एक साल की जेल के साथ नवजोत सिद्धू का शो खत्म, मगर दूसरे सीजन को नकारा नहीं जा सकता

एक साल की जेल के साथ नवजोत सिद्धू का शो खत्म

Update: 2022-05-21 08:04 GMT
संदीपन शर्मा |  
न्यूटन के 'दुर्गति' के नियम की चलती-फिरती मिसाल हैं नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu). अगर उनके आसपास की दुनिया क्रिया करती है, तो वह निश्चित रूप से प्रतिक्रिया देंगे. लेकिन इस बात कि कोई गारंटी नहीं है कि उनकी प्रतिक्रिया क्रिया के बराबर होगी या फिर तार्किक. बहुत पहले उन्होंने एक प्रतिक्रिया दी थी और उस प्रतिक्रिया ने आज उन्हें अपनी गिरफ्त में ले ही लिया है. रोड रेज (Road Rage Case) के एक मामले में सिद्धू करीब-करीब बरी हो गए थे. लेकिन बरी किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई करते हुए उन्हें एक साल की जेल की सजा सुनाई है.
पारंपरिक समझदारी कहती है कि यदि आप जल्दबाजी में प्रतिक्रिया देते हैं तो आपको जेल जाकर इस पर पछताना पड़ता है. इसलिए सिद्धू को अब सड़क पर अपने 34 साल पुराने गुस्से पर पछतावा करने के लिए एक साल का समय मिलेगा. इस गुस्से की वजह से उन्हें जेल भेज दिया गया है. और भी बहुत कुछ है.
सिद्धू की समस्या यह है कि वह एक बारहमासी किशोर बच्चे की तरह बर्ताव करते हैं. उनका झुकाव नखरे पर नखरे करने का होता है. उनका जीवन क्रिकेट के दिनों से शुरू होता है. एक क्रिकेट दौरे के बीच में ही वे टीम से बाहर निकल जाते हैं. शायद यह उनके बचकाने प्रतिक्रियाओं के मोन्टॉज का एक हिस्सा ही था.
सिद्धू ने अधिकांश अनावश्यक नाटक किए
बहरहाल, यह समय नहीं है जब हम सिद्धू के गुस्सैल प्रतिक्रियाओं के इतिहास में ताक-झांक करें. लेकिन यह कहना सही होगा कि सिद्धू ने दुनिया को एक रंगमंच की तरह माना जहां उन्होंने बहुत सारे नाटक किए जिनमें से अधिकांश अनावश्यक ही रहे. शायद जेल में एक साल बिताने के दौरान उन्हें अपने जीवन और वक्त का आत्मनिरीक्षण करने का समय मिलेगा.
उदाहरण के लिए उन्हें इस बारे में सोचना चाहिए कि उनकी ही पार्टी के कुछ लोगों ने उनकी सजा को गुड रिडन्स (पिंड छुड़ाना) क्यों कहा. वे यह भी सोच सकते हैं कि उनके पूर्व बॉस कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सभी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ताली ठोंकने के लिए क्यूं कहा.
उस व्यक्ति के बारे में क्या कहा जा सकता है जिसकी कैद की सजा से लोगों को सहानुभूति दिखाते कम ही देखा गया जबकि अधिकांश ने खुशी और जश्न के साथ इसका स्वागत किया. जाहिर है जिस तरह वे आलिशान और खतरनाक तरीकों से रहे उससे बहुत सारे दुश्मन हो ही जाते हैं.
पापों से मुक्ति की गुंजाइश
उनकी हरकतों और प्रतिक्रियाओं से यह आसानी से समझा जा सकता था कि सिद्धू हमेशा जल्दबाजी में रहते थे. उनकी नजर पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकी थी और वह प्रकाश की रफ्तार से वहां पहुंचना चाहते थे. अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने और बेहतर कारोबार के लिए वे राजनीतिक घोड़े की तरह एक पार्टी से दूसरी पार्टी में कूदते रहे. उन्होंने अपनी ही पार्टी और नेताओं को ललकारा, छुरा घोंपा, पलट कर फिर छुरा घोंपा और एक बदसूरत हंगामा किया. और ये तमाम हरकत सिर्फ एक अधीर और बेईमान मन-मस्तिष्क में ही खेला जा सकता है. ये सजा शायद उनके कर्मों की सजा ही है. लेकिन, अभी भी इन पापों से मुक्ति की गुंजाइश है.
पंजाब की राजनीति मंथन के दौर से गुजर रही है. इसके मतदाताओं ने नई शुरुआत करते हुए हाल ही में स्थापित पार्टियों, राजनेताओं और राजवंशों को बाहर फेंक दिया था. मतदाता थोक भाव से बदलाव लाना चाहते थे और इस सिलसिले में उन्होंने पूरी व्यवस्था को ही उलट दिया. पंजाब में अरब स्प्रिंग की तरह आम आदमी पार्टी सियासी मंच पर आई. बदले में जनता की उम्मीद है कि आम आदमी पार्टी राज्य की राजनीति और वित्त में सुधार करे और ड्रग्स तथा अलगाववाद की संस्कृति के खिलाफ कार्रवाई करे.
अब तक आम आदमी पार्टी की सरकार ने मतदाताओं की उम्मीदों पर खरा उतरने और जनता में विश्वास जगाने के लिए बहुत कम काम किया है. भगवंत मान के सत्ता में पहले के कुछ सप्ताह में किसानों के विरोध, खालिस्तानी हिंसा और विमर्श की वापसी, बदला लेने के लिए पुलिस का इस्तेमाल और राजकोष पर सब्सिडी के अतिरिक्त बोझ के कारण उनकी छवि खराब ही हुई है.
अब जबकि सरकार समस्याओं से त्रस्त है तो विपक्ष का कोई वजूद ही नहीं रह गया है. बादल परिवार का पतन हो चुका है, अमरिंदर की पार्टी को चुनाव में जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा और चन्नी सिंह लगभग गायब ही हो चुके हैं.
बदलाव और मंथन के इस माहौल में सिद्धू के लिए भविष्य में काफी अवसर होंगे. सवाल यह है कि वह किस तरह से प्रतिक्रिया देंगे?
खुद का एक बार फिर से आविष्कार करें सिद्धू
एक साल की जेल एक राजनेता के लिए कुछ भी नहीं है. दरअसल अगर इस कैद के समय का समझदारी से इस्तेमाल किया जाए तो यह उनके एक नए राजनीतिक कैरियर का लॉन्चपैड साबित हो सकता है. बतौर एक क्रिकेटर सिद्धू ने कई बार जबरदस्त वापसी की है. उनमें से सबसे प्रसिद्ध 1987 विश्व कप में उनकी वापसी एक बिग-हिटर के रूप में हुई थी जबकि कुछ दिन पहले ही स्ट्रोक न लगा पाने वाले खिलाड़ी के रूप में उन्हें खारिज कर दिया गया था.
यह सिद्धू पर है कि वह खुद का एक बार फिर अविष्कार करे. स्वयं को एक बेहतर, विनम्र, अधिक धैर्यवान और सैद्धांतिक इंसान बनाएं तथा वापसी करें. लेकिन सवाल यह है कि क्या वह समझदारी से काम करेंगे?
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