नो मोर गांव जनाब!

ज्यो ही होरी का स्वर्ग प्रवास पूरा हुआ तो स्वर्ग के वारंट अधिकारी ने होरी को अपने पास बुला उसकी गांव वापसी का उसको वारंट थमाते उससे कहा, ‘हे डियर होरी! कर्मों के हिसाब से जितने समय तुम स्वर्ग में रह सकते थे, वह समय अब पूरा हो गया है

Update: 2022-05-17 19:25 GMT

ज्यो ही होरी का स्वर्ग प्रवास पूरा हुआ तो स्वर्ग के वारंट अधिकारी ने होरी को अपने पास बुला उसकी गांव वापसी का उसको वारंट थमाते उससे कहा, 'हे डियर होरी! कर्मों के हिसाब से जितने समय तुम स्वर्ग में रह सकते थे, वह समय अब पूरा हो गया है। अतः अब…ये लो अपने जाने के कागजात और…।' 'तो अब साहब?' होरी ने उन कागजों को स्वर्ग के वारंट अधिकारी से लेते पूछा। 'अब तुम्हें अपने गांव वापस जाना होगा।' 'पर साहब! वहां जाकर तो फिर मैं…साहब! पहले की तरह मेरा शोषण करने वाले तो वहां अभी भी जिंदा हैं साहब!' 'देखो! हम तुम्हें सरकार के मुंह लगों की तरह एक्सटेंशन नहीं दे सकते। इसलिए कल की मृत्युलोक जाने वाली ट्रेन से तुम अपने गांव…।' तब होरी ने स्वर्ग के वारंट अधिकारी से दोनों हाथ जोड़े कहा, 'साहब! कुछ और कृपा कर देते तो…आपकी कसम साहब! मुंह में कीड़े पड़ें, मरे को घोर नरक मिले जो झूठ बोलूं तो! साहब! अब मेरे गांव में बचा ही क्या है गांव वाला जनाब! जिस गांव पर कभी गांव वालों का कब्जा होता था, उस गांव पर आज शहर वालों का कब्जा हो गया है जनाब! मेरे गांव में मेरे समय का गांव वाला अब एक भी नहीं है हुजूर! सब एडवांस से आगे के एडवांस।

अब जनाब! गांव वाले गांव में रहते हुए भी गांव से कोसों दूर रह गए हैं। गोबर तो बहुत पहले गोबर नहीं रहा था जनाब! पर अब तो धनिया भी धनिया नहीं रही। मेरे गांव में अब सबकी भलमानस को चालाकी सूंघ गई है, धोखा सूंघ गया है साहब! जिसे देखो, वही आजकल खेतों में काम करने के बदले राजनीति करने में व्यस्त है साहब! खेत रो रहे हैं, गांव वाले हंस रहे हैं। कुआं रो रहा है जनाब! गांव वाले हंसते हुए सूखे नल के मुंह के पास मुंह लटकाए ठहाके लगा रहे हैं जनाब! खलिहान में बड़ी-बड़ी घास उग आई है जी जनाब ! जनाब! वहां गौरेया पेड़ पर उदास हताश बैठी महीनों से दाने का इंतजार कर रही है। कोयल को कूह कूह करने को कहीं आम का पेड़ तो छोडि़ए, टहनी तक नहीं मिल रही। वह अब मिसरी घोले तो कहां घोले? मोर को नाचने को जंगल नहीं मिल रहा, वह नाचे तो कहां नाचे जनाब? गांव वाले अब शहर वालों से अधिक शहरी हो गए हैं जनाब! मेरे गांव में अब बच्चे न कहीं गिल्ली डंडा खेलते हैं न कबड्डी।
अब तो बस वे हरदम मोबाइल पर गेम खेलते हैं। गांव का पोखर अब सूख चुका है हुजूर! शायद उसे पता चल गया है कि जब गांव वालों के पास भैंसें ही नहीं तो वह अपने पानी का क्या करेगा? जिस गांव में पीपल के पेड़ पर सावन में झूला पड़ा करता था और गांव का हर आता जाता वहां सावन के गीत गाता झूला करता था, उस पीपल के पेड़ को पंडित मातादीन ने कटवा कर वहां अपना घर बनवा दिया है जनाब! मेरे गांव का पानी सीना तान कर दिन दहाड़े जाने कबसे शहर चुरा कर ले जा रहा है जनाब! गांव की ताजी हवा दिन दहाड़े शहर चुरा कर ले जा रहा है जनाब! गांव की जमीन शहर चुरा कर ले जा रहा है जनाब! कोई कहने वाला नहीं, कोई सुनने वाला नहीं। गांव का अपहरण कर शहर उसे अपने यहां गुलामी करवाने ले जा रहा है जनाब! कोई शहर को टोकने वाला नहीं, कोई शहर को रोकने वाला नहीं। गांव के खेत बंजर हो गए हैं जनाब! गांव के आदमी बंजर हो रहे हैं जनाब! महंगाई को तो मारो गोली जनाब! वहां शर्म के बदले अब धर्म पहले से भी चरम पर है साहब! इसलिए आपसे दोनों हाथ जोड़ होरी की विनती है कि आप उससे यहां जो चाहे करवा लीजिए, पर साहब…।'
अशोक गौतम
ashokgautam001@Ugmail.com


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