बांग्ला आलोचना का शिखर मोहितलाल मजुमदार

बांग्ला साहित्य और कला के क्षेत्र में गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर का नाम सार्वकालिक समादर का पात्र तो है ही,

Update: 2020-10-25 03:50 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क।  बांग्ला साहित्य और कला के क्षेत्र में गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर का नाम सार्वकालिक समादर का पात्र तो है ही, इससे आगे यह एक समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का भी नाम है। इस परंपरा ने बांग्ला के साथ भारतीय संस्कृति को एक ऐसी समृद्ध लिखावट में बदला, जिसका प्रभाव आज भी खासा गहरा और रचनात्मक है। रवींद्र परंपरा के ही एक बड़े कवि और आलोचक थे मोहितलाल मजुमदार।

मजुमदार ने रवींद्र परंपरा के गीति-प्रधान काव्य के ध्रुपद न्यास के साथ नए भावादर्शों को समेटते हुए एक नई काव्यधारा का प्रवर्तन किया। इस धारा के काव्य में रवींद्र की गीतात्मकता के साथ नए विषयों और संदर्भों का एक ऐसा साझा है, जो रवींद्र परंपरा के काव्य को आधुनिकता से आगे समकालीनता के मुहाने तक ले आता है। यह एक काव्य परंपरा के विकास के साथ उसकी समकालीनता को बहाल रखने के लिहाज से उल्लेखनी प्रयोग है।

मजुमदार इस मामले में यशस्वी भी रहे कि खुद गुरुदेव ने उनकी काव्य प्रतिभा को सराहा और कहा कि उनके काव्य लेखन में पारंपरिक निरंतरता के साथ मौलिकता भी है। मजुमदार की बांग्ला साहित्य को एक बड़ी देन यह भी रही कि उसने इसे वह समालोचकीय दृष्टि दी, जिसके आधार पर न सिर्फ वह बांग्ला साहित्य और संस्कृति का मूल्यांकन कर सके बल्कि जीवन से जुड़े भावों-संदर्भों को देखने की आधुनिक तार्किक कसौटी भी विकसित कर सके।

यही कारण है कि मजुमदार जहां एक तरफ बांग्ला के काव्य रसिकों को भाते हैं, वहीं वे आलोचनात्मक दृष्टि से कार्य कर रहे अध्येताओं को भी खूब पसंद आते हैं।

मजुमदार की चर्चा करते हुए उनके समर्थ काव्य लेखन से ज्यादा उनकी समालोचकीय दृष्टि पर बात करनी इसलिए भी जरूरी हो जाती है क्योंकि इस कारण काव्य प्रसिद्धि का मोह न करते हुए उन्होंने अपनी ऊर्जा और बहुत सारा रचनात्मक समय आलोचकीय शोध और अध्ययन में लगाया। इस लिहाज से कई लोग उन्हें बांग्ला साहित्य का मैथ्यू आर्नल्ड भी कहते हैं।

अच्छी बात यह है कि बांग्ला समालोचना साहित्य की नवीन पद्धति के सर्जक के तौर पर विद्वानों ने भी उनकी काबिलियत का लोहा माना। यही कारण है कि अपने जीवन में ही मजूमदार एक स्कूल की तरह स्थापित हो गए, जिस स्कूल से द्विजेंद्रलाल नाथ जैसे कई विद्वान समालोचक बांग्ला साहित्य को मिले।

मजुमदार का जन्म 26 अक्तूबर, 1988 को बंगाल के नादिया जिले के एक साधारण से गांव में अपने ननिहाल के परिवार हुआ था। वैसे उनकी मातृभूमि हुगली जिले का बालागढ़ गांव है। वे एक मेधावी विद्यार्थी थे। उनके परिवार में पहले से साहित्य को लेकर कोई खास अभिरुचि नहीं थी। पर मजुमदार ने निज वृत्ति के आधार पर इस क्षेत्र में दिलचस्पी लेनी शुरू की।

कॉलेज की अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वे कोलकाता हाई स्कूल में एक शिक्षक के रूप में बहाल हुए। बाद में उन्होंने ढाका विश्वविद्यालय में संस्कृत और बांग्ला साहित्य के प्रध्यापन का कार्य किया। 'आधुनिक बांग्ला साहित्य', 'कवि श्री मधुसूदन', 'साहित्य विचार', 'साहित्य कथा' और 'विचित्र कथा' जैसे अमूल्य समालोचकीय पुस्तकों के लेखक मोहितलाल मजुमदार के साहित्यिक जीवन पर उनके बाद लोगों ने कई महत्वपूर्ण शोध कार्य किए। किसी को उनका सर्जनात्मक जीवन 'हेमंत गोधुली' या 'मिलनोत्कंठा' काव्य के रूप में विश्ष्टि लगा तो किसी को उनकी आलोचकीय दृष्टि से बांग्ला साहित्य को समझने की आधुनिक दृष्टि मिली। ल्ल

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