एनएफएचएस-5 के आंकड़े दिखाते हैं आइना; बेहतर स्वास्थ्य के लिए गेहूं, चावल के आगे सोचना होगा
देश में पोषण, स्वास्थ्य, जनसंख्या की जानकारी उपलब्ध कराने वाला (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण) एनएफएचएस-5 के दूसरे राउंड का डाटा कुछ ही दिनों पहले जारी हुआ
बिबेक देबराॅय और आदित्य सिन्हा। देश में पोषण, स्वास्थ्य, जनसंख्या की जानकारी उपलब्ध कराने वाला (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण) एनएफएचएस-5 के दूसरे राउंड का डाटा कुछ ही दिनों पहले जारी हुआ। स्वास्थ्य के कई पैमानों पर अच्छा सुधार हुआ है। जैसे एक महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई कि देश में प्रजनन दर नीचे आई है। बहरहाल यह आर्टिकल इस बारे में नहीं है। हम पोषण के मामले में महत्वपूर्ण निष्कर्षों पर बात करते हैं।
पांच साल से कम उम्र के नाटे (उम्र के अनुसार कम ऊंचाई), दुबले (ऊंचाई के हिसाब से कम वजन)और कम वजनी (उम्र के हिसाब से कम वजन) बच्चों की संख्या में कमी आई है। यहां एनएफएचएस-4 से तुलना करें, तो मामले क्रमश: 38.4 से 35.5, 21% से 19.3 और 35.8% से 32.1% घटे हैं। इनमें से कुछ सुधारों का श्रेय पोषण और स्वच्छता पर ध्यान केंद्रित करने वाली योजनाओं को दे सकते हैं।
जैसे आंतों से जुड़ा हुआ संक्रमण खुले में शौच के कारण मल रोगजनक के संपर्क में आने से होता था, यह नाटेपन का बहुत बड़ा कारण था। स्वच्छ भारत अभियान और पोषण अभियानों ने नाटापन और दुबलापन कम करने में मदद की है। हालांकि ये सुधार बहुत कम हैं और राज्यों के बीच भारी अंतर है। जैसे महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में नाटापन बढ़ा है, जबकि यूपी, एमपी, झारखंड, बिहार, हरियाणा और ओडिशा में यह घटा है।
गंभीर रूप से दुबले पांच साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या मामूली रूप से बढ़ी है। पर ये चिंताजनक है। एकसाथ नाटे और दुबले बच्चों की मृत्यु की आशंका ज्यादा होती है। हालांकि नाटापन और मृत्य दोनों का संबंध कुपोषण से है, पर ऐसे भी मामले हैं जहां बच्चे नाटे तो हैं पर दुबले नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि देश में नाटे बच्चों का अनुपात दुबले बच्चों से कहीं ज्यादा है। दुबले बच्चों को पर्याप्त ऊर्जा और पोषक तत्वों से भरपूर आहार दिया जा सकता है, जिससे उन्हें पर्याप्त फैट स्टोर करा सकते हैं।
हालांकि एक सीधी रेखा में विकास के लिए बच्चों को सल्फर, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन डी, के, और सी, और तांबे जैसे पोषक तत्वों का सेवन करना भी आवश्यक है। कुपोषण से जुड़ी बीमारियां जैसे नाटापन और दुबलेपन के लिए जरूरी है कि बच्चों को न सिर्फ कैलोरी मिले बल्कि आहार पोषक भी हो। बच्चों सहित सभी आयु वर्गों में बढ़ता मोटापा भी चिंता है। इसका एक कारण तो हमारे खाने में गेहूं-चावल की प्रधानता है।
सरकारी कल्याणकारी योजनाओं में भी गेहूं-चावल की प्रधानता ने फसलों में विविधीकरण को हतोत्साहित किया है, इससे सेहतमंद विकल्प जैसे मिलेट्स की राह में भी अड़चनें पैदा हुई हैं। हमें गेहूं-चावल के पोषणता से भरे विकल्पों पर जाना होना। मिलेट्स और अंडे शामिल करके कर्नाटक इस मामले में अग्रणी है। राज्य के कस्बाई इलाकों (पेरी-अरबन) में हुए अध्ययन में सामने आया कि मध्याह्न भोजन में मिलेट्स खाने से बच्चों में 'नाटेपन और दुबलेपन में' सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।
कई राज्यों ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी मिलेट्स देना शुरू कर दिया है। एक और महत्वपूर्ण चिंता का विषय बढ़ता एनीमिया है। सभी उम्र की महिलाओं मेंं एनीमिया यानी खून की कमी बढ़ी है। पिछले सर्वेक्षण 53.1% की तुलना में इस बार यह 57% हो गया है। एनीमिया कम करने के लिए आयरन फोलिक एसिड सप्लीमेंट्स असरकारक होते हैं, लेकिन एनीमिया मुक्त भारत के बावजूद इसका स्तर कम बना हुआ है। कोविड के कारण कई राज्यों में आंगनवाड़ी केंद्र भी बंद हो गए। बहरहाल बेहतर स्थिति के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है।