ऑस्ट्रेलिया में इंटरनेट मीडिया के माध्यम से समाचारों को साझा करने के संदर्भ में नए नियम

इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया में समाचार देखने और साझा करने पर रोक लगा दी है।

Update: 2021-02-22 16:38 GMT

इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया में समाचार देखने और साझा करने पर रोक लगा दी है। फेसबुक का ऑस्ट्रेलिया के मीडिया कानून को लेकर सरकार से टकराव चल रहा है। दिलचस्प यह कि अभी प्रस्तावित मसौदा कानून का रूप ले भी नहीं पाया है और फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया में अपनी सेवा पर रोक लगा दी। यहां तक कि महामारी के इस दौर में भी स्वास्थ्य विभागों और इनसे जुड़ी सूचनाओं के प्रसारण को फेसबुक ने सिर्फ इस आधार पर प्रतिबंधित कर दिया कि संभावित कानून के बाद उसके लाभ में कमी आ सकती है। दरअसल फेसबुक इस नीति पर चल रहा है कि यदि कानून से उसके व्यापार पर प्रभाव पड़ता है तो वह अपनी सेवा बंद कर सकता है। आखिर फेसबुक इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहा है?


वस्तुत: ऑस्ट्रेलिया सरकार ने अप्रैल 2020 में ऑस्ट्रेलियन कंपीटीशन एंड कंज्यूमर कमीशन (एसीसीसी) नामक संस्था से एक ऐसा तंत्र विकसित करने को कहा था जिससे ऑस्ट्रेलियाई मीडिया घरानों और डिजिटल प्लेटफॉर्म के बीच एक संतुलित व्यावसायिक संबंध कायम हो सके। इसके बाद एसीसीसी के सुझाव के अनुरूप सरकार ने मीडिया कोड नाम से एक विधेयक संसद में प्रस्तुत किया है। इस संहिता का सार यह है कि अब ऑस्ट्रेलिया में गूगल और फेसबुक को अपने प्लेटफार्म पर साझा होने वाले समाचारों के बदले में उस समाचार प्रदाता को भुगतान करना होगा। भारतीय उदाहरण से इसे समङों तो गूगल और फेसबुक किसी मीडिया प्रतिष्ठान की किसी खबर को अपने प्लेटफॉर्म पर तभी शेयर कर सकते हैं, जब वह संबंधित मीडिया प्रतिष्ठान और गूगल/ फेसबुक के बीच पहले ही ऐसा कोई व्यावसायिक समझौता हो गया हो। अभी गूगल या फेसबुक अपने प्लेटफॉर्म पर शेयर होने वाली किसी खबर के बदले उस मीडिया प्रतिष्ठान को भुगतान नहीं करते हैं, जिसने उसका कंटेंट तैयार किया है।

अब यह संहिता कहती है कि गूगल और फेसबुक को पहले मीडिया प्रतिष्ठानों से एक सौदा करना होगा, जिसके तहत वो इन्हें परस्पर सहमति से तय राशि के भुगतान के बाद ही उनकी कोई खबर अपने प्लेटफॉर्म पर साझा कर सकते हैं। इस नियम को नहीं मानने पर जुर्माने का भी प्रविधान किया गया है। ऑस्ट्रेलिया सरकार का कहना है कि इससे पत्रकारिता की जनपक्षधरता सुनिश्चित हो सकेगी तथा मीडिया प्रतिष्ठानों के सम्मिलित श्रम का लाभ केवल गूगल और फेसबुक तक ही सीमित नहीं होगा, बल्कि यह उनके हिस्से भी होगा जो इसमें सर्वाधिक योगदान दे रहे हैं। इससे मीडिया का एक स्वच्छ अर्थतंत्र विकसित हो सकेगा, जो अंतत: मीडिया को और बेहतर व जिम्मेदार बनाएगा।

