संसद में मोदी के तर्क
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर संसद में बहस हुई बहस का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री का जो भाषण हुआ
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर संसद में बहस हुई बहस का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री का जो भाषण हुआ, उसके तथ्य और तर्क काफी प्रभावशाली रहे। जिन अफसरों या सलाहकारों ने उनका भाषण तैयार किया है, वे बधाई के पात्र हैं। उस भाषण की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि उसमें मोदी की अहंकारिता और आक्रामकता नदारद थी। शायद किसान आंदोलन ने उनके व्यक्तित्व में यह नया आयाम जोड़ दिया है। इससे उनको और देश को भी निश्चित ही कुछ न कुछ लाभ जरुर होगा। अपने लंबे भाषण में उन्होंने किसान आंदोलन के विरुद्ध कोई भी उत्तेजक बात नहीं कही। वे अपनी सरकार की कृषि-नीति के बारे में थोड़ा ज्यादा गहरा विश्लेषण प्रस्तुत कर सकते थे लेकिन उन्होंने जो भी तथ्य और तर्क पेश किए, उन्हें यदि देश के करोड़ों आम किसानों ने सुना होगा तो उन्हें लगा होगा कि जैसे भारत में दुग्ध-क्रांति हुई है, वैसे ही अब कृषि-क्रांति का समय आ गया है। इसमें शक नहीं कि पंजाब और हरयाणा के मालदार किसान कुछ असमंजस में जरुर पड़ गए होंगे लेकिन चौधरी चरणसिंह और गुरु नानक का हवाल देकर जाट और सिख किसानों का दिल जीतने की कोशिश भी उन्होंने की है।