जीवनसाथी के भीतर की कमजोरी और अच्छाई दोनों को प्रौढ़ता के साथ स्वीकार कीजिए
इंसान के आंसू और मुस्कान के बीच यदि आपस में झगड़ा हो जाए तो जीवन में कलह जरूर उतरेगा
पं. विजयशंकर मेहता। इंसान के आंसू और मुस्कान के बीच यदि आपस में झगड़ा हो जाए तो जीवन में कलह जरूर उतरेगा। हालांकि ये दोनों चीजें व्यक्तित्व में परिपक्वता भी लाती हैं। हमारे यहां ऋषि-मुनि कहा करते थे कि मनुष्य का जब विवाह हो तो शरीर तो युवा होना चाहिए, लेकिन उसकी सोच प्रौढ़ हो। यहां प्रौढ़ता का अर्थ है परिपक्व, मेच्योर। प्रौढ़ लोगों के बारे में कहा जाता है कि अपने अनुभव के आधार पर वे चीजों को ऐसे ही देखते हैं, जैसी वे होती हैं। यह बात निजी जीवन पर भी लागू होती है। इसलिए विवाह प्रौढ़ मानसिकता के साथ किया जाए।
जब जीवनसाथी को स्वीकार करते हैं और यदि उसे युवा शरीर की दृष्टि से देखना शुरू करेंगे तो थोड़े ही दिन में देह का भोग पूरा होगा और विवाद शुरू हो जाएंगे। लेकिन, यदि विवाह के समय सोच परिपक्व है, तो 'जैसा भी है, अब मेरा जीवनसाथी है' भीतर यह विचार जागेगा। पति-पत्नी में मतभेद होना स्वाभाविक है।
अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे, समझदार दंपति के बीच भी नोकझोक होती रहती है। यहां सोच की प्रौढ़ता बड़े काम आती है। यदि कोई बड़ा चारित्रिक दोष एक-दूसरे में न मिले तो स्वभावजन्य कमजोरी के कारण यह संबंध खराब कर लेना या तोड़ देना जरा भी समझदारी नहीं होगी।