शक की सूई
कोरोना की उत्पत्ति को लेकर रहस्य गहराता जा रहा है। डेढ़ साल बाद भी दुनिया के वैज्ञानिक यह बताने की स्थिति में नहीं हैं
कोरोना की उत्पत्ति को लेकर रहस्य गहराता जा रहा है। डेढ़ साल बाद भी दुनिया के वैज्ञानिक यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि विषाणु आखिर निकला कहां से। अब तक की जानकारियां अनुमानों से ज्यादा कुछ नहीं हैं। लेकिन हैरानी की बात यह कि शक की सूई शुरू से चीन की ओर ही है। भले चीन के खिलाफ अब तक कोई ठोस सबूत न मिले हों, लेकिन अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों का दावा है कि यह करतूत चीन की है। अमेरिका तो साल भर से चीन के खिलाफ सबूत जुटाने में एड़ी-चोटी का दम लगाए है।
सुराग ढूंढ़ने के लिए खुफिया एजेंसियां और जासूस लगे पड़े हैं। ब्रिटेन और कई पश्चिमी देश भी इस मुहिम में अमेरिका के साथ हैं। भारत ने भी कुछ इस तरह समर्थन किया है कि मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। याद किया जाना चाहिए कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो बाकायदा चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। लेकिन तब तक उनके पास ऐसा कोई सबूत नहीं था जिससे वे चीन को दबोच पाते। अब वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन ने खुफिया एजेंसियों से कहा है कि कोरोना की उत्पत्ति को लेकर तीन महीने के भीतर उन्हें रिपोर्ट दी जाए।
सवाल है कि चीन को लेकर ही शक क्यों है? अब तक किसी और देश पर अंगुली क्यों नहीं उठी? शुरू से ही दुनिया के ज्यादातर वैज्ञानिकों और खुफिया एजेंसियों की नजरें वुहान की प्रयोगशाला पर जाकर ही क्यों ठहर जा रही हैं? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब आसानी से नहीं मिलने वाला। लेकिन इतना जरूर है कि दुनिया को महाविनाश के खतरे में झोंक देने को लेकर कई देशों में जो गुस्सा उबाल लेता जा रहा है, उससे लगता है कि ठीकरा चीन पर ही फूटना है। पर सवाल है कि आखिर चीन भला ऐसा क्यों करेगा? हालांकि इसके पीछे भी कारणों की कमी नहीं है।
यह सब जानते हैं कि दुनिया की आर्थिक ताकत बनने को लेकर चीन और अमेरिका के बीच एक तरह की जंग चल रही है। जाहिर है, अमेरिका और यूरोप को चीन कमजोर करना चाहता है। उसका मकसद अपना आर्थिक दबदबा कायम करना है। कुछ भी हो, महामारी ने अब तक वैश्विक अर्थव्यवस्था का भट्ठा तो बैठा ही दिया है। अमेरिका, भारत और यूरोप के कई देशों की अर्थव्यवस्थाएं हिल चुकी हैं। लेकिन चीन का कुछ नहीं बिगड़ा। उसकी अर्थव्यवस्था बाकायदा पटरी पर है। यही उसका मकसद भी रहा होगा।
विषाणु उत्पत्ति की जांच के मामले में खुद चीन का रवैया भी कम संदेह पैदा नहीं करता। हालांकि भारी दबाव के बाद पिछले साल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के जांच दल ने वुहान प्रयोगशाला का दौरा किया था। पर डब्ल्यूएचओ ने वुहान की प्रयोगशाला से विषाणु फैलने की बात खारिज कर दी थी। हालांकि डब्ल्यूएचओ को लेकर अमेरिका सहित कई देशों का भरोसा पहले से ही उठ चुका है। इस विश्व संस्था को चीनी एजेंट के रूप में प्रचारित कर दिया गया है।
ऐसे में डब्ल्यूएचओ की जांच का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। अब जांच इस बिंदु पर आ टिकी है कि वुहान की प्रयोगशाला में काम करने वाले जो वैज्ञानिक बीमार पड़े थे, वे कोरोना विषाणु की चपेट में आए थे और उन्हीं से यह विषाणु बाहर आया और फैला। जो भी हो, विषाणु की उत्त्पत्ति का रहस्य अंतहीन विषय जैसा है। ढेरों अनसुलझे सवाल हैं। जांच की कड़ियां हैं। सबके अपने-अपने तर्क और दावे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि जांच होनी चाहिए, लेकिन विज्ञान जगत का मकसद सिर्फ चीन को घेरने से पूरा नहीं होने वाला।