आंदोलन से जन जीवन बाधित न हो
देश की शीर्ष अदालत ने गाहे-बगाहे चेताया है कि किसी मुद्दे पर असहमति और विरोध करना नागरिक अधिकार है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देश की शीर्ष अदालत ने गाहे-बगाहे चेताया है कि किसी मुद्दे पर असहमति और विरोध करना नागरिक अधिकार है। लेकिन विरोध करने की अपनी सीमाएं हैं इससे सार्वजनिक जीवन में नागरिक अधिकारों में बाधा उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में शाहीन बाग में महीनों तक चले आंदोलन से नागरिक जीवन बाधित होने पर दायर याचिकाओं की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आंदोलन एक स्थान विशेष में ही किया जा सकता है और उससे नागरिकों का जीवन बाधित नहीं होना चाहिए। इसी तरह केंद्र सरकार के कृषि सुधार कानूनों के विरोध में पंजाब में लंबे समय से आंदोलन जारी है। आंदोलन के समर्थन में किसानों द्वारा राजनीतिक दलों की शह पर रेल यातायात लंबे समय से ठप किया गया है। इस बाबत मंगलवार को पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य में रेल सेवा बहाल न होने पर पंजाब सरकार के विरुद्ध सख्त टिप्पणी की है। रेल सेवा ठप होने से यात्रियों को होने वाली परेशानी और उद्योग-धंधों पर मालगाड़ियां बंद होने से पड़ने वाले घातक नुकसान के बाबत अदालत ने यह कठोर टिप्पणी की। अदालत ने तो यहां तक कह दिया कि क्यों न लिख दिया जाये कि पंजाब सरकार संविधान के अनुसार काम करने में नाकाम रही है। दरअसल, किसान आंदोलन के कारण रेल व सड़क यातायात बाधित होने से नागरिक जीवन पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभाव के दृष्टिगत हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। पंजाब सरकार को फटकार लगाते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि शंकर झा की अध्यक्षता वाली पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए सरकार को चेताया कि यदि राज्य सरकार कानून-व्यवस्था संभालने के दायित्व के निर्वहन में विफल है तो कोर्ट इस बाबत आदेश पारित करके क्या यह लिख दे कि पंजाब सरकार संविधान के मुताबिक अपने दायित्व नहीं निभा पा रही है। निस्संदेह, हाल के घटनाक्रम से आंदोलन में सत्तारूढ़ दल की भूमिका कई तरह के सवालों को जन्म देती रही है। वह झीनी रेखा मिटती नजर आई है जो एक सरकार और आंदोलनकारियों के बीच नजर आनी चाहिए। जैसा कि अपेक्षित था अदालत ने केंद्र सरकार और पंजाब सरकार को निर्देश दिया है कि इस समस्या के निदान के लिये गंभीर प्रयास किये जाने जरूरी हैं। साथ ही हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को निर्देशित किया कि 18 नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई तक अदालत को रेल यातायात व सड़क मार्ग को निर्बाध बनाने की दिशा में उठाये गये कदमों का ब्योरा उपलब्ध कराया जाये। इस दौरान रेलवे ट्रैक खाली करवाने को लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के दावों में अंतर्विरोध नजर आया। राज्य सरकार जहां दावा करती रही है कि सभी रेलवे ट्रैक खाली करवा दिये गये हैं, तो केंद्र के प्रतिनिधि का दावा है कि कई रेल ट्रैक और दर्जनों रेलवे प्लेट फॉर्म अभी भी किसान आंदोलनकारियों की गिरफ्त में हैं। दूसरी ओर राज्य सरकार केंद्र पर मालगाड़ियां चलाने में विलंब करने का आरोप लगाती रही है। दरअसल, पंजाब के उद्योग संगठन रेल यातायात ठप होने से उद्योगों को कच्चेमाल की आपूर्ति बाधित होने से होने वाले नुकसान को लेकर चिंता जताते रहे हैं। कोरोना संकट के चलते लगाये गये लॉकडाउन और प्रवासी श्रमिकों की घर वापसी से पहले ही हलकान उद्योगों पर इसका बेहद प्रतिकूल असर पड़ रहा है। वहीं रेल मंत्रालय का कहना है कि पहले रेलवे ट्रैक खाली करवाये जायें और रेलवेकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाये, तभी माल गाड़ियों का परिचालन सामान्य हो पायेगा। निस्संदेह, किसानों के मुद्दे पर राजनीति के चलते उपजे संकट का खमियाजा आम यात्रियों और उद्योगों को भुगतना पड़ रहा है। यहां तक कि कोयले की आपूर्ति न हो पाने से सरकारी और निजी थर्मल प्लांटों में बिजली का उत्पादन प्रभावित हो रहा है, जिसका नुकसान राज्य के उद्योगों व किसानों को भी उठाना पड़ेगा। किसी मुद्दे पर राज्य सरकार की केंद्र से असहमति अपनी जगह है और नागरिक जीवन को सुचारु बनाये रखने का दायित्व निभाना अपनी जगह है। इसकी कीमत आम नागरिक क्यों चुकायें।