एन. रघुरामन का कॉलम- बड़े ख्वाब देखने का मतलब अपने सपनों की दिशा में कड़ी मेहनत करना

ओपिनियन

Update: 2022-04-23 08:38 GMT
एन. रघुरामन का कॉलम: 
'मैं अपने सारे प्रशंसकों-शुभचिंतकों से माफी मांगना चाहता हूं। पिछले कुछ दिनों में आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे गहराई तक प्रभावित किया। मैंने कभी तंबाकू का प्रचार-प्रसार नहीं किया न कभी करूंगा। 'विमल इलायची' के साथ मेरे एसोसिएशन को लेकर सामने आई आपकी भावनाओं की मैं कद्र करता हूं। इसलिए पूरी विनम्रता से मैं पीछे हटता हूं। विज्ञापन से मिली फीस को मैं अच्छे कार्य में लगाऊंगा। कांट्रैक्ट से बंधे होने के कारण, ब्रांड कानूनी अवधि तक एड प्रसारित कर सकता है, लेकिन मैं वादा करता हूं कि भविष्य में पूरी समझदारी से एड चुनूंगा।
बदले में आपसे मैं आपका प्यार-शुभकामनाएं चाहता हूं।' अक्षय कुमार ने अपने हालिया ट्वीट में यह कहा। यह ट्वीट अपने आप में काफी कुछ कहता है और इस पर कुछ कहने की जरूरत नहीं। आईपीएल देखते हुए मुझे यह ट्वीट याद आया, मैच के बीच ऐसे लोगों के विज्ञापन भी दिखाते हैं, जिन्होंने कड़ी मेहनत से और विपरीत हालातों के बावजूद ऊंचाइयां हासिल की।
विज्ञापन कहता है कि वे आज वहां हैं, क्योंकि कुछ लोगों ने यहां तक पहुंचने में उनकी मदद की, जैसे दुकानदार, जिसने उन्हें मुफ्त में बैट दिया या एक दोस्त, जिसने ग्राउंड तक पहुंचने के लिए एक नई साइकल दी या वो अंकल, जिन्होंने उस उभरते क्रिकेटर को मैदान पर सही समय पर पहुंचने के लिए स्कूटर से छोड़ा। पर मुझे समझ नहीं आता कि ये लोग इतनी मुश्किल से आगे बढ़ने के बाद हमें बड़े सपने देखने के लिए गेंबलिंग करने को क्यों कहते हैं?
अगर आप मुझसे पूछें कि तब हम क्या करें, तो मैं आपको कुछ तथ्यों से रूबरू कराता हूं और फिर हम मिलकर तय करेंगे कि क्या करना चाहिए। तथ्य ये है कि एक तरफ भारत उम्रदराज़ होता जा रहा है। दूसरी ओर छह राज्यों में देश की 50% आबादी रहती है और आबादी भी बढ़ रही है। राजस्थान, यूपी, बिहार, एमपी, झारखंड व ओडिशा में देश की 50% आबादी रहती है और 2030 तक इसके 60% होने की उम्मीद है। इसका मतलब है कि नौकरी की तलाश में आने वाले ज्यादातर युवा इन राज्यों से होंगे और नौकरी देने वाले राज्यों की ओर रुख करेंगे।
ऐसे में भविष्य में नौकरी कौन देगा? जाहिर है 25% की दर से बूढ़े हो रहे राज्य ऐसा करेंगे, यह एजिंग रेट राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। आज भारत की 8-10% आबादी बुजुर्गों की है। 2040 तक यह 16% होगी। देश के कुछ हिस्से जैसे दक्षिण भारत के राज्य, महाराष्ट्र और पंजाब, जो 1960 के बाद से परिवार नियोजन लागू करने में अग्रणी रहे, वे तेजी से बूढ़े हो रहे हैं। और वे ऐसी नौकरियां पैदा करेंगे, जिनमें स्थानीय लोग कम होंगेे। इसलिए इन छह सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्यों से लोग नौकरी की तलाश में पलायन करेंगे और उन्हें वहां नौकरी मिलेगी।
यह अलग कहानी है कि इन राज्यों में कमाया पैसा या मिली तनख्वाह लोग वापस उन्हीं स्थानीय राज्यों में खर्च करेंगे और नकदी के अच्छे प्रवाह से वहां बिजनेस जैसे रिएल एस्टेट, शिक्षा और दैनिक उपभोग की वस्तुओं में बढ़ोतरी होगी। इससे इन आबादी वाले राज्यों में स्थानीय लोगों के लिए फिर से छोटे-छोटे रोजगार पैदा होंगे।
पर मुद्दे की बात इन बूढ़े होते राज्यों में कुछ दशकों तक इन नौकरियों में बने रहने की है। इन राज्यों में कॉर्पोरेट गेम बेहतर खेलने के लिए, हमें उनकी स्थानीय भाषा सीखने की जरूरत है, क्योंकि निचले तबके के कर्मचारी स्थानीय इलाकों से आएंगे। भाषा कौशल से हम बेहतर मैनेजर साबित होंगे।
फंडा यह है कि बड़े ख्वाब देखने का मतलब अपने सपनों की दिशा में कड़ी मेहनत करना है। नौकरियां देने वाले इन इलाकों की भाषा सीखने से वहां मजबूती से टिके रहने में मदद मिलेगी। ये भाषाएं कितनी ही मुश्किल क्यों न हों, उन्हें सीखिए, इससे काफी मदद मिलेगी।
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