर पश्चिम विहार शाखा के संगभारत में हिजाब की मानसिकतापूरा होगा डॉक्टर बनने का सपना?सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को लेकर बहुत सारे सवाल भी उठाए थे। पीठ का कहना था कि योजना को लेकर जो गुलाबी तस्वीर पेश की गई थी वास्तविकता उससे काफी अलग है। वन रैंक वन पैंशन नीति को केन्द्र सरकार द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। सभी तथ्यों पर गौर करते हुए अदालत ने कहा कि क्योंकि इस योजना की कोई कानूनी परिभाषा नहीं है। यह एक नीतिगत फैसला है और नीतिगत फैसले में कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करता। एक सांसद ने यह सवाल उठाया था कि पूर्व सैनिक वन रैंक वन पैंशन की मांग करते हैं। क्या भारत जैसे गरीब देश में मांग उचित है? तब सैनिक ने उत्तर दिया था कि मेरी पैंशन जिन्दगी का बीमा है। जिन्दगी चाहते हैं तो दे दें वर्ना आप की मर्जी। यह बात काफी हद तक सही भी है। जब यह सैनिक अपना घर परिवार छोड़कर 24 घंटे बार्डर पर पहरा देकर हमारे देश व देशवासियों की रक्षा करते हैं इसलिए सरकार अपना फर्ज निभाते हुए इन्हें हर सुविधा व लाभ दे। विसंगतियां तो हर नीति में कुछ न कुछ होती ही हैं लेकिन नरेन्द्र मोदी सरकार ने वन रैंक वन पैंशन लागू कर अपना दायित्व निभाया है।