चंडीगढ़ में कल पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अगले चुनाव में 'आप' के जीतने पर पंजाब के लोगों को हर महीने 300 इकाई मुफ्त बिजली देने और पुराने सभी बकाया बिलों को माफ करने का जो दांव चला है, वह सत्तारूढ़ कांगे्रस समेत अन्य तमाम पार्टियों के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि दिल्ली में लोगों से किए इस वादे को तय समय के भीतर पूरा करके पार्टी ने अपनी ठोस साख बनाई है। फिर पंजाब में बिजली बिल और नियमित विद्युत आपूर्ति हमेशा से अहम चुनावी मुद्दे रहे हैं। 'आप' के लिए पंजाब राजनीतिक रूप से सबसे अहम इसलिए भी है, क्योंकि वह वहां अपने लिए उपयुक्त मौका देख रही है। विधानसभा में तो वह मुख्य विपक्षी पार्टी है ही, जिन मजबूत पार्टियों व गठबंधनों से पिछली बार उसे भिड़ना पड़ा था, वे अंदरूनी खींचतान से ही नहीं उबर पा रहे। अकाली-भाजपा का दशकों पुराना गठबंधन टूट चुका है, तो कांग्रेस में उठापटक की खबरें रोज-रोज मतदाताओं के सामने आ रही हैं। कांग्रेस के लिए पंजाब में आप की आमद इसलिए भी बड़ी चुनौती है कि वह दिल्ली में उसका पूरा आधार हथिया चुकी है।
आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी सीमा यही है कि उसके पास इन सभी राज्यों में ऐसे चेहरे नहीं हैं, जो अपनी प्रादेशिक पहचान रखते हों। अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में किसी सिख के ही मुख्यमंत्री बनने का एलान तो कर दिया, मगर वह चेहरा अभी पेश नहीं कर पाए हैं। सवाल यह है कि क्या वह चेहरा कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखबीर सिंह बादल के मुकाबले पंजाब के लोगों में अधिक भरोसेमंद होगा? फिर केजरीवाल क्या वैसी मजबूत पकड़ दिल्ली के बाहर भी रख पाएंगे, जैसी यहां की पार्टी इकाई पर उनकी बनी रही है? पंजाब में पिछले दिनों में कई विधायक उनका साथ किन्हीं वजहों से छोड़ चुके हैं। बहरहाल, सियासत संभावनाओं का खेल है और आम आदमी पार्टी व केजरीवाल ने सियासी चौसर पर अभी तक सधा हुआ दांव चला है। वह एक तरफ, पंजाब में कांग्रेस और दूसरी तरफ, गुजरात व गोवा में भाजपा के सामने मजबूत चुनौती पेश करके यह संदेश देना चाहेंगे कि इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियों पर ही विकल्प खत्म नहीं होता, इसके आगे भी दलों व गठबंधन की संभावनाएं जीवित हैं। बकौल कांशीराम, चुनाव पार्टियों के आधार को विस्तार देते हैं। 'आप' इस राह पर बढ़ चली है।