नेपाल में नई सरकार, कैसे होंगे भारत के साथ रिश्ते

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) के नेता पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड ने एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत सोमवार को नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले ली।

Update: 2022-12-27 04:43 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) के नेता पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड ने एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत सोमवार को नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले ली। वह तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। प्रचंड पड़ोसी देश में राजशाही के खिलाफ दस वर्षों (1996 से 2006) तक चले भूमिगत मुक्ति युद्ध के सबसे बड़े नेता रहे हैं। पिछले महीने हुए चुनावों में किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत न मिलने के कारण सरकार बनाने के सवाल को लेकर वहां कुछ समय से सस्पेंस बना हुआ था। प्रचंड की पार्टी सीपीएन (एमसी) ने नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन में यह चुनाव लड़ा था, लेकिन दोनों दलों में इस बात पर विवाद था कि गठबंधन सरकार का नेतृत्व पहले कौन करेगा। जब यह विवाद आखिर तक हल नहीं हो सका तो राष्ट्रपति द्वारा दी गई समय सीमा (रविवार शाम पांच बजे) से कुछ घंटे पहले प्रचंड ने गठबंधन से बाहर निकलने की घोषणा कर दी। उसके बाद घटनाचक्र तेजी से घूमा और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूएमएल) के नेता केपी शर्मा ओली और अन्य छोटी पार्टियों के समर्थन की बदौलत उन्होंने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। सहमति यह बनी है कि पांचवर्षीय कार्यकाल के पहले ढाई साल प्रचंड पीएम रहेंगे और बाद के ढाई साल केपी शर्मा ओली।

जहां तक भारत की बात है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचंड को बधाई देते हुए कहा है कि भारत और नेपाल का अनूठा रिश्ता दोनों देशों के गहरे सांस्कृतिक जुड़ाव और दोनों ओर के लोगों के भावनात्मक लगाव पर टिका हुआ है। उन्होंने दोनों देशों के बीच दोस्ती के और मजबूत होने की उम्मीद भी जताई। लेकिन इन औपचारिक बयानों से आगे की सचाई यह है कि ओली और प्रचंड दोनों चीन के करीबी माने जाते रहे हैं। प्रधानमंत्री के रूप में ओली का पिछला कार्यकाल उनके चीनी पक्षधरता दर्शाने, भारत विरोधी भावनाएं भड़काने वाले फैसलों और बयानों के लिए चर्चित रहा था। हालांकि उस दौरान भी प्रचंड जैसे नेता काफी हद तक नीतियों को संतुलित करने पर जोर दे रहे थे। फिर यह बात भी है कि इस बार किसी एक पार्टी की सरकार नहीं है। अगर चुनावी नतीजों का संदेश देखा जाए तो उससे भी यह साफ है कि भारत विरोधी भावनाएं बहुमत तो दूर सबसे बड़ी पार्टी तक का दर्जा नहीं दिला पाईं। इसलिए कुछ प्रेक्षकों के मन में आशंकाएं भले हों, अभी से यह मान लेने की कोई जरूरत नहीं है कि नई सरकार पुरानी रीति-नीति पर ही चलेगी। मगर भारत और चीन के मौजूदा समीकरणों को देखते हुए इस मोर्चे पर किसी तरह की लापरवाही भी नहीं बरती जा सकती। ऐसे में, भारत को उदार, अच्छे पड़ोसी और करीबी मित्र की अपनी भूमिका जारी रखते हुए सावधान भी रहना होगा।

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