तेल के भाव
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में प्रीमियम पेट्रोल की कीमत का तीन अंकों में पहुंच जाना न केवल दुखद, बल्कि चिंताजनक भी है
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में प्रीमियम पेट्रोल की कीमत का तीन अंकों में पहुंच जाना न केवल दुखद, बल्कि चिंताजनक भी है। आधुनिक जीवन में पेट्रोल अनिवार्यता है, यदि पेट्रोल के भाव में वृद्धि होगी, तो जाहिर है, आम आदमी का जीवन प्रभावित होगा। भोपाल में जहां पेट्रोल की कीमत 100 रुपये से ज्यादा है, वहीं मुंबई में यह 97, दिल्ली में 89, लखनऊ में 88, पटना में 91 और रांची में 87 रुपये के आस-पास है। दिलचस्प यह है कि भोपाल के कुछ पेट्रोल पंप मशीनों पर तीन अंकों की कीमत पर तेल बेचने की क्षमता भी नहीं थी। हालांकि, एमपी पेट्रोल पंप ऑनर्स एसोसिएशन ने भोपाल में प्रीमियम पेट्रोल की दर 100.04 रुपये प्रति लीटर की पुष्टि करते हुए कहा है कि सिर्फ 3-4 प्रतिशत ईंधन स्टेशन ही पुरानी मशीनों का उपयोग करते हैं और बिक्री पर असर नहीं पड़ा है। यह एक कारण है कि बढ़ती कीमतों के बावजूद बिक्री पर असर नहीं पड़ रहा है, इसलिए न तो तेल कंपनियां सोच रही हैं और न सरकार। अर्थव्यवस्था की गाड़ी तेजी से पटरी पर लौट रही है, तो जाहिर है, यातायात गतिविधियां भी निरंतर बढ़ेंगी। पेट्रोल की मांग और खपत का बढ़ना तय है, घटने का प्रश्न ही नहीं उठता। यातायात पर कोरोना का अभी बहुत असर है, लेकिन जिस दिन कोरोना का आतंक खत्म होगा, उस दिन पेट्रोल की कीमत किस ऊंचाई पर होगी, सोच लेना चाहिए। भले ही प्रीमियम पेट्रोल की बिक्री बहुत कम होती है, लेकिन इस वृद्धि से सामान्य पेट्रोल की कीमतों को निश्चित ही बल मिलेगा। तेल की कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए केंद्र सरकार को तो पहल करनी चाहिए, साथ ही, राज्य सरकारों को भी कदम उठाना पड़ेगा। ध्यान रहे, 1 फरवरी को बजट के बाद से छठी बार कीमतों में बढ़ोतरी देखी गई है और 1 जनवरी से 17वीं बार। यह भी गौरतलब है कि मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा तेल कर वसूलता है और इसीलिए यहां तेल कीमतें ज्यादा हैं। मध्य प्रदेश सरकार पेट्रोल पर 39 प्रतिशत और डीजल पर 28 प्रतिशत कर वसूलती है। इसके अलावा, प्रति लीटर पेट्रोल पर 31 रुपये और प्रति लीटर डीजल पर 23 रुपये केंद्रीय कर के रूप में वसूले जाते हैं। केंद्र सरकार अगर चाहे, तो कीमतें कम हो सकती हैं, पर राज्य सरकारों के हाथों में भी बहुत कुछ है। फिर भी अभी कोई भी सरकार जनता को राहत देने के पक्ष में नहीं है। जीएसटी के मद में राज्यों में कमाई घटी है, तो केंद्र सरकार पर भी बजट को लेकर दबाव है। अनेक केंद्रीय योजनाओं के लिए धन जुटाने का सबसे आसान माध्यम पेट्रोल और डीजल ही है, जहां आदमी खर्च करने से पहले ज्यादा नहीं सोचता, लेकिन केंद्र सरकार को विशेष रूप से सोचना चाहिए। पेट्रोल-डीजल का गणित जटिल है और हमारी सरकारों को समझना चाहिए कि जटिलता दूर करने के आर्थिक लाभ हैं। आखिर मुंबई और रांची में पेट्रोल की कीमतों में 10 रुपये का अंतर क्यों रहे? क्या पूरे भारत में एक ही कीमत नहीं हो सकती? दूसरा सबसे अहम सवाल यह कि सरकार पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाकर महंगाई को कितना बढ़ाना चाहती है? इसका संदेश गलत जा रहा है। जिस दौर में लाखों लोगों की नौकरी गई है, वेतन-भत्ते घटे हैं, उस दौर में पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ाते समय कई बार सोच लेना चाहिए। आए दिन कीमतें बढ़ना किसी के लिए ठीक नहीं।