नए संकल्प

आदमी की फितरत है कि वह समय के थपेड़ों को बेआवाज सह लेता है।

Update: 2021-01-02 13:30 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आदमी की फितरत है कि वह समय के थपेड़ों को बेआवाज सह लेता है। घाव सहलाते हुए फिर उठ खड़ा होता है, नई उम्मीद, नए संकल्पों के साथ। साल बदलने का जश्न भी वह सदियों से इसी भाव से मनाता आया है कि गए का शोक क्या, नए का स्वागत करें।

हर नया अपने आप में बेहतरी की उम्मीद संजोए होता है। बीते को बिसार कर नए के साथ चलने का उत्साह ही आदमी को तरक्की के रास्ते तलाशने में मदद करता है। मगर जिंदगी का उसूल यह भी है कि बीते से सीख लेते रहें। यह साल और सालों से कुछ अलग रंगत लिए होगा।

इसके स्वागत को लेकर लोगों में कुछ अधिक उत्साह दिखा तो इसीलिए कि गया साल कई घाव दे गया। लगभग पूरा साल ही कोरोना के कंबल में दुबके गुजरा। भय और अशंकाओं का वातावरण रहा। दुनिया भर के बाजार, व्यापार, कारोबार बंद करने पड़े। अर्थव्यवस्थाएं चरमरा गर्इं। रोजी-रोजगार का संकट खड़ा हो गया। कोरोना की दवाई बनाने में हलकान रही पूरी दुनिया।

नए साल की पदचाप के साथ ही स्थितियां कुछ बेहतर होती दिखने लगीं। कोरोना की दवा बना ली गई। बाजार और कारोबार पटरी पर लौटने लगे। मुरझाए उदास चेहरे उम्मीद से कुछ रौशन नजर आने लगे। कानों में कुछ संगीत-सा बजता सुनाई देने लगा- 'यह साल अच्छा है'। लंबी जकड़बंदी के बाद मुक्ति का अहसास कुछ इसी तरह फूटता है।

दोनों बाहें पसारे, आसमान की तरफ सिर उठाए शुकराना भाव और बेहतरी के सपनों के साथ एक सुंदर दुनिया रचने का संकल्प लिए। इस महामारी ने तकलीफें बहुत दी हैं, पर आदमी के भीतर बहुत कुछ बदल भी दिया है। लंबे एकांत ने बहुतों को पीछे लौट कर सोचने का अवसर दिया। जीवन के असल मकसद को समझने का मौका दिया।

मनुष्यता को जिंदा रखने का नया रास्ता दिखाया। सहयोग और समर्पण के मायने समझा दिए। सबसे बड़ा सबक तो यही दिया कि भौतिक समृद्धि की हवश विनाशलीलाएं रचती है। सम्यक भाव ही जीवन के संतुलन का सूत्र है। यह सबक जितनी देर हमारे भीतर टंका रहे, जीवन उतनी ही देर सुंदर बना रहेगा।

पुरानी कहावत है- बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध लेहु। किसी ने विषाणु बनाया और खुला छोड़ दिया या वह खुद पसरता गया, इस पर माथापच्ची न करें और मन में मैल न भरें, पर कुछ तस्वीरें जरूर अपने जेहन में बनाए रखें। कांधे पर गठरी-मोटरी लादे, गोद में नवजात थामे, सैकड़ों मील पांव घसीटते घर की ओर लौटते लाखों लोग। सन्नाटा ओढ़े खामोश रहे कारखाने और नाउम्मीद आंखें।

इन सबके बीच जोखिमों की परवाह किए बगैर दिन-रात सेवा में तत्पर चिकित्सा कर्मियों और बेघर, बेआसरा लोगों का पेट भरते लोगों की तस्वीरें। सियासती जुमले और तिकड़में सत्ता का समीकरण दुरुस्त करने के लिए होती हैं, उन सबका हिसाब जिंदगी का कोई जरूरी हिस्सा नहीं। वह समीकरण बनता-बिगड़ता, बदलता रहता है।

जिंदगी का असल रास्ता मनुष्य को अपने भीतर से ही मिलता है। नए के जश्न में अपने भीतर झांकते रहने की जरूरत न भुला दें- यह खयाल रहे, तो जिंदगी खुशहाल है। शुभ्र की आकांक्षा है, उसके लिए नए संकल्प हैं, तो उन्हें टिकाऊ और प्रभावी बनाए रखने का प्रयास ही शुभ का वास्तविक वितान रचेगा।


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