तेल पर तकरार

बढ़ती तेल की कीमतों को लेकर लंबे समय से केंद्र सरकार सवालों के घेरे में है। डीजल, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस, रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।

Update: 2022-04-29 05:02 GMT

Written by जनसत्ता: बढ़ती तेल की कीमतों को लेकर लंबे समय से केंद्र सरकार सवालों के घेरे में है। डीजल, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस, रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। इसकी बड़ी वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमत है। र्इंधन की कीमत बढ़ने का असर खुदरा और थोक महंगाई पर भी दिखाई दे रहा है। थोक महंगाई अभी अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है।

उपभोक्ता वस्तुओं की पहुंच गरीब आदमी की थाली से दूर होती गई है। ऐसे में प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों से कहा कि वे वैट आदि अपने करों में कटौती करें। इस पर कुछ राज्यों, खासकर गैर-भाजपा सरकारों ने केंद्र पर तल्ख टिप्पणी करनी शुरू कर दी। इन राज्यों का कहना है कि केंद्र द्वारा लगाए गए ऊंचे उत्पाद शुल्क और उपकरों की वजह से र्इंधन की कीमतें बढ़ी हैं। उसे उन करों और शुल्कों में कटौती करनी चाहिए।

यह मामला इसलिए भी राजनीतिक रंग लेता गया है कि वैट में कटौती न करने वाले ज्यादातर गैर-भाजपा शासित राज्य हैं। पिछले साल नवंबर में जब केंद्र सरकार ने उत्पाद शुल्क में कटौती की थी और राज्यों से भी अपने करों में कटौती करने की अपील की थी, तब ज्यादातर भाजपा शासित राज्यों ने अपने करों में कटौती कर दी थी। अभी सात राज्यों ने कटौती नहीं की है। वे सभी गैर-भाजपा शासित हैं।

पेट्रोल, डीजल आदि की कीमतों में बढ़ोतरी पर अंकुश लगाने का मामला सदा से टेढ़ा रहा है। दरअसल, इस पर लगने वाले शुल्क और कर राज्यों के राजस्व का बड़ा स्रोत होते हैं। इसी के चलते पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी से बाहर रखा गया। जब भी इन्हें जीएसटी के दायरे में लाने की बात उठती है, तो राज्य सरकारें उसे मानने में टालमटोल करती या फिर विरोध में उठ खड़ी होती हैं।

इसके अलावा केंद्र सरकार तेल पर करीब चार उपकर और उत्पाद शुल्क वसूलती है, जो कि एकमुश्त होता है। अभी उत्पाद शुल्क प्रति लीटर करीब छब्बीस रुपए है। इस तरह केंद्र सरकार को प्रति लीटर मिलने वाला शुल्क काफी अधिक है। इसलिए राज्य सरकारों का कहना है कि पहले केंद्र सरकार अपने शुल्क में कटौती करे और उपकरों को समाप्त करे। इससे लोगों को काफी राहत मिलेगी। फिर उनका यह भी तर्क है कि अगर केंद्र उनके हिस्से के जीएसटी का भुगतान कर दे, तो वे र्इंधन पर वैट कम करने पर विचार कर सकते हैं।

राज्य सरकारों के सामने अपनी अर्थव्यवस्था संभालने की चुनौती हमेशा रहती है। तेल पर मिलने वाले करों से उन्हें बहुत सहारा रहता है। फिर जब से जीएसटी लगा है, राज्य सरकारों के सामने यह चुनौती और बढ़ी है। केंद्र से उन्हें जो अंशदान मिलना चाहिए, वह पूरा नहीं मिल पाया है, इसलिए कि कोरोना काल में बंदी और मंदी के चलते केंद्र भी जीएसटी की उगाही कम कर पाया था।

ऐसे में कई राज्य सरकारों के लिए पेट्रोल-डीजल पर करों की कटौती आसान काम नहीं है। मगर बढ़ती महंगाई और लोगों की बढ़ती मुश्किलों के मद्देनजर उनसे इस मामले में लचीला रुख अपनाने की उम्मीद स्वाभाविक है। दूसरी तरफ केंद्र से अधिक उदारता की अपेक्षा की जाती है। केवल राज्यों से कटौती की उम्मीद करने के बजाय उसे अपने हिस्से के करों और शुल्कों में भी कटौती करनी चाहिए। आखिर पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर उसने तीन महीने तक र्इंधन की कीमतें बढ़ने से रोक रखा था।


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