शांति का नोबेल पुरस्कार: पत्रकारों और पत्रकारिता का सम्मान

नोबेल सम्मानित पत्रकारों का जीवन ‘मिशनरी’ यानी समर्पण की पत्रकारिता का अनूठा उदाहरण है।

Update: 2021-12-11 01:49 GMT

पत्रकारिता और पत्रकारों के लिए यह गौरव का क्षण है। पारंपरिक रूप से पत्रकारिता को 'नोबल प्रोफेशन' के रूप में परिभाषित किया गया है। इसी नोबेल प्रोफेशन से जुड़े दो पत्रकारों को इस साल 2021 का शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जाना ऐतिहासिक घटना है। इससे यह मान्यता और पुष्ट हुई है कि लोकतंत्र के एक मजबूत स्तंभ के रूप में मीडिया और मीडियाकर्म का अलग महत्व है और समाज इसकी अनदेखी नहीं कर सकता। शांति के लिए चुनौती भरे क्षेत्र में पत्रकारों की भूमिका के प्रति यह वैश्विक सम्मान है। नोबेल के लिए चयनित दोनों पत्रकारों की पृष्ठभूमि फिलीपींस तथा रूस में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति अदम्य संघर्ष की रही है। नोबेल पुरस्कारों के प्रारंभ-वर्ष 1901 से लेकर अब तक दूसरी बार किसी पत्रकार को यह सम्मान दिया गया है। 1935 में जर्मन पत्रकार कार्ल वान ओसीत्जकी को नोबेल मिला था। वैसे 1915 में भी रूसी पत्रकार-लेखिका स्वेतलाना अलेक्साई विच को साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए साहित्य का नोबेल प्रदान किया गया था।

यह ऐतिहासिक अवसर है, जब इस साल दो पत्रकारों को नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया है। नोबेल कमेटी द्वारा 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जो लोकतंत्र की आवश्यक शर्त है तथा स्थायी शांति की मूलभूत आवश्यकता है, की रक्षा के लिए' 58 वर्षीय फिलीपींस की पत्रकार मारिया एंजेलिना रेसा और रूस के दिमित्री मुरातोव का चयन पत्रकारिता क्षेत्र के लिए गर्व और गौरव का विषय है। मारिया ने खोजी पत्रकारिता की अपनी वेबसाइट रैपलर के माध्यम से फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेरते के विवादास्पद तथा हिंसक प्रहार के उपक्रमों को अपने पत्रकारिता अभियान का मुख्य विषय बनाया। अपनी वेबसाइट के बंद हो जाने तक के खतरों से जूझती मारिया का पत्रकारिता का जुनून एक आदर्श है और वह कहती हैं - 'मैं सत्य और तथ्य पर आधारित पत्रकारिता के लिए संघर्ष करती रहूंगी।'
मारिया ने अपनी वेबसाइट रैपलर के माध्यम से प्रमाणों के साथ यह उद्घाटित किया कि फेक न्यूज के प्रसार के लिए उनके देश में किस प्रकार सोशल मीडिया का दुरुपयोग किया जा रहा है, विरोधियों के दमन का प्रयास किया जा रहा है और जनता में भ्रम फैलाया जा रहा है। मारिया ने पुरस्कार की घोषणा के बाद अपनी प्रतिक्रिया में जो कहा वह आज भी प्रासंगिक है - 'प्रारंभ से अब तक पत्रकारिता की कभी इतनी महत्वपूर्ण भूमिका नहीं रही, जितनी वर्तमान में है। लोकतंत्र के रखवालों की पत्रकारों की भूमिका का क्षरण हुआ है और तकनीकी विकास ने पत्रकारिता और पत्रकारों की शक्ति को क्षीण किया है। आज आवश्यकता है कि विश्व के सभी देश अपसूचना (मिसइन्फार्मेशन) के दौर को रोकने के लिए एकजुट होकर कार्य करें।'
फिलीपींस देश की प्रथम नोबेल विजेता मारिया दक्षिण पूर्व एशिया मनीला में सी.एन.एन. के प्रमुख खोजी रिपोर्टर के रूप में भी लंबे अरसे तक कार्यरत रह चुकी हैं और फिलीपींस में सरकारी दमन के क्रम में जेल की सजा भी भुगत चुकी हैं पर उनका हौसला 'सत्य के पक्ष में' अब भी बुलंद है। मारिया ने अपनी ऑनलाइन समाचार साइट के माध्यम से फिलीपींस के आधिकारिक सरकारी 'ट्रोल आर्मी'-फेक न्यूज अभियान की बखिया उधेड़ कर रख दी। दूसरे नोबेल विजेता रूसी पत्रकार, टेलीविजन कार्यक्रम प्रस्तुतकर्ता 60 वर्षीय दिमित्री मुरातोव का पत्रकारिता जीवन का सफर लंबा रहा है। उन्होंने 1993 में रूस में लोकतंत्र समर्थक रूसी भाषा का पत्र नोवोया गजेटा प्रारंभ किया और इसके प्रधान संपादक रहे। देश में मानवाधिकार के उल्लंघन और भ्रष्टाचार के विरोध के लिए अपने पत्र को मुखर रूप में जनता के समक्ष प्रस्तुत किया। रूस में एक मुखर लोकतंत्र समर्थक-स्वतंत्र पत्र के प्रधान संपादक की उनकी छवि को देश में असीम सम्मान मिला। विश्व के विभिन्न देशों में विपरीत परिस्थितियों में भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इसकी रक्षा के लिए संघर्ष करने वाले दोनों ही नोबेल सम्मानित पत्रकारों का जीवन 'मिशनरी' यानी समर्पण की पत्रकारिता का अनूठा उदाहरण है।
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