नया पैमाना
आखिरकार दिल्ली सरकार शराब बिक्री संबंधी अपनी पुरानी नीति पर लौट आई। हालांकि इसे देर आयद ही कहा जा सकता है। पिछले साल उसने दुकानों के आबंटन और बिक्री आदि में धांधली का हवाला देते हुए नई आबकारी नीति लागू की थी।
Written by जनसत्ता: आखिरकार दिल्ली सरकार शराब बिक्री संबंधी अपनी पुरानी नीति पर लौट आई। हालांकि इसे देर आयद ही कहा जा सकता है। पिछले साल उसने दुकानों के आबंटन और बिक्री आदि में धांधली का हवाला देते हुए नई आबकारी नीति लागू की थी। उसका दावा था कि इस फैसले से शराब की बिक्री में अनियमितता पर लगाम लगी और राजस्व में बढ़ोतरी हुई है। मगर पिछले दिनों उपराज्यपाल ने नई आबकारी नीति को पक्षपातपूर्ण बताते हुए इसमें हुई अनियमितताओं की सीबीआइ से जांच की सिफारिश कर दी। इसे आम आदमी पार्टी ने केंद्र सरकार के इशारे पर किया गया फैसला बताया था।
स्वाभाविक ही इसे लेकर राजनीतिक दंगल शुरू हो गया। दिल्ली सरकार कहती रही कि जब नई आबकारी नीति लागू होने के बाद राजस्व की कमाई छह हजार करोड़ रुपए से बढ़ कर साढ़े नौ हजार करोड़ रुपए हो गई, तो फिर इसमें अनियमितता कहां से हो गई। उसका आरोप था कि नई आबकारी नीति लागू होने से भाजपा के करीबी लोगों को लाइसेंस नहीं मिल पाया, इसलिए वे आहत थे। इस तरह, एक बार फिर उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच टकराव की स्थिति बन गई थी। अच्छी बात है कि दिल्ली सरकार ने अपना कदम वापस खींचते हुए उस स्थिति को संभाल लिया।
दिल्ली सरकार के नए फैसले के अनुसार अब शराब की बिक्री केवल सरकारी दुकानों के माध्यम से ही हो सकेगी। दिल्ली सरकार ने मुख्य सचिव से कहा है कि वे सुनिश्चित कराएं कि शराब बिक्री में किसी तरह अनियमितता और असुविधा पैदा न होने पाए। नए फैसले से निजी ठेकेदारों की तरफ से की जाने वाली गड़बड़ियां रुकने की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि इससे यह भी अनुमान है कि कुछ दिनों तक दिल्ली में शराब बिक्री की शृंखला बुरी तरह प्रभावित होगी और इसका लाभ गलत तरीके से शराब बेचने वाले उठाने का प्रयास कर सकते हैं।
दरअसल, शराब की बिक्री राज्य सरकारों के लिए राजस्व उगाही का सबसे बड़ा जरिया होती है। मगर जिस चीज से कमाई अधिक होती है, उसमें अनियमितता की गुंजाइश भी उतनी ही अधिक रहती है। इसलिए सरकारें इस मामले में सख्त नीति अपनाने का प्रयास करती हैं। पर निजी ठेकेदारों की मनमानी पर अंकुश लगाना फिर भी चुनौतीपूर्ण काम होता है। फिर आबकारी विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों का भ्रष्ट आचरण किसी से छिपा नहीं है। वे नकली शराब की पहुंच बनाने में सहयोग करते देखे जाते हैं। इस तरह सरकार को मिलने वाले राजस्व का नुकसान तो होता ही है, लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ की आशंका बनी रहती है। इसके अनेक उदाहरण मौजूद हैं।
दिल्ली सरकार ने पुरानी आबकारी नीति जारी करके उपराज्यपाल के साथ टकराव की स्थिति तो टाल दी है, मगर व्यावहारिक धरातल पर उसकी चुनौतियां बढ़ गई हैं। खुद दिल्ली सरकार ने आरोप लगाया है कि निजी दुकानदारों को लगातार धमकाया जा रहा था, जिसके चलते करीब आधे लोगों ने अपनी दुकानें बंद कर दी। मौजूदा विवाद के बीच अगर यह आरोप सही है, तो वे लोग अब भी व्यवधान डालने का प्रयास करेंगे। दिल्ली में शराब की वास्तविक खपत के अनुपात में दुकानों की संख्या अनेक राज्यों की तुलना में कम है। ऐसी स्थिति में अगर शराब की किल्लत होगी, तो अवैध शराब बेचने वालों का जाल फैलना शुरू हो जाएगा, जिसका नतीजा कभी भी भयानक रूप में सामने आ सकता है। शराब के कारोबार से राजस्व को मजबूत करने के नाम पर लोगों की सेहत और जान के साथ खिलवाड़ न होने पाए, इसका ध्यान रखना होगा।