अब इस मामले में यदि इस नजरिये से विचार करें कि आखिर इस कानून की जरूरत क्यों पड़ी तो इसकी वजह स्पष्ट है। डिजिटल दुनिया एक विशाल अर्थतंत्र निíमत कर रही है, लेकिन इसका लाभ केवल चुनिंदा संस्थानों को ही हो रहा है। आंकड़ों के माध्यम से देखें तो कुल डिजिटल विज्ञापन का 53 फीसद हिस्सा गूगल और 28 फीसद फेसबुक के पास है। यह एक असंतुलित स्थिति को दर्शाता है। खासकर परंपरागत मीडिया प्रतिष्ठानों के लिए इस दौड़ में टिक पाना मुश्किल हो रहा है। दिलचस्प यह कि लाभ का इतना बड़ा हिस्सा इन कंपनियों को तब मिल रहा है, जब इनके पास अपना कोई कंटेंट नहीं है। यह जरूरी है कि एक संतुलित व्यवस्था बने। यह मीडिया संहिता ऐसी ही कोशिश करती दिखाई दे रही है। चूंकि यह कानून इन दिग्गज कंपनियों को लाभ साझा करने के लिए बाध्य कर रहा है तो स्वाभाविक तौर पर ये इसका विरोध कर रहे हैं। फेसबुक ने इसे स्वायत्तता की समाप्ति बताया है तथा गूगल इसे बाध्यकारी बनाने का विरोध कर रहा है। फेसबुक ने तो विरोधस्वरूप ऑस्ट्रेलिया में अपने प्लेटफॉर्म पर खबरों को प्रतिबंधित कर दिया। हालांकि गूगल इस मामले में एक वैकल्पिक और स्वायत्त तरीके से ऐसे द्विपक्षीय समझौतों की ओर बढ़ रहा है, जहां मीडिया प्रतिष्ठानों को भुगतान किया जा रहा है।

गूगल ने न्यूज शोकेस के नाम से एक नया उत्पाद तैयार किया है जिसमें खबरों के प्रकाशन के लिए मीडिया प्रतिष्ठानों को भुगतान किया जा रहा है। न्यूज शोकेस में सामान्य सर्च से कहीं विस्तृत और व्यवस्थित जानकारी दर्ज होती है। इसी न्यूज शोकेस के अंतर्गत खबरों के प्रकाशन हेतु गूगल ने ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज मीडिया समूह सेवन वेस्ट मीडिया को एक वर्ष के लिए लगभग 30 मिलियन डॉलर यानी करीब 2.17 अरब रुपये का भुगतान किया है। इतना ही नहीं, गूगल इस तरह छोटे-बड़े कुल 46 मीडिया समूहों से समझौता कर चुका है। दूसरी तरफ, यद्यपि फेसबुक अपनी लाइसेंस्ड प्रोडक्ट फीचर के अंतर्गत यूके के एक मीडिया समूह को बड़ी राशि का भुगतान कर रहा है, किंतु ऑस्ट्रेलिया में उसने ऐसी योजना को अभी तक मूर्त रूप नहीं दिया है। खबरों के अनुसार वह ऑस्ट्रेलिया में भी इसे जल्द शुरू करने वाला है, पर फिलहाल वहां उसने खबरों के प्रसार पर रोक लगा दी है।
इन कंपनियों के विरोध और इस भय के कि कहीं राज्य इसकी ओट में खबरों के स्वतंत्र प्रसार को प्रभावित न करने लगे, यह एक प्रगतिशील कानून प्रतीत होता है। इसके अलावा एक खतरा यह भी है कि यह नया आíथक तंत्र कहीं खबरों की दशा-दिशा को बदल न दे। इन सबके बावजूद इसे मानना ही ठीक होगा कि आखिर जो संस्थाएं कंटेंट तैयार करती हैं उनकी भी हिस्सेदारी लाभ में होनी ही चाहिए। भारत जैसे देश को भी इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। एक बार इस तरीके से छोटे-बड़े मीडिया प्रतिष्ठानों की आय बढ़ जाएगी तो न केवल उनका बने रहना आसान हो जाएगा, बल्कि वित्त को जुटाने के लिए किए जाने वाले अन्य उपायों से भी बचा जा सकेगा। इस प्रकार यह पाठक और प्रकाशक, दोनों को एक दूसरे के प्रति अधिक जबावदेह बनाएगा, क्योंकि अंतत: विज्ञापन के डिजिटल प्रारूप के बाजार में काफी कुछ इसी से तय होता है।
इंटरनेट मीडिया की दुनिया में शक्ति संतुलन केवल इस मामले में ही एकतरफा नहीं है कि वहां कुछ गिनी-चुनी कंपनियों का एकाधिकार है, बल्कि इसलिए भी कि वे राष्ट्रीय सरकारों के विनियमन से भी लगभग मुक्त हैं। कुछ सरकारें इस दिशा में प्रयास कर रही हैं कि इस संबंध में कानून बनाए जाएं। लिहाजा इस संदर्भ में ऑस्ट्रेलिया की संसद में प्रस्तावित मीडिया कोड को प्रस्थान बिंदु माना जा सकता है, क्योंकि इसके बाद पूरी दुनिया में डिजिटल संसार नए प्रयोगों के लिए खुल सकेगा।


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