नाम बदल की दास्तां

टर्की की सरकार

Update: 2022-06-09 04:59 GMT
टर्की की सरकार ने अपने देश का ही नाम बदल दिया है। अपने देश में ये कहानी कुछ जानी-पहचानी मालूम पड़ेगी। लोगों को संभवतः यह महसूस होगा कि यहां जो हो रहा है, उस मामले में भारत अकेला नहीं है।
टर्की के राष्ट्रपति रजिब तैयिब आर्दोआन ने देश का इस्लामीकरण अपने लिए जो जन समर्थन बनाया, वह अब दो दशक से अधिक समय से अटूट बना हुआ है। इस दौरान उनकी एक खास शैली देखने को मिली है। जब कभी देश किसी संकट में फंसता है, वे धर्म और परंपरा का ऐसा मुद्दा उछाल देते हैं, जो उनके समर्थकों को रोजमर्रा की समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए काफी होता है। अब शायद संकट सबसे गंभीर है, तो उन्होंने देश का ही नाम बदल दिया। तो टर्की को अब तुर्किये नाम से जाना जाएगा। संयुक्त राष्ट्र के नाम परिवर्तन पर औपचारिक मुहर लगाने के बाद इस देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसी नाम से पुकारे जाने का रास्ता पिछले हफ्ते खुल गया। संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी के बाद तुर्किये के विदेश मंत्री मेयलुत कावुसोगलू ने कहा कि 'इस परिवर्तन से हमारे देश का ब्रांड वैल्यू बढ़ेगा।'
उधर राष्ट्रपति एर्दोआन ने कहा कि नए नाम से तुर्किये राष्ट्र की संस्कृति, सभ्यता, और उसूलों की बेहतर ढंग से अभिव्यक्ति होगी। बहरहाल, तुर्किये की राजनीति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों की राय है कि यह मजहबी राष्ट्रवादी मतदाताओं को लुभाने की एर्दोआन की एक और कोशिश है। अगले साल होने वाले चुनाव को देखते हुए नाम बदलने के समय को महत्त्वपूर्ण समझा गया है। नाम बदलने का एलान पिछले दिसंबर में उस समय हुआ, जब एर्दोआन जनमत सर्वेक्षणों में पिछड़े हुए थे। देश अभी 20 साल के सबसे गहरे आर्थिक संकट में है। जब संकट का समय हो, तो उस समय लोकलुभावन मुद्दों को उछाल देना राष्ट्रपति एर्दोआन की महारत रही है। इस समय देश में महंगाई दर 70 फीसदी से भी ऊपर है। इस कारण लोग सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैँ। तो एर्ओदान को उम्मीद होगी कि नए नाम को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलने से तुर्किये की जनता का ध्यान ठोस मुद्दों से हटेगा। उनका यह दावा मजबूत होगा कि वे एक मजबूत और परंगरागत पहचान वाले देश के निर्माण में जुटे हुए हैँ। वैसे अपने देश यानी भारत में ये कहानी बहुत से लोगों को काफी कुछ जानी-पहचानी मालूम पड़ेगी।
